ब्रह्मपुत्र नदी में बढ़ सकती है बाढ़ की विभीषिका, गर्म जलवायु है जिम्मेवार

शोधकर्ताओं ने बताया कि गर्म होती जलवायु मानसूनी बारिश की गति को तेजी से बढ़ाएगी जिससे ब्रह्मपुत्र का जल प्रवाह बढ़ेगा और बाढ़ की विभीषिका बढ़ेगी।
ब्रह्मपुत्र नदी में बढ़ सकती है बाढ़ की विभीषिका, गर्म जलवायु है जिम्मेवार
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एक नए अध्ययन में दक्षिण एशिया की शक्तिशाली ब्रह्मपुत्र नदी में जल प्रवाह के सात शताब्दियों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। विश्लेषण से पता चलता है कि वैज्ञानिकों द्वारा जलवायु के गर्म होने से नदी में आने वाली विनाशकारी बाढ़ की क्षमता को कमतर आंका गया है। इस रहस्य का पता पेड़ के छल्लों (ट्री रिंग्स) की जांच से होता है, जिसमें वर्षा के पैटर्न को आधुनिक यन्त्रों और ऐतिहासिक रिकॉर्ड से सदियों पहले हुई घटनाओं का अनुमान लगाया जा सकता है।

शोधकर्ता इस बात से सहमत हैं कि गर्म होती जलवायु मानसूनी बारिश की गति को तेजी से बढ़ाएगी जिससे ब्रह्मपुत्र का जल प्रवाह बढ़ेगा। नदी के प्रवाह में आए पिछले प्राकृतिक बदलाव मुख्य रूप से केवल 1950 के दशक के डिस्चार्ज-गेज रिकॉर्ड पर आधारित है।

नदी के जलक्षेत्र में और उसके आसपास प्राचीन पेड़ों के छल्लों के आधार पर किए गए नए अध्ययन से पता चलता है कि 1950 के दशक के बाद की अवधि वास्तव में 1300 के दशक के बाद से सबसे शुष्क में से एक थी। छल्ले बताते हैं कि अतीत में यह अवधि बहुत अधिक नम रही है, जो प्रकृति द्वारा संचालित है तथा दशकों या सदियों से होती आ रही है। विनाशकारी बाढ़ वैज्ञानिकों ने जितना सोचा था शायद उससे अधिक बार आएगी  यहां तक कि मानव-जनित जलवायु परिवर्तन का कोई भी प्रभाव बहुत बड़ा होगा। यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

कोलंबिया विश्वविद्यालय के लामोंट-डोहर्टी अर्थ वेधशाला के पीएचडी छात्र और अध्ययनकर्ता मुकुंद पलत राव ने कहा पेड़ के छल्लों से पता चलता है कि आने वाले समय में बहुत अधिक बारिश होगी। चाहे आप जलवायु मॉडल को माने या प्राकृतिक परिवर्तनशीलता को, परिणाम दोनों के समान होंगे। हमें भविष्य में आने वाली भयंकर बाढ़ के लिए तैयार रहना चाहिए।

ब्रह्मपुत्र दुनिया की सबसे शक्तिशाली नदियों में से एक है, जो तिब्बत, पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश तक विभिन्न नामों और मार्गों से बहती हुई 2,900 मील की दूरी तय करती है। इसके मुंहाने के पास भारत की गंगा नदी के साथ मिलकर यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा महासागर बनाती है, यह केवल अमेज़ॅन और कांगो नदी से पीछे है। मिलने वाले संगम पर यह लगभग 12 मील चौड़ी है। केवल इसका डेल्टा ही  13 करोड़ बांग्लादेशियों का घर है और कई लाख लोग नदी के ऊपरी भाग में रहते हैं।

जुलाई-सितंबर मानसून के मौसम के दौरान नदी के आसपास के क्षेत्रों में नियमित रूप से बाढ़ आती है। जब हिंद महासागर से नमी से भरी हवाएं चलती हैं जिससे वर्षा होती है। नदी के साथ बाढ़ का एक अच्छा पक्ष भी है, क्योंकि पानी खेत को फिर से भरने के लिए पोषक तत्वों से भरपूर तलछट (सेडीमेंट) को जमा करती है और चावल की खेती के लिए कुछ हद तक बाढ़ आवश्यक है।

लेकिन कुछ वर्षों से बाढ़ नियंत्रण से बाहर हो रही है जो बांग्लादेश के लिए सबसे कठिन हो जाता है। 1998 में देश का 70 प्रतिशत क्षेत्र पानी में डूब गया था, फसलों, सड़कों और इमारतों को इसने बर्बाद कर दिया और कई लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। इसी तरह की भयंकर बाढ़ 2007 और 2010 में आई थी। सितंबर 2020 में 1998 के बाद से सबसे भयंकर बाढ़ आई, जिसमें बांग्लादेश का एक तिहाई हिस्सा डूब चुका था और 30 लाख लोग बेघर हो गए थे।

उच्च तापमान से समुद्र के पानी का अधिक वाष्पीकरण होता है और इस क्षेत्र में मानसून के दौरान वर्षा का पानी मिल जाता है। नतीजतन अधिकांश वैज्ञानिक सोचते हैं कि गर्म जलवायु आने वाले दशकों में मानसून की बारिश को तेज करेगी और बदले में मौसमी बाढ़ को बढ़ाएगी। सवाल यह है कि भविष्य में कितनी बार भयंकर बाढ़ आ सकती है?

नए अध्ययनकर्ताओं ने पहली बार उत्तरी बांग्लादेश में नदी-प्रवाह गेज के रिकॉर्ड को देखा। इसमें 1956 से 1986 तक और दूसरी बार 1987 से 2004 तक लगभग 41,000 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड पानी का प्रवाह देखा गया। 1998 में बाढ़ की घटनाओं के बढ़ने से वर्ष में पानी का प्रवाह दोगुने से अधिक हुआ।

शोधकर्ताओं ने तिब्बत, म्यांमार, नेपाल और भूटान में 28 स्थानों पर प्राचीन पेड़ों के छल्ले के आंकड़ों को देखा। अधिकांश नमूने पिछले 20 वर्षों में कोनिफर प्रजाति से लेमोंट-डोहर्टी ट्री रिंग लैब के वैज्ञानिकों द्वारा लिए गए थे, जिनका अध्ययन एडवर्ड कुक ने किया। चूंकि लोग लंबे समय से आबादी वाले क्षेत्रों में पेड़ों को काट रहे हैं, कुक और उनके सहयोगियों ने कभी-कभी दूरदराज के, पहाड़ी इलाकों में निर्विवाद स्थलों तक पहुंचने के लिए हफ्तों तक चढ़ाई की। स्ट्रॉ-चौड़ाई के नमूनों में पेड़ों को नुकसान पहुंचाए बिना नमूने लिए गए। उन्होंने जो सबसे पुराना पेड़ पाया वह एक तिब्बती जुनिपर था जिसकी आयु 449 वर्ष थी।

लैब में वापस आकर उन्होंने पेड़ के छल्लों का विश्लेषण किया, जो सालों-साल बढ़ बढ़ते रहते हैं । इस तरह अप्रत्यक्ष रूप से वर्षा और नदी प्रवाह को दर्शाती है। इसने वैज्ञानिकों को 696 साल के कालक्रम को इकट्ठा करने में मदद की, जो 1309 से 2004 तक था। आधुनिक साधनों, अभिलेखों के साथ ही 1780 के दशक वाले ऐतिहासिक अभिलेखों की तुलना करके, वे उन सालों की जानकारी ले सकते थे जब बाढ़ आई । उन्होंने पाया कि 1956-1986 नदी का प्रवाह केवल 13 प्रतिशत था जबकि 1987-2004 में यह 22 प्रतिशत था।

पेड़ के छल्लों से 1400, 1600 और 1800 के दशक अन्य की अपेक्षा में शुष्क दिखाई दिए। लेकिन वे अपेक्षाकृत संक्षिप्त आधुनिक साधनों के बिना किसी बदलाव के अत्यधिक बाढ़ की अवधि को भी दिखाते हैं। सबसे खराब लगभग 1560-1600, 1750-1800 और 1830-1860 तक के दशक रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन लगभग निश्चित रूप से इस क्षेत्र की अन्य प्रमुख नदियों के प्रवाह को प्रभावित करेगा यह जरूरी नहीं है कि यह एक ही तरीके से हो। मुख्य रूप से भारत में बहने वाली शक्तिशाली गंगा भी मानसून द्वारा संचालित होती है, इसलिए यह ब्रह्मपुत्र की तरह व्यवहार करेगी। लेकिन सिंधु, जो तिब्बत, भारत और पाकिस्तान से होकर बहती है, इसका अधिकांश भाग मानसून से नहीं, बल्कि हिमालय के ग्लेशियरों और जाडों में पड़ने वाली बर्फ के गर्मियों में पिघलने से निकलता है। 2018 में राव और उनके सहयोगियों ने एक पेड़ के छल्लों (ट्री-रिंग) का अध्ययन प्रकाशित किया, जिसमें दिखाया गया कि हाल के वर्षों में नदी का प्रवाह बहुत अधिक है। वे सुझाव देते हैं कि जलवायु के अनुसार और ग्लेशियर तेजी से पिघलने से ऐसा होता है, सिंधु नदी में आवश्यक सिंचाई के पानी की भरपूर आपूर्ति होगी लेकिन कुछ बिंदुओं पर, जब ग्लेशियर अधिक पिघल जाएंगे तो मौसम का रूप दूसरे तरीके से बदल जाएगा, और तब पर्याप्त पानी नहीं होगा।

ब्रह्मपुत्र के साथ बाढ़ के खतरे हाल के वर्षों में केवल पानी की मात्रा की वजह से बढ़े है, क्योंकि जनसंख्या और बुनियादी ढांचा तेजी से बढ़ रहा है। दूसरी ओर, सटीक बाढ़ की चेतावनी से कई गांवों को आर्थिक और सामाजिक नुकसान कम करने में मदद मिली है। पानी का अधिक प्रवाह भविष्य में बाढ़ के खतरे और बढ़ाएगा। लेकिन कुछ हद तक नीति, भूमि उपयोग, या बुनियादी ढांचे में संभावित परिवर्तन से बाढ़ के खतरे को कम कर सकते हैं।

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