मानव आधारित उत्सर्जन से बढ़ते वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के कारण दुनिया भर में भूमि की सतह के तापमान में वृद्धि हो रही है, जो जलवायु में बदलाव के लिए जिम्मेदार है। इस तरह की प्रतिकूल परिस्थितियों में फसल उगाने, भोजन और ईंधन की मांग को पूरा करना चुनौतीपूर्ण है।
इसके अतिरिक्त दुनिया के कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां फसलें उगाई जाती हैं, जैसे समशीतोष्ण, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की तुलना में इनके अधिक गर्म होने की आशंका है। दुनिया भर में मक्का और गेहूं जैसी प्रमुख फसलों के उपज में होने वाले नुकसान के लिए बढ़ते तापमान को जिम्मेदार ठहराया गया है।
जलवायु परिवर्तन के बारे में अध्ययन करने वाले कृषि वैज्ञानिक अक्सर इस बात पर अधिक जोर देते हैं, कि वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ने से फसल की पैदावार पर किस तरह का प्रभाव पड़ेगा। लेकिन शोध से पता चला है कि तापमान बढ़ने से इसमें भारी बदलाव के आसार हैं।
पौधों के प्रकाश संश्लेषण पर तापमान का असर
शोधकर्ताओं ने बताया कि अत्यधिक गर्मी प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने वाले एंजाइमों के कार्य करने की क्षमता को कम कर सकती है, पौधों की सीओ 2 और पानी को अवशोषित करने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है।
पौधों की संरचनात्मक विशेषताएं उन्हें अधिक या कम गर्मी के दबाव में अतिसंवेदनशील बना सकती हैं। पारिस्थितिक तंत्र की विशेषताएं जैसे कि पौधों का आकार, उनका घनत्व, पौधों पर किस तरह की पत्तियां हैं और स्थानीय वातावरण कि स्थिति आदि से भी पता चलता है कि गर्मी फसल की पैदावार को कैसे प्रभावित करेगी।
शोधकर्ताओं ने कहा कि इन सभी मुद्दों की समझ होना महत्वपूर्ण है, हर तरह की पत्तियों की जैव रसायन से लेकर पारिस्थितिक तंत्र के स्तर पर पड़ने वाले प्रभाव इन समस्याओं से निपटने के तरीके खोजने में मदद कर सकते हैं।
शोधकर्ता कार्ल बर्नैची ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से बढ़ते सीओ 2 और पौधों पर पड़ने वाले प्रभाव पर बहुत ध्यान दिया गया है। लेकिन यह बड़ी कहानी का एक छोटा सा हिस्सा है। एक बार जब बढ़ता तापमान और सीओ 2 आपस में मिल जाते हैं, तो यह समझना कठिन हो जाता है कि पौधे इस वातावरण में किस तरह की प्रतिक्रिया देंगे।
शोधकर्ता कैवनघ ने कहा रूबिस्को एक प्रमुख एंजाइम है, जो शर्करा में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को निश्चित करता है, जिसकी वजह से पृथ्वी पर जीवन संभव है। तापमान बढ़ने के साथ ही रूबिसो की गति बढ़ जाती है, जिससे इसमें गलतियां होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
अत्यधिक गर्मी पौधे के प्रजनन उत्पादन को कमजोर कर सकती है। गर्मी के प्रति संवेदनशील अन्य एंजाइम पौधों के ऊतकों को शक्कर ले जाने में अहम भूमिका निभाते हैं, जिससे पौधे अनाज या फलों को विकसित कर उनका उत्पादन करते हैं।
स्टोमेटा और पौधे की प्रणालियों पर तापमान का प्रभाव
जब तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है, तो खुद को ठंडा करने के लिए पौधे की पत्तियां अपने सतहों पर छिद्रों को खोलती हैं, जिसे स्टोमेटा कहा जाता है। स्टोमेटा पौधों को वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने में मदद करता है, लेकिन जब वे पूरी तरह से खुले होते हैं, तो पत्ती बहुत अधिक नमी खो सकती है।
शोधकर्ता मूर ने कहा तापमान पौधे के ऊपर के वातावरण को प्रभावित करता है। जिससे वातावरण गर्म होता है, यह अतिरिक्त पानी को वातावरण में बनाएं रख सकता है, इसलिए यह पौधों से अधिक पानी खींच रहा है। यह शोध एक्सपेरिमेंटल बॉटनी में प्रकाशित हुआ है।
वैज्ञानिक इस तरह के परिवर्तनों को फसलों, पौधों के अनुकूल बनाने के तरीकों की तलाश कर रहे हैं। पौधों पर तापमान का अधिक असर होने पर उनके पत्ते भूरे रंग में बदल जाते हैं। अब इस तरह के उपकरणों को विकसित किया जाए ताकि फसलों पर तापमान के असर के बारे में पहले ही पता चल जाए। जिससे किसान अधिक नुकसान होने से पहले इस समस्या से निपट सके।
अन्य रणनीतियों में इंजीनियरिंग संरचनाएं शामिल हैं जो रूबिस्को एंजाइम की क्षमता में सुधार करने के लिए कार्बन निर्धारण करने वाली जगह पर अधिक सीओ2 पंप करती हैं। सूरज की रोशनी और नमी के स्तर को बनाए रखने के लिए पौधों के सबसे ऊपर और तल पर पत्तियों के प्रकाश-इकट्ठा करने वाले गुणों को बदलना और सीओ2 के प्रवाह और नमी के नुकसान के नियंत्रण में सुधार करने के लिए छिद्र के घनत्व को बदलना इसमें शामिल है।
कैवनघ ने कहा दुनिया चौंकाने वाली दर से गर्म हो रही है। हम वैश्विक मॉडलों के आधार पर जानते हैं कि हर डिग्री सेल्सियस बढ़ते तापमान के कारण चार मुख्य फसलों (मक्का, गेहूं, चावल और सोयाबीन) की उपज में 3 से 7 फीसदी की हानि हो सकती है। इसलिए, यह ऐसी चीज है जिसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं।