आखिरकार, कॉप 27 वार्ताओं के अंत में कुछ आशा की किरण नजर आई है। जब कॉप 27 प्रेसीडेंसी ने 19 नवंबर, 2022 को एक ड्राफ्ट पेपर जारी किया, जिसमें उन्होंने शर्म अल-शेख में हानि और क्षति (लॉस एंड डैमेज) के मुद्दे पर वित्त सुविधा बनाने का प्रस्ताव रखा, जिसका विवरण बाद में तैयार किए जाएगा।
इस मामले में जो विकास हुआ है वो मोटे तौर पर विकासशील देशों की मांग के अनुरूप है। अब यह जिम्मेवारी विकसित देशों पर है कि वे इस प्रस्ताव को स्वीकार करें या उसे नकार दें।
साथ ही इस पूरी बातचीत और चर्चा का प्रारूप भी सामने आ चुका है, जिसमें 100 बिंदुओं को ध्यान में रखा गया है। हलांकि हानि और क्षति के मामले में फंडिंग को बातचीत के लिए छोड़ दिया गया है, जिसपर अलग से ड्राफ्ट प्रस्तुत किया गया है।
प्रेसीडेंसी ने स्थानीय समयानुसार दोपहर 1 बजे या भारतीय समय के अनुसार शाम 4.30 बजे इस पर दस्तावेज जारी किया गया था। इस ड्राफ्ट में अध्यक्ष ने स्वीकार किया कि, जलवायु परिवर्तन के पड़ते प्रतिकूल असर से जुड़े आर्थिक और गैर आर्थिक नुकसान से उबरने में विकासशील देशों की सहायता के लिए नए, अतिरिक्त, पूर्वानुमेय और पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की तत्काल आवश्यकता है।
इसमें मौसम की चरम घटनाओं और उनकी धीमी शुरुआत के समय और उसके बाद में होने वाली हानि और क्षति से उबरने के लिए वित्तीय मदद शामिल है।
इस बारे में अध्यक्ष ने जानकारी दी है कि प्रस्तावित नई फंडिंग व्यवस्था हानि और क्षति के जवाब में विकासशील देशों की सहायता के लिए है। इसमें नए और अतिरिक्त संसाधन जुटाने में सहायता प्रदान करके हानि और क्षति से निपटने पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है।
ड्राफ्ट के अनुसार ये नई व्यवस्थाएं जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन और पेरिस समझौते के अलावा अन्य स्रोतों, निधियों, प्रक्रियाओं और पहलों से वित्तीय सहायता के लिए मौजूदा व्यवस्थाओं की पूरक हैं। इस प्रकार वे ग्लोबल शील्ड जैसी जर्मन पहलों के लिए भी संभावनाएं खोलती हैं।
अध्यक्ष द्वारा जारी इस मसौदे में हानि और क्षति के साथ स्थापित निधि के मुद्दे को हल करने के लिए नई धन व्यवस्था के संचालन पर एक ट्रान्सिशनल कमेटी की स्थापना के बारे में भी बात की गई है।
इस बारे में अध्यक्ष ने प्रस्तावित किया कि फंडिंग के विवरण को कॉप 28 के दौरान अंतिम रूप दिया जाएगा, जोकि 2023 में नवंबर-दिसंबर के बीच आयोजित की जाएगी, जिससे फंडिंग व्यवस्था को क्रियान्वित किया जा सके। मसौदे में संस्थागत व्यवस्था, तौर-तरीकों, संरचना, शासन और कोष के संदर्भ में शर्तों की स्थापना की ओर भी इशारा किया गया है।
यह मसौदा "वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ संस्थानों के वर्तमान परिदृश्य के बारे में बात करता है, जो हानि और क्षति को संबोधित करने से संबंधित गतिविधियों को वित्त पोषित कर रहे हैं।" यह उन तरीकों को भी नोट करता है, जिन तरीकों से उनके बीच सामंजस्य, समन्वय और सहक्रिया को बढ़ाया जा सकता है।
इसमें कहा गया है, उस मौजूदा परिदृश्य के भीतर मौजूद अंतराल, जिसमें अंतर के प्रकार जैसे कि गति, योग्यता, पर्याप्तता और वित्त तक पहुंच शामिल हैं, उनसे संबंधित मुद्दों को संबोधित किया जाएगा।
इसमें जिन प्राथमिक मुद्दों में अंतराल हैं उनके समाधान तलाशे जाएंगे। साथ ही कमजोर आबादी और पारिस्थितिक तंत्र जिस पर वे निर्भर हैं, पर विचार करते हुए इन अंतरालों को सबसे प्रभावी तरीकों से कैसे संबोधित किया जा सकता है। इस को भी ध्यान में रखा जाएगा।
इस मसौदे में सचिवालय से जलवायु परिवर्तन के पड़ते प्रतिकूल प्रभावों से जुड़े नुकसान और क्षति को संबोधित करने के लिए मौजूदा वित्त पोषण व्यवस्था और प्रासंगिक नवीन स्रोतों पर एक संश्लेषण रिपोर्ट तैयार करने का भी अनुरोध किया गया है।
इसमें पक्षों और संबंधित संगठनों को 15 फरवरी, 2023 तक सबमिशन पोर्टल के माध्यम से द्वितीय ग्लासगो वार्ता और कार्यशालाओं की संरचना के विषयों पर विचार प्रस्तुत करने के लिए भी आमंत्रित किया है।
इस बारे में क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल के वैश्विक राजनैतिक रणनीति के प्रमुख हरजीत सिंह ने कहा कि, "हानि और क्षति फण्ड पर मसौदा निर्णय, कमजोर लोगों को उम्मीद देता है कि उन्हें जलवायु आपदाओं से उबरने और अपने जीवन को दोबारा ढर्रे पर लाने में मदद मिलेगी।"