चरम मौसम में अलग-अलग होती है बीमारी फैलने की दर और असर

अध्ययन में कहा गया है कि तापमान में उतार-चढ़ाव जैसे कि लू या हीट वेव में बीमारी फैलने की दर और प्रभाव अलग-अलग हो सकते हैं।
 फोटो :फ्रेडरिक-एबर्ट-स्टिचुंग
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दुनिया भर में तापमान में वृद्धि और चरम मौसम की घटनाएं अब अधिक सामान्य हो गई हैं। जिसके कारण जीवों में रोग फैलाने वाले रोगजनक के परस्पर प्रभावों के परिणामों का अनुमान लगाना अब और भी कठिन हो गया है।

संक्रामक रोगों का मानव, कृषि और वन्यजीव आबादी पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह सर्वविदित है कि रोग फैलाने वालों और जो संक्रमित होते हैं वे तापमान में होने वाले बदलाव के प्रति संवेदनशील होते हैं। लेकिन जो बात सही से समझ में नहीं आती है वह यह है कि अचानक और अत्यधिक तापमान में होने वाला अंतर इस संबंध पर किस तरह के असर डालता है। साथ ही यह संक्रमण दर और रोग के परिणामों को कैसे प्रभावित करता है।

अध्ययनकर्ता पेपिजन लुइज्क्स के मुताबिक जलवायु परिवर्तन का अनुमान लगाना न केवल औसत तापमान बल्कि तापमान में उतार-चढ़ाव और चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता को बढ़ाने के लिए की जाती है। अध्ययनों ने संक्रमण का सामना करने वालों और रोग फैलाने वालों पर बढ़ते औसत तापमान के प्रभावों को निर्धारित किया है, लेकिन बदलते तापमान जैसे कि लू या हीटवेव के प्रभाव के बारे में जानकारी काफी कम है।

लुइज्क्स और उनकी टीम ने एक जीव में अलग-अलग लक्षणों के आधार पर विभिन्न तापमानों के प्रभावों का पता लगाया। यह जीव डैफनिया मैग्ना नामक एक छोटा क्रस्टेशियन (कड़े खोल वाला जीव) और इसके ज्ञात आंत के परजीवी, ओडोस्पोरा कोलिगाटा था। परजीवी पर फैलने वाला रोग सार्स-सीओवी-2 और हैजा जैसी बीमारियों में देखा जाता है।

अध्ययनकर्ताओं  की टीम ने देखा कि जीवों ने तीन अलग-अलग तापमान में किस तरह की प्रतिक्रिया दी। पहला स्थिर तापमान, दूसरा लगातार बदलने वाला तापमान, जिसमें रोज 3 डिग्री सेल्सियस का उतार-चढ़ाव था। तीसरा परिवेशीय तापमान 6 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जहां लू चल रही हो। फिर उन्होंने क्रस्टेशियन के जीवनकाल, प्रजनन क्षमता, संक्रमण की स्थिति और उनकी आंत के भीतर परजीवी बीजाणुओं की संख्या को मापा। इसके बाद, उन्होंने तीन अलग-अलग तापमान व्यवस्थाओं के प्रभाव की तुलना करने के लिए डेटा को एक सांख्यिकीय मॉडल के साथ जोड़ा।

टीम ने पाया कि तापमान में रोज के उतार-चढ़ाव ने लगातार औसत तापमान की तुलना में परजीवी की संक्रामकता और बीजाणुओं के बोझ को कम कर दिया। हालांकि, इसके विपरीत, एक लू या हीटवेव के बाद परजीवियों की संक्रामकता लगभग स्थिर तापमान पर बनाए रखने वालों की संक्रामकता के समान थी।

इसके अलावा, तीन दिन के लू या हीटवेव के बाद क्रस्टेशियन में बीजाणुओं की संख्या में वृद्धि हुई, जब परिवेशीय तापमान 16 डिग्री सेल्सियस था, लेकिन यह भार उच्च तापमान पर कम हो गया था। इससे पता चलता है कि अलग-अलग तापमान के प्रभाव औसत परिवेशीय तापमान के आधार पर भिन्न होते हैं और क्या यह परजीवी के लिए सबसे अच्छे तापमान के करीब है?

परजीवी बीजाणुओं के संपर्क में आने वाले क्रस्टेशियन में या बदलते तापमान का अनुभव करते समय मेजबान स्वस्थ रहने और प्रजनन सफलता आम तौर पर कम हो गई थी। जीवों और रोग फैलाने वाले की प्रतिक्रियाओं के बीच के अंतर को बताता है कि कुछ परिस्थितियों में परजीवी अपने मेजबान की तुलना में गर्मी में अचानक बदलाव को बेहतर ढंग से झेलने में सक्षम थे।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि तापमान में अंतर जीवों और रोग फैलाने वालों के परस्पर क्रिया के परिणाम को बदल देती है। न केवल तापमान में भिन्नता अलग-अलग जीवों और रोग फैलाने वालों के लक्षणों को एक अलग तरीके से प्रभावित करती है, बल्कि इनमें बीमारी के परिणाम भी अलग-अलग होते हैं। इसका मतलब है कि जलवायु परिवर्तन के बदलते पैटर्न, ग्लोबल वार्मिंग के कारण औसत तापमान में बदलाव के चलते रोग की गतिशीलता पर गहरा और अप्रत्याशित प्रभाव हो सकता है। यह अध्ययन ईलाइफ में प्रकाशित हुआ है।

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