हर सेकंड 1,337 टन सीओ2 हो रही उत्सर्जित, देरी के प्रत्येक क्षण से स्वास्थ्य पर बढ़ रहा खतरा

रिपोर्ट का दावा है कि यदि बढ़ते तापमान पर लगाम न लगाई गई तो तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ सदी के मध्य तक हर साल बढ़ती गर्मी और लू से मरने वालों का आंकड़ा 370 फीसदी बढ़ जाएगा।
हर सेकंड 1,337 टन सीओ2 हो रही उत्सर्जित, देरी के प्रत्येक क्षण से स्वास्थ्य पर बढ़ रहा खतरा
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लैंसेट ने अपनी नई रिपोर्ट में खुलासा किया है कि हर सेकंड 1,337 टन कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जित हो रही है। ऐसे में इससे निपटने के लिए कार्रवाई में की गई हर क्षण की देरी से लोगों के स्वास्थ्य और अस्तित्व पर मंडराता खतरा बढ़ रहा है।

रिपोर्ट का दावा है कि यदि बढ़ते तापमान पर लगाम न लगाई गई तो तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ सदी के मध्य तक हर साल बढ़ती गर्मी और लू से मरने वालों का आंकड़ा 370 फीसदी बढ़ जाएगा। यह भी सामने आया है कि 2018 से 22 के बीच लोगों को हर साल औसतन 86 दिनों तक इतने गर्म तापमान का सामना करना पड़ा, जो स्वास्थ्य के लिहाज से खतरनाक थे।

वहीं बुजुर्ग और नवजात शिशु जो भीषण गर्मी और बढ़ते तापमान के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं, उन्हें 1986 से 2005 की तुलना में औसतन हर साल दोगुने अत्यधिक गर्म दिनों का सामना करना पड़ रहा है। वहीं 1990 से 2000 की तुलना में देखें तो 65 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों में गर्मी से होने वाली मौतों में 85 फीसदी का इजाफा हुआ है। हालांकि यदि तापमान में वृद्धि न हुई होती तो यह आंकड़ा 38 फीसदी पर सीमित होता।

स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर बनाए लैंसेट काउंटडाउन की इस आठवीं वार्षिक रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी गई है कि केवल लू के चलते 2060 तक करीब 52.5 करोड़ अतिरिक्त लोगों को मध्यम से गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ सकता है। इसकी वजह से दुनिया भर में कुपोषण का खतरा बढ़ने की आशंका है।

यदि 1981 से 2010 की तुलना में देखें तो बढ़ती गर्मी और सूखे की वजह से 2021 में 12.7 करोड़ अतिरिक्त लोगों को मध्यम से गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा था।

बता दें कि लैंसेट द्वारा जारी यह रिपोर्ट विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) सहित दुनिया भर के 52 रिसर्च इंस्टीट्यटू के 114 विशेषज्ञों ने मिलकर तैयार की है। जो जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य पर पड़ते प्रभावों को उजागर करती है।

बढ़ते तापमान के साथ नए क्षेत्रों को निशाना बना रही बीमारियां

लैंसेट ने अपनी रिपोर्ट में यह भी दावा किया है कि बढ़ते तापमान के साथ घातक संक्रामक रोगों का दायरा बढ़ रहा है। अनुमान है कि वो समुद्री तट रेखाएं जो विब्रियो जैसे हानिकारक रोगजनकों के लिए उपयुक्त हैं उनमें 25 फीसदी तक का इजाफा हो सकता है। यदि 1982 से देखें तो विब्रियो के लिए उपयुक्त तटों की लम्बाई हर साल 329 किलोमीटर की दर से बढ़ रही है। इसकी वजह से रिकॉर्ड 140 करोड़ लोगों पर डायरिया रोग, घावों से होने वाले गंभीर संक्रमण और सेप्सिस का खतरा बढ़ गया है।

इसी तरह अनुमान है कि सदी के मध्य तक डेंगू का प्रसार भी 37 फीसदी तक बढ़ सकता है। जलवायु में आते इन बदलावों के चलते वातावरण वेस्ट नाइल वायरस के प्रसार के लिए कहीं ज्यादा उपयुक्त हो रहा है। अनुमान है कि इसकी वजह से 1951-60 से 2013-22 के बीच इसके फैलने की आशंका हर साल औसतन 4.4 फीसदी की दर से बढ़ गई है।

इसकी वजह से डेंगू, जीका, चिकनगुनिया और मलेरिया जैसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ रहा है। अनुमान है कि यदि जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयास न किए गए तो 2041 से 60 के बीच 26 फीसदी और क्षेत्रों में मलेरिया के प्रसार की आशंका बढ़ सकती है।

लैंसेट रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि जलवायु में आता बदलाव जीवन और जीविका को कैसे नुकसान पहुंचा रहा है। पता चला है कि जलवायु परिवर्तन से उपजी चरम मौसमी घटनाएं खाद्य और जल सुरक्षा पर भी आघात कर रही हैं।

रिपोर्ट के अनुसार भीषण गर्मी के संपर्क में आने से 2022 में काम के संभावित 49,000 करोड़ घंटों का नुकसान हुआ, जो 1991 से 2000 की अवधि की तुलना में 42 फीसदी की वृद्धि को दर्शाता है। आशंका जताई गई है कि यदि बढ़ते तापमान को सीमित करने के प्रयास न किए गए तो सदी के मध्य तक गर्मी से श्रम को होने वाला यह नुकसान 50 फीसदी तक बढ़ सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक जलवायु में आते यह बदलाव और उससे उपजे खतरे स्वास्थ्य के क्षेत्र में मौजूद वैश्विक खाई को और गहरा रहे हैं। इसकी वजह से स्वास्थ्य प्रणालियां कहीं ज्यादा दबाव में हैं। इस बारे में किए एक सर्वेक्षण में शामिल 27 फीसदी शहरों ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से अपनी स्वास्थ्य प्रणालियों पर पड़ते प्रभाव पर चिंता व्यक्त की है।

रिपोर्ट के मुताबिक पूर्वी साइबेरिया, पश्चिमी अमेरिका, कनाडा और भारत में जंगल की आग से होते धुएं के स्तर में भी महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। जो स्वास्थ्य के लिहाज से हानिकारक है।

बढ़ते तापमान के लिए हम इंसान ही हैं जिम्मेवार

इसमें कोई शक नहीं की आज पूरी दुनिया बढ़ते तापमान की दहक में झुलस रही है, जिसके लिए हम इंसान ही जिम्मेवार हैं। दुनिया भर में जिस तरह जीवाश्म ईंधन का उपयोग किया जा रहा है, उससे बढ़ता उत्सर्जन नित-नई ऊंचाइयों को छू रहा है। इसका सीधा असर बढ़ते तापमान और जलवायु में आते बदलावों पर पड़ रहा है।

गौरतलब है कि विशेषज्ञ पहले ही इस बात की आशंका जाता चुके हैं कि 2023 अब तक का सबसे गर्म वर्ष होगा। यदि जनवरी से अक्टूबर के औसत तापमान को देखें तो वो औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.43 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया है, जो उसे इतिहास की अब तक की सबसे गर्म अवधि बनाता है।

वहीं यदि 2022 से देखें तो दुनिया में शायद ही कोई ऐसा महाद्वीप होगा जहां बढ़ते तापमान और गर्मी ने नए रिकॉर्ड न बनाए हों। इसकी वजह से बाढ़, सूखा, तूफान और लू जैसी चरम मौसमी घटनाओं का खतरा भी बढ़ रहा है।

इतना ही नहीं रिपोर्ट के अनुसार इस बढ़ती गर्मी से निजात पाने के लिए जिस तरह से एयर कंडीशनर का उपयोग बढ़ रहा है उससे बिजली की मांग भी बढ़ रही है। 2021 में इन एयर कंडीशनरों ने करीब एक तिहाई घरों को ठंडक तो दी थी, लेकिन साथ ही करीब 1900 टेरावाट-घंटे (टीडब्ल्यूएच) बिजली की खपत भी की थी जो भारत और ब्राजील की करीब-करीब कुल बिजली खपत के बराबर है। बिजली की यह बढ़ती मांग, बढ़ते उत्सर्जन की भी वजह बन रही है।

बढ़ते उत्सर्जन को लेकर विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने भी अपनी नई रिपोर्ट में चेताया है कि वातावरण में मौजूद ग्रीनहाउस गैसें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई हैं। आंकड़ों के मुताबिक 2022 में कार्बन डाइऑक्साइड का औसत वार्षिक स्तर रिकॉर्ड 417.9 पीपीएम पर पहुंच गया है, जो औद्योगिक काल से पहले को तुलना में 50 फीसदी ज्यादा है।

इसी तरह मीथेन का औसत स्तर भी 2021 की तुलना में 16 भाग प्रति बिलियन (पीपीबी) की वृद्धि के साथ 1,923 पीपीबी पर पहुंच गया। जो वर्ष 1750 की तुलना में 264 फीसदी अधिक है। इसी तरह नाइट्रस ऑक्साइड का स्तर भी बढ़कर 335.8 पीपीबी पर पहुंच गया है।

नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के वार्षिक ग्रीनहाउस गैस इंडेक्स (एजीजीआई) से पता चला है कि 1990 से 2022 के बीच, हमारी जलवायु पर बढ़ते तापमान के प्रभाव में 49 फीसदी की वृद्धि हुई है।

आज लिए फैसलों पर निर्भर करेगा आने वाला कल का भविष्य

रिपोर्ट इस बात पर भी जोर देती है कि दुनिया गलत दिशा में जा रही है, आज हम जीवाश्म ईंधन पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं और अक्षय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक बदलावों में सबसे कमजोर समुदायों की उपेक्षा कर रहे हैं। ऐसे में रिपोर्ट के मुताबिक इस बढ़ते संकट से निपटने तत्काल व्यापक कार्रवाई की आवश्यकता है।

ऐसे में रिपोर्ट के मुताबिक इस बढ़ते संकट से निपटने तत्काल व्यापक कार्रवाई की आवश्यकता है।  देखा जाए तो पेरिस समझौते का कार्यान्वयन न केवल पर्यावरण के लिहाज से बल्कि स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से एक वैश्विक अनिवार्यता है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक यदि हम डेढ़ डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य की दिशा में सार्थक कार्रवाई करने में असफल रहते है तो उसके स्वास्थ्य पर गंभीर परिणाम होंगें।

जलवायु संकट से निपटने के लिए एक व्यापक, स्वास्थ्य-केंद्रित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करते हुए की गई जलवायु कार्रवाई से हर साल लाखों लोगों की जिंदगियां बचाई जा सकती है। साथ ही इसमें स्वास्थ्य क्षेत्र में व्याप्त असमानता को कम करने की भी क्षमता है।

मूल रूप से यह दृष्टिकोण बेहतर स्वास्थ्य के बुनियादी अधिकार का समर्थन करता है, जो स्वच्छ, स्वस्थ और शाश्वत पर्यावरण के अधिकार से निकटता से जुड़ा हुआ है। डब्ल्यूएचओ ने भी सरकारों से जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ और अक्षय ऊर्जा स्रोतों की ओर निष्पक्ष, न्यायसंगत और तेजी से बदलाव का नेतृत्व करने का आह्वान किया है।

इस बदलाव से न केवल जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद मिलेगी बल्कि दुनिया की 99 फीसदी आबादी जो दूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है उसके लिए वायु गुणवत्ता में भी सुधार होगा, जिससे वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों को कम किया जा सकेगा।

ऐसे में जब अगले माह जलवायु परिवर्तन पर होने वाली अंतराष्ट्रीय वार्ता (कॉप-28) के लिए सभी देश दुबई में जुटने वाले हैं तो उनपर सब की निगाहें टिकी हैं क्योंकि उनके द्वारा लिए जाने वाले निर्णय आने वाले कल का भविष्य तय करेंगें। डब्ल्यूएचओ ने भी सभी देशों से वैश्विक जलवायु प्रयासों में स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने का आग्रह किया है। ऐसे में हमें भी मौजूदा और भावी पीढ़ियों के स्वास्थ्य और कल्याण की सुरक्षा पर ध्यान देने के साथ, सभी के लिए एक बेहतर भविष्य सुरक्षित करने के लिए सहयोग करना चाहिए।

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