आवरण कथा: गर्मी से मुकाबले की अनोखी पहल, जलवायु सखियों ने संभाला मोर्चा

मौसम पर निगरानी रखने वाले उपकरण से लैस और लू के प्रतिकूल प्रभावों से प्रशिक्षित तीन जलवायु सखियां दिल्ली की कच्ची बस्ती में रहने वाले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित कर रही हैं
अधिक मशीनीकरण वाले इलाकों में भार ढोने वाले जानवर के रूप में गधों का उपयोग अब बहुत कम होता है। मांग में आई कमी भी उनकी आबादी में भारी गिरावट को दर्शाती है (फोटो : केए श्रेया / सीएसई)
अधिक मशीनीकरण वाले इलाकों में भार ढोने वाले जानवर के रूप में गधों का उपयोग अब बहुत कम होता है। मांग में आई कमी भी उनकी आबादी में भारी गिरावट को दर्शाती है (फोटो : केए श्रेया / सीएसई)
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गर्मी के बदलते मायनों और असर को लेकर डाउन टू अर्थ की खास सीरीज की पहली कड़ी में आपने पढ़ा इस साल दिन तो क्या रातों में भी बरस रहे अंगार, कैसे रह रहे हैं एसी के बिना लोग, दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा रातों में शहरों के मुकाबले ज्यादा तेजी से ठंडे होते हैं गांव जबकि तीसरी कड़ी में आपने पढ़ा बढ़ती तपिश के लिए जलवायु व भूगोल ही जिम्मेवार नहीं, 'विकास' भी दोषी! लेकिन आज पढ़ें कि कैसे गर्मी से मुकाबले की तैयारियां भी हो रही हैं

दिल्ली में विदेशी राजनयिकों के लिए सुनियोजित ढंग से तैयार चाणक्यपुरी के विवेकानंद कैंप की तस्वीर एकदम अलग है। तकरीबन 2000 घरों वाली इस कच्ची बस्ती को मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल और हरियाणा के कूड़ा बीनने वालों ने अपना आशियाना बना रखा है। ये लोग लगातार भयंकर गर्मी का प्रकोप झेलने को मजबूर हैं।

यहां के वयस्क कूड़े-कचरे और कबाड़ के ढेर से बाजार में बिकने लायक चीजें चुनते हैं। इस तरह आग उगलते सूरज तले अपना पूरा दिन बिताना उनकी नियति बनी हुई है।

कैंप की निवासी झरना कहती हैं, “गर्मियों की तपती दोपहरों में स्कूल से घर लौटते समय हमारे बच्चे अक्सर बेहोश हो जाते या उल्टियां करने लगते थे। हमें समझ ही नहीं आता था कि हम उनकी कैसे मदद करें।”

पानी की जबरदस्त किल्लत झेल रहे इस इलाके के लोगों को मोटे तौर पर तय समय पर आने वाले पानी के टैंकरों पर निर्भर रहना पड़ता है। एक और स्थानीय निवासी कस्तूरा बताती हैं, “अगर टैंकर ऐसे समय पर आए जब घर पर कोई वयस्क न हो तो बच्चे पानी के बर्तन हाथों में लेकर उसकी ओर दौड़ते हैं, जिससे उनकी थकान और बढ़ जाती है।”

बहरहाल, मार्च 2023 से झरना, कस्तूरा और उनकी पड़ोसन दुलाली खातून “जलवायु सखी” के तौर पर काम कर रही हैं, जिनका मकसद इस बस्ती के लोगों को तपिश की मार से लड़ने में मदद पहुंचाना है।

दिल्ली की गैर-लाभकारी संस्था चिंतन एनवायरमेंटल रिसर्च एंड एक्शन ग्रुप की पहल के तहत इन महिलाओं को लू के प्रतिकूल प्रभावों और उनसे निपटने के तौर-तरीकों के बारे में प्रशिक्षित किया गया है। ये तीनों महिलाएं दूसरों के साथ अपना यही ज्ञान साझा करती हैं।

कस्तूरा बताती हैं, “हमें अब ये पता है कि अगर कोई तपिश के चलते अचेत हो जाए या उसकी सांस उखड़ने लगे तो हमें उन्हें जबरन पानी नहीं पिलाना चाहिए क्योंकि इससे उनका दम घुट सकता है। इसकी बजाए हमें उनके कपड़ों को ढीला करके उनके माथे और बदन पर गीली सूती पट्टी रखनी चाहिए, ताकि उनके शरीर का तापमान ठंडा हो जाए। हम लोगों को धूप में बाहर जाते वक्त नरम कपड़े या तौलिए से अपना सिर ढकने की सलाह भी देते हैं।”

चिंतन के साथ-साथ दिल्ली की एक और गैर-लाभकारी संस्था एसईईडीएस इंडिया ने तीनों सखियों को मौसम पर निगरानी रखने वाली इकाई से भी लैस कर दिया है। इसके बारे में विस्तार से बताते हुए कस्तूरा कहती हैं, “मेरे घर की छत पर इस यूनिट का ट्रैकर है और मेरे कमरे में इसकी डिजिटल तस्वीर दिखाने वाला उपकरण लगाया गया है, जो पूरे दिन बाहर और अंदर के तापमान के साथ-साथ नमी के स्तरों को दर्शाता है।”

वह दिन में तीन बार चिंतन के विशेषज्ञों के साथ इसके नतीजे साझा करती हैं, जो आंकड़ों का विश्लेषण करके उसे तपिश की गंभीरता पर जरूरी परामर्श देते हैं।

कस्तूरा आगे बताती हैं, “इस मशीन से प्राप्त जानकारी के आधार पर हम बोर्ड पर हरे, पीले या लाल रंग के प्लेट डालते हैं। लोगों को तपिश से बचने के लिए एहतियात बरतने की जानकारी देने के लिए ये बोर्ड हमारी बस्ती में चुनिंदा स्थानों पर लगाए गए हैं”।

उसके अनुसार, “लाल सबसे खराब संकेत है। आमतौर पर नमी के साथ-साथ तापमान के 40 डिग्री सेल्सियस के करीब रहने पर हम इस रंग की प्लेट लगाते हैं।” लाल प्लेट के साथ लोगों के लिए चेतावनी भी जारी की जाती है जिसमें उन्हें घर के बाहर कामकाज रोकने या अगर वे तपिश के बावजूद अपना काम नहीं टाल सकते तो काम के बीच हर 50 मिनट पर ब्रेक लेने को सलाह दी जाती है। पीला प्लेट लोगों को झाग वाले पेय, चाय या काफी की बजाए भरपूर मात्रा में पानी, लस्सी, छाछ और नींबू पानी पीने को कहता है।

झरना कहती हैं, “बोर्ड पढ़कर लोग अक्सर हमें बताते हैं कि वे बाहर जाना नहीं टाल सकते क्योंकि इससे उनकी कमाई पर असर पड़ेगा। हमें उन्हें समझाते हैं कि आमदनी में कुछ दिनों का नुकसान स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव बढ़ाने वाले खतरे से बेहतर है।”

जलवायु सखियों के काम से अनेक फायदे हुए हैं। खासतौर से महिलाओं के लिए ये लाभकारी रहा है। कस्तूरा बताती हैं कि “तपती धूप से बचने के लिए हमने खुले में लकड़ी या कोयला जलाने की बजाए रसोई के लिए गैस के उपयोग को बढ़ावा देना शुरू किया। अनेक परिवार अब घर के अंदर खाना पकाते हैं, जिससे हमारी सेहत बेहतर हुई है। हमें अब धुएं में सांस लेने पर मजबूर नहीं होना पड़ता।”

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