ऑक्सफोर्ड के स्कूल ऑफ जियोग्राफी द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया की 90 प्रतिशत से अधिक आबादी, अत्यधिक गर्मी और सूखे से जुड़े खतरों का सामना करेगी। इसके कारण सामाजिक असमानताओं में बढ़ोतरी होने के साथ-साथ वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड (सीओ 2) उत्सर्जन को कम करने की दुनिया की प्राकृतिक क्षमता भी कम होगी। अध्ययन में कहा गया है कि बढ़ते तापमान के उच्चतम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत दुनिया भर में ये खतरे दस गुना तेज हो सकते हैं।
शोधकर्ता डॉ. जियाबो यिन ने कहा कि 2022 में रिकॉर्ड तापमान के मद्देनजर, लंदन से लेकर भारत के कई हिस्सों और शंघाई तक, दुनिया भर में लगातार तापमान बढ़ने का अनुमान लगाया गया है। डॉ. जियाबो यिन वुहान विश्वविद्यालय और ऑक्सफोर्ड प्रोफेसर लुईस स्लेटर के एक विजिटिंग शोधकर्ता हैं।
क्लाइमेट ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट 2022 में कहा गया है कि भारत में गर्मी के संपर्क में आने से 167 अरब काम के घंटों का नुकसान हुआ है, जो 1990-1999 से 39 प्रतिशत अधिक है। रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में अत्यधिक गर्मी के कारण सेवा, विनिर्माण, कृषि और निर्माण क्षेत्रों में भारत को 159 बिलियन अमरीकी डॉलर, जो कि सकल घरेलू उत्पाद का 5.4 प्रतिशत आय का नुकसान हुआ।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016 से 2021 के बीच, चक्रवात, फ़्लैश फ्लड, बाढ़ और भूस्खलन जैसी चरम घटनाओं ने 3.6 करोड़ हेक्टेयर फसलों को नुकसान पहुंचाया, जिससे भारत में किसानों को 3.75 बिलियन अमरीकी डॉलर का नुकसान हुआ।
डॉ. यिन ने कहा जब बढ़ते तापमान और सूखे का एक साथ मूल्यांकन किया जाता है, तो इन दोनों से जुड़े खतरे समाज और पारिस्थितिक तंत्र के लिए भारी खतरा पैदा करते हैं।
इन दोनों खतरों के गंभीर सामाजिक-आर्थिक और पारिस्थितिक प्रभाव हो सकते हैं जो सामाजिक असमानताओं को बढ़ा सकते हैं, क्योंकि इनका गरीब लोगों और ग्रामीण क्षेत्रों पर सबसे अधिक गंभीर प्रभाव पड़ने का अनुमान है।
शोध के अनुसार, अधिकतम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत, दोनों के बढ़ते प्रभावों और स्थलीय जल भंडारण में कमी के कारण दुनिया भर में अत्यधिक खतरों के दस गुना तेज होने का अनुमान है। दुनिया की 90 फीसद से अधिक आबादी और सकल घरेलू उत्पाद के भविष्य की जलवायु के बढ़ते जटिल खतरों के संपर्क में आने का अनुमान है, यहां तक कि सबसे कम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत भी इसके जारी रहने के आसार हैं।
डॉ. यिन कहते हैं, एक बड़े मॉडल से किए गए सिमुलेशन का उपयोग और एक नई मशीन-लर्निंग से उत्पन्न कार्बन बजट डेटासेट की मदद से हमने वैश्विक स्तर पर गर्मी और पानी के कारण होने वाले तनावों के लिए पारिस्थितिक तंत्र उत्पादकता की प्रतिक्रिया को मापा।
उनका कहना है कि यह प्राकृतिक दुनिया और अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं पर मिश्रित खतरे के विनाशकारी प्रभाव को दिखता है। उन्होंने कहा कि, सीमित पानी की उपलब्धता कार्बन अवशोषण, प्राकृतिक जैव विविधता वाले क्षेत्रों की कार्बन को अवशोषित करने और ऑक्सीजन उत्सर्जित करने की क्षमता को प्रभावित करेगी।
प्रोफेसर स्लेटर कहते हैं, संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के कार्यान्वयन के लिए पृथ्वी के बढ़ते खतरों को समझना आवश्यक है, विशेष रूप से एसडीजी 13 जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभावों का मुकाबला करना है। उन्होंने कहा वायुमंडलीय गतिशीलता और जल विज्ञान के सहयोग से, हम इन चरम सीमाओं को पैदा करने में पानी और ऊर्जा बजट की भूमिका का पता लगा सकते हैं। यह अध्ययन नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुआ है।