बढ़ती गर्मी से बदहाल धरती: जुलाई 2023 में 650 करोड़ लोगों ने महसूस की गर्मी की तपिश

जुलाई में दुनिया के करीब-करीब हर महाद्वीप में बढ़ते तापमान के नए रिकॉर्ड दर्ज किए गए। यहां तक की कई देशों में सर्दियां भी सामान्य से गर्म रही।
जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ रहा है गर्मी का कहर, बांग्लादेश के सिलहट में गर्मी से बदहाल रिक्शा चालक; फोटो: आईस्टॉक
जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ रहा है गर्मी का कहर, बांग्लादेश के सिलहट में गर्मी से बदहाल रिक्शा चालक; फोटो: आईस्टॉक
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बढ़ते तापमान का असर अब खुलकर सामने आने लगा है। यही वजह है कि जुलाई 2023 में जलवायु परिवर्तन से जुड़े कई नए रिकॉर्ड बने। इस बारे में जारी एक नई रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई 2023 में धरती की करीब 81 फीसदी आबादी यानी 650 करोड़ लोगों ने बढ़ते तापमान की वजह से गर्मी की तपिश महसूस की थी।

जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों पर काम कर रहे अंतराष्ट्रीय संगठन क्लाइमेट सेंट्रल ने एक अगस्त 2022 को जारी अपनी नई रिपोर्ट में कहा है कि जुलाई 2023 के दौरान हर पांच में से चार लोगों ने महीने में एक न एक दिन बढ़ती गर्मी के कारण पसीना बहाया था। वहीं इस दौरान करीब 200 करोड़ लोग पूरे महीने जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ती गर्मी का सामना करने को मजबूर थे।

इस बाबत विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने सोमवार को जानकारी साझा करते हुए लिखा कि उत्तरी गोलार्ध का बड़ा हिस्सा भीषण गर्मी और लू की चपेट में है। यदि मेन यूनिवर्सिटी के क्लाइमेट रीएनालाइजर द्वारा जारी आंकड़ों को देखें तो सात जुलाई 2023 को दुनिया का सबसे गर्म दिन दर्ज किया गया था। लेकिन क्लाइमेट सेंट्रल ने जो आंकड़े साझा किए हैं उनके अनुसार दस जुलाई 2023 को स्थिति सबसे ज्यादा खराब थी, जब दुनिया भर में करीब 350 करोड़ लोगों ने भीषण गर्मी को अनुभव किया था।

क्लाइमेट सेंट्रल द्वारा किया गया यह अध्ययन क्लाइमेट शिफ्ट इंडेक्स (सीएसआई) नामक टूल की मदद से किए विश्लेषण पर आधारित है, जो दर्शाता है कि जुलाई 2023 के दौरान जलवायु परिवर्तन ने दुनिया भर में तापमान को असामान्य रूप से प्रभावित किया है। इस विश्लेषण में 200 देशों के साथ 4,700 शहरों को भी शामिल किया गया है।

विश्लेषण के अनुसार जुलाई के दौरान मेक्सिको, दक्षिणी अमेरिका और दक्षिणी यूरोप में भीषण गर्मी दर्ज की गई थी। इसके साथ ही फ्लोरिडा, कैरेबियन, मध्य अमेरिका, उत्तरी अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण के दसत दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ हिस्से भी इस दौरान भीषण गर्मी की चपेट में थे।

इतना ही नहीं भूमध्य रेखा के आसपास और छोटे द्वीपों पर रहने वाले लोगों ने जुलाई के दौरान तापमान पर जलवायु परिवर्तन का असाधारण तौर पर गहरा प्रभाव अनुभव किया था। इसी तरह उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में भी बढ़ते तापमान के निशान देखने को मिले।

रिपोर्ट के अनुसार जुलाई के दौरान करीब-करीब सभी महाद्वीपों में तापमान ने नए रिकॉर्ड बनाए थे। उदाहरण के लिए अफ्रीका में रात्रि के समय तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया जब अल्जीरिया के अद्रार में छह जुलाई को तापमान 39.6 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। इसी तरह 23 जुलाई को अल्जीरिया के अल्जीयर्स में तापमान रिकॉर्ड 48.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।

वहीं ट्यूनीशिया के कैरौअन में तापमान 49 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। इस दौरान मिस्र में लू का कहर जारी था। इसी तरह चीन, भारत और मध्य पूर्व सहित एशिया के कुछ हिस्सों में जुलाई के दौरान रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ी। भारत में भी जून में चली लू के बाद जुलाई में भी गर्मी का कहर जारी रहा।

इतना ही नहीं जहां कजाकिस्तान में बढ़ता तापमान सामना से 2.1 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया। वहीं उज्बेकिस्तान में भी यह सामान्य से 1.9 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा। ऐसी ही स्थिति यूरोप की थी जहां मोंटेनेग्रो में तापमान सामान्य से 2.1 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा।

अमेरिका में 24.4 करोड़ लोगों ने जोकि देश की कुल आबाद का 73 फीसदी हिस्सा है, उन्होंने जुलाई में कम से कम एक दिन जलवायु परिवर्तन के चलते सामान्य से तीन गुना ज्यादा तापमान अनुभव किया था। हालांकि जिस बढ़ते तापमान का कहर वो झेल रहे हैं इसके लिए वो खुद ही जिम्मेवार हैं।

यहां तक की इसके प्रभाव उन क्षेत्रों में भी स्पष्ट थे जहां जुलाई में सर्दियों का मौसम रहता है। जहां ओशिनिया में इस महीने सर्दियों का मौसम सामान्य से ज्यादा गर्म रहा। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड दोनों ही देशों में यह महीना सामान्य से ज्यादा गर्म रहा।

इस दौरान पेरू की राजधानी लीमा में सर्दियों का सबसे गर्म दिन दर्ज किया गया, जब तापमान 27.2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। इस दौरान दक्षिण अमेरिका के ज्यादातर हिस्सों में सर्दियों के दौरान लू का कहर जारी था। नतीजन रात का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। जुलाई के दौरान उरुगुए में भी लू का कहर देखा गया।

गौरतलब है कि दुनिया भर के जलवायु वैज्ञानिक पहले ही इस बात की घोषणा कर चुके हैं कि जुलाई 2023 अब तक के जलवायु इतिहास का सबसे गर्म जुलाई होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि दुनिया इस समय बढ़ते तापमान के ऐसे स्तर का अनुभव कर रही है, जो पिछले एक लाख से अधिक वर्षों में नहीं देखा गया है।

जलवायु परिवर्तन पर बनाए अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने अपनी 2021 में जारी जलवायु मूल्यांकन रिपोर्ट में यह बात कही थी कि वैश्विक तापमान एक लाख से अधिक वर्षों के अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच रहा है।

बढ़ती गर्मी से बदहाल धरती

इस बारे में मेन यूनिवर्सिटी के क्लाइमेट चेंज इंस्टीट्यूट द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई के पहले 20 दिनों में तापमान 1979 से 2021 के औसत तापमान की तुलना में कहीं ज्यादा था। जो कहीं न कहीं इस ओर इशारा करता है कि इस साल जुलाई का तापमान पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ सकता है। देखा जाए तो जुलाई कहीं न कहीं जून के नक्शे कदम पर चल रहा है, जो विश्व मौसम विज्ञान संगठन के मुताबिक जलवायु इतिहास का सबसे गर्म जून था।

जुलाई के दौरान उत्तरी अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, दक्षिणी यूरोप और चीन एक साथ लू की चपेट में थे। वहीं यूरोप में, ग्रीस, पूर्वी स्पेन, सार्डिनिया, सिसिली और दक्षिणी इटली के कुछ हिस्सों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच गया था।

इटली के सार्डिनिया द्वीप के एक स्टेशन पर 24 जुलाई 2023 को तापमान 48.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। वहीं अल्जीरिया में 23 जुलाई को उच्चतम तापमान 48.7 डिग्री सेल्सियस और ट्यूनीशिया में 49 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। स्पेन के फिगुएरेस (कैटेलोनिया) में 18 जुलाई को 2023 को तापमान रिकॉर्ड 45.4 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया था।

अमेरिकी नेशनल वेदर सर्विस क्लाइमेट प्रिडिक्शन सेंटर का कहना है कि मध्य-पश्चिमी अमेरिका के कई स्थान साल के अपने सबसे गर्म तापमान तक पहुंच सकते हैं। वहीं डब्लूएमओ के अनुसार फ्लोरिडा के कई हिस्से लंबे समय से रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की चपेट में हैं। चीन के मौसम विज्ञान प्रशासन ने भी पुष्टि की थी कि 16 जुलाई 2023 को, तुरपान शहर के सैनबाओ टाउनशिप स्टेशन में तापमान पुराने ऐतिहासिक रिकॉर्ड तोड़ते हुए 52.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।

अमेरिका के फीनिक्स में भी लगातार 31 दिनों तक तापमान 43.3 डिग्री सेल्सियस से ऊपर दर्ज किया गया। यह बढ़ता तापमान अपने साथ गर्मी और लू को भी साथ लेकर आया। जो सबसे जानलेवा प्राकृतिक आपदाओं में से एक है।

दक्षिण-मध्य और दक्षिण-पूर्व अमेरिका में भी अधिकतम तापमान 43 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच गया था। मियामी सहित फ्लोरिडा के कई हिस्से लंबे समय तक रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की चपेट में थे। फीनिक्स, एरिजोना में 30 जुलाई को औसत तापमान 43.3 डिग्री सेल्सियस से ऊपर दर्ज किया गया। वहीं कैलिफोर्निया के डेथ वैली नेशनल पार्क में तापमान 16 जुलाई को 53.3 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था।

वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन नेटवर्क में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में भी उत्तरी अमेरिका, चीन और यूरोप में पड़ती भीषण गर्मी के लिए जलवायु परिवर्तन को वजह माना है। अध्ययन के मुताबिक भीषण गर्मी और लू की यह घटनाएं स्पष्ट तौर पर जलवायु परिवर्तन की ओर इशारा करती हैं।

अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन के बिना लू की इन घटनाओं का होना करीब-करीब नामुमकिन था। यदि इंसानों द्वारा किया जा रहा उत्सर्जन न होता तो चीन में करीब 250 सालों में इस तरह की घटना घटती। वहीं जुलाई 2023 में अमेरिका/मेक्सिको और दक्षिणी यूरोप में जिस तरह गर्मी पड़ी, उसका होना करीब-करीब असंभव था।

यूनिसेफ द्वारा जारी नई रिपोर्ट “बीट द हीट: प्रोटेक्टिंग चिल्ड्रन फ्रॉम हीटवेव्स इन यूरोप एंड सेंट्रल एशिया” ने भी बढ़ती गर्मी और लू के खतरों को उजागर करते हुए लिखा है कि यूरोप और मध्य एशिया में हर दूसरे बच्चे को लू से खतरा है। वहीं अनुमान है कि बढ़ते तापमान के चलते अगले 27 वर्षों में दुनिया का करीब-करीब हर बच्चा लू की चपेट में होगा।

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