ओजोन (ओ3) वायुमंडल में एक महत्वपूर्ण असरदार गैस है जो पृथ्वी पर एक साथ रक्षा करने और नुकसान पहुंचाने के लिए जानी जाती है। जबकि ओ3 समताप मंडल में पराबैंगनी विकिरण को रोककर पृथ्वी पर रहने वाले जीवों की इससे रक्षा करती है। यह क्षोभमंडल में एक अतिरिक्त प्रदूषक है जिसका फसलों और मानव स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
अब एक नए अध्ययन से पता चला है कि मानवीय गतिविधियां, जैसे कि ईंधन जलाने से, प्रदूषक नाइट्रोजन ऑक्साइड (नॉक्स) उत्सर्जन में वृद्धि हो रही है। जिसके कारण भारत में ग्रीनहाउस गैस या ओजोन प्रदूषण बढ़ रहा है। यह अध्ययन पुणे के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटरोलॉजी (आईआईटीएम) के वैज्ञानिकों की अगुवाई में किया गया है।
इस अध्ययन में आईआईटीएम के वैज्ञानिक चैत्री रॉय और अयंतिका डीसी के साथ अमेरिका के विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय के ला फोलेट स्कूल ऑफ पब्लिक अफेयर्स के शोधकर्ता सागर डी राठौड़ ने भी सहयोग किया है।
चैत्री रॉय के मुताबिक भारत में मॉनसून के दौरान, कुछ सतह के द्वारा नॉक्स को ओजोन के ऊपरी स्तरों में ले जाया जाता है। ऊपरी स्तरों की ओजोन गर्मी को रोक देती है जिससे ग्रह गर्म हो जाता है। इसके कारण मॉनसून के मौसम के दौरान भारत में पिछले 150 वर्षों में वायुमंडलीय गर्मी में भारी वृद्धि हुई है।
ओजोन एक ग्रीनहाउस गैस है, जो वातावरण में गर्मी को रोककर बढ़ते तापमान के लिए जिम्मेवार है। मध्य शताब्दी तक दक्षिण एशिया में नॉक्स उत्सर्जन में तीव्र वृद्धि दर्ज हुई है, उत्सर्जन के 2050 तक लगभग 40 टेराग्राम या टीजी प्रति वर्ष और 2100 में 45 टीजी प्रति वर्ष होने के आसार हैं।
अध्ययनकर्ता ने कहा कि, भविष्य में, इससे भारत में मॉनसून के दौरान ऊपरी स्तरों में नॉक्स और ओ3 की मात्रा में 1.2 गुना वृद्धि हो सकती है। अध्ययन में उपयोग किए गए सभी मॉडलों में भारत में नॉक्स 60 भाग प्रति ट्रिलियन या पीपीटी से अधिक का स्तर देखा गया।
अतिरिक्त नॉक्स को सतह से ऊपरी स्तर तक पहुंचाया जाता है, जिसके कारण वहां नॉक्स का धीरे-धीरे निर्माण होता है। यह पूर्व औद्योगिक समय 1850 की तुलना में वर्तमान समय में मॉनसूनी मौसम के दौरान भारत के ऊपरी स्तरों पर नॉक्स की मात्रा को लगभग दो से पांच गुना तक बढ़ा देता है।
उन्होंने कहा इसी तरह, भारत के कुछ हिस्सों में नॉक्स के उत्सर्जन में वृद्धि के कारण ओजोन में वृद्धि जो कि 15 भाग प्रति बिलियन या पीपीबी से अधिक देखी गई। पूर्व औद्योगिक समय की तुलना में आज के समय में ओजोन की सघनता 1.9-2.4 गुना बढ़ गई है। औसतन, एशियाई ग्रीष्मकालीन मॉनसून एंटीसाइक्लोन क्षेत्र में, नॉक्स की मात्रा 1850 के बीच हाल के दशक तक दोगुनी हो गई, जिससे ओ 3 में वृद्धि हुई है जिससे मात्रा 1.5 गुना बढ़ जाती है।
एशियाई ग्रीष्मकालीन मॉनसून एंटीसाइक्लोन एक प्रमुख संचालक है जो एशिया से मध्य पूर्व तक ऊपरी स्तरों और निचले समताप मंडल में फैला हुआ है। शोधकर्ताओं ने पाया कि पिछले 150 वर्षों में नॉक्स में बदलाव के कारण इस क्षेत्र में औसतन 0.6 वाट प्रति वर्ग मीटर का तापमान बढ़ा है, जिसका अर्थ है वायुमंडलीय गर्मी बढ़ी है।
अध्ययन में यह भी बताया गया है कि यदि सभी देश दहन गतिविधियों से अधिक नॉक्स का उत्सर्जन जारी रखते हैं, तो भविष्य में ऊपरी क्षोभमंडलीय ओजोन में वृद्धि होने का अनुमान है। हालांकि, सतह पर नॉक्स उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से स्वच्छ वायु नीतियां ऊपरी क्षोभमंडलीय ओजोन को भी कम करती हैं। यह अध्ययन जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।