कॉप29: जलवायु वित्त को लेकर विकसित व विकासशील देशों के बीच टकराव बढ़ा

समाप्ति की ओर बढ़ रहे कॉप29 में अब विकसित देशों द्वारा जलवायु वित्त के तौर पर 200-300 बिलियन डॉलर देने के प्रस्ताव की चर्चा को विकासशील देशों ने खारित कर दिया
(बाएं से दाएं) बोलिविया के डिएगो पाचेको, जी77 और चीन समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले अडोनिया आयेबारे, और अफ्रीकी समूह के वार्ताकार अली मोहम्मद।
फोटो: जोएल माइकल
(बाएं से दाएं) बोलिविया के डिएगो पाचेको, जी77 और चीन समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले अडोनिया आयेबारे, और अफ्रीकी समूह के वार्ताकार अली मोहम्मद। फोटो: जोएल माइकल
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संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसह) के 29वें सम्मेलन (कॉप29) में वार्ताएं धीरे-धीरे उबाल पर पहुंचने लगी हैं, क्योंकि जलवायु वित्त के नए लक्ष्य न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल (एनसीक्यूजी) के प्रति बातचीत समाप्ति की ओर बढ़ रही है। यूरोपीय संघ और वैश्विक मीडिया द्वारा जलवायु वित्त में 200-300 बिलियन डॉलर के आंकड़े की अफवाहें जोर पकड़ने के बाद विकासशील देशों के नेताओं ने 20 नवंबर को एक विशेष संवाददाता सम्मेलन बुलाया। 

इस मौके पर 77 देशों के समूह जी77 और चीन समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले राजदूत अडोनिया आयेबारे ने सभी को याद दिलाया कि उन्होंने सम्मेलन के पहले दिन ही वित्त के लिए अपनी मांगें पेश की थीं। जी77 ने  सालाना 1.3 ट्रिलियन डॉलर  की मांग की थी। 

आयेबारे ने कहा कि विकसित देशों ने इसका जवाब चुप रह कर दिया और कोई विस्तृत योजना पेश नहीं की। उनके मुताबिक यह अत्यंत आवश्यक है कि विकसित देश आगे कदम बढ़ाएं और उन उम्मीदों को पूरा करें जो विकासशील देशों ने जलवायु आपातकाल के मोर्चे पर खड़े होकर तय की हैं। 

अफ्रीकी समूह के प्रतिनिधि एवं केन्या के जलवायु दूत अली मोहम्मद ने भी यही कहा कि अब तक राशि के निर्धारण पर कोई पुष्टि नहीं हुई है, जबकि विकसित देशों पर यह स्पष्ट दायित्व है कि वे जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकासशील देशों को तत्काल और जरूरी सहायता प्रदान करें। 

जब यूरोपीय सहयोगियों द्वारा पेश किए गए 200 बिलियन डॉलर के प्रस्ताव के बारे में पूछा गया, जो 1.3 ट्रिलियन डॉलर से बहुत ज्यादा कम है तो बोलिविया के डिएगो पाचेको ने कहा, “क्या यह मजाक है?” पाचेको समान विचार वाले विकासशील देशों (एलएमडीसी ) का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।  

मोहम्मद ने जोड़ते हुए कहा, “हमें नहीं पता कि आप 200 बिलियन डॉलर का आंकड़ा कहां से ला रहे हैं। जितनी राशि का दावा हम पेश कर रहे हैं, वह इस राशि से कहीं अधिक है। एडाप्टेशन (अनुकूलन) गैप रिपोर्ट ने विकासशील देशों में अनुकूलन जरूरतों को पूरा करने के लिए 400 बिलियन डॉलर तक के अंतर का अनुमान लगाया था। यही कारण है कि साथी पूछ रहे हैं क्या यह मजाक है। यह तो अनुकूलन के अंतर को भी पूरा नहीं कर सकता, दूसरी जरूरतों की तो बात ही अलग है।” 

आयेबारे ने कहा, “हमें ट्रिलियन में एक राशि चाहिए, हमें 1.3 ट्रिलियन डॉलर की राशि चाहिए।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9.1 में स्पष्ट है: वित्त को विकसित देशों से विकासशील देशों की ओर बहना चाहिए और एनसीक्यूजी को पेरिस समझौते को फिर से खोलने का कारण नहीं बनना चाहिए। हालांकि, वे कुछ विकासशील देशों से स्वैच्छिक योगदान की बात पर विचार कर सकते हैं। 

पाचेको ने राजनीतिक इच्छाशक्ति पर बल देते हुए कहा, “यह सच नहीं है कि पैसा नहीं है, पैसा बहुत है। हमें युद्धों से पैसे को मोड़कर जलवायु संकट को हल करने की दिशा में इस्तेमाल करना चाहिए।”

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