कॉप 27: चरम मौसम की घटनाओं का त्वचा रोग पर पड़ता है बहुत भारी असर

चरम मौसम की घटनाएं हाशिए पर रहने वाले और कमजोर आबादी को सबसे अधिक प्रभावित करती हैं और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को बढ़ाती हैं
कॉप 27: चरम मौसम की घटनाओं का त्वचा रोग पर पड़ता है बहुत भारी असर
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संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और क्लाइमेट इम्पैक्ट लैब द्वारा जारी किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि, सदी के अंत तक भारत के वार्षिक औसत तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने के आसार हैं।

यदि तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो यह अनेक तरह की बीमारियों को दावत देगा उसमें से एक त्वचा रोग भी हैं। तापमान का शुरुआती तथा सबसे ज्यादा असर त्वचा पर ही पड़ता है।

त्वचा शरीर का एक बड़ा, जटिल अंग है और यह पर्यावरण के साथ शरीर के शुरुआती हिस्से के रूप में कार्य करती है। त्वचा संवेदी, तापमान को बनाए रखने, बाधा, और प्रतिरक्षात्मक कार्यप्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

जैसे-जैसे बाढ़, जंगल की आग और अत्यधिक गर्मी की घटनाएं बढ़ती हैं, वे त्वचा विज्ञान स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा पैदा करते हैं, क्योंकि कई त्वचा रोगों पर जलवायु का तेजी से असर पड़ता है।

शोधकर्ताओं ने इन जलवायु संबंधी घटनाओं द्वारा शुरू या तेज होने वाले प्रमुख त्वचा संबंधी चीजों की समीक्षा की है साथ ही यह हाशिए पर रहने वाले और कमजोर आबादी पर पड़ने वाले प्रभावों को भी सामने लाते हैं।

प्रमुख अध्ययनकर्ता ईवा रॉलिंग्स पार्कर ने कहा कि हम त्वचा विशेषज्ञों और अन्य चिकित्सकों को चरम मौसम से संबंधित त्वचा रोग के अवलोकन के साथ रोगी की इसके बारे में जानकारी, शुरुआती उपचार करने और बेहतर तरीके से रोग से निपटना चाहते थे।

पार्कर, अमेरिका के डर्मेटोलॉजी एंड द सेंटर फॉर बायोमेडिकल एथिक्स एंड सोसाइटी, वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर, नैशविले, टीएन में एमडी हैं।

उन्होंने कहा हम चरम मौसम की घटनाओं का त्वचा रोग पर पड़ने वाले इतने बड़े प्रभावों से चकित थे। इससे यह समझना आसान है कि जलवायु परिवर्तन कितनी गहराई से चीजों पर असर डाल रहा है।

डॉ पार्कर और उनके सहयोगियों ने अपनी समीक्षा में, त्वचा पर चरम मौसम की घटनाओं के असंख्य प्रभावों को दर्ज करते हुए लगभग 200 अध्ययनों का हवाला दिया। द जर्नल ऑफ क्लाइमेट चेंज एंड हेल्थ के एडिटर-इन-चीफ, मार्कली अलेक्जेंडर ने कहा यह जानकारी विशेष रूप से तूफान इयान जैसी दर्दनाक घटनाओं के बाद प्रकाश में आया है, जिसमें बाढ़ और जलभराव के खतरों के कारण संक्रमण बढ़ गया है।

बाढ़, सबसे आम प्राकृतिक आपदाओं में से एक, दर्दनाक घावों और त्वचा के जीवाणु और कवक संक्रमण से जुड़ा हुआ है। त्वचा के बाढ़ के पानी के संपर्क में आकर इसको नुकसान पहुंचाता है। क्योंकि बाढ़ का पानी अक्सर कीटनाशकों, सीवेज, उर्वरकों और रसायनों से दूषित होता है।

जंगल की आग के धुएं के संपर्क में बिना किसी पूर्व निदान के वयस्कों में एलर्जी, सूजन (एक्जिमा) को बढ़ा सकता है और यह मुंहासे को बढ़ाता है।

चूंकि त्वचा शरीर के तापमान के नियमित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, इसलिए लंबे समय तक चलने वाली लू के प्रभाव गंभीर हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, भीषण गर्मी की घटनाओं के दौरान ठीक से ठंडा नहीं कर पाना जिसके कारण हीट स्ट्रोक और मृत्यु तक हो सकती है।

कई पुराने सूजन वाले त्वचा रोग गर्मी से भी बढ़ जाते हैं। संक्रामक रोग मौसमी हो सकते हैं, गर्मी और नमी के साथ बैक्टीरिया, कवक और वायरल रोगजनकों के कारण होने वाले सामान्य त्वचीय संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

कम स्पष्ट, अत्यधिक गर्मी की घटनाएं व्यवहार को प्रभावित करती हैं। जब तापमान अधिक होता है, तो लोग अधिक समय बाहर बिता सकते हैं, वायु प्रदूषण, यूवी विकिरण और कीड़ों के संपर्क में वृद्धि हो सकती है।

डॉ. पार्कर और उनके सहयोगियों ने देखा कि चरम मौसम की घटनाएं हाशिए पर रहने वाले और कमजोर आबादी को असमान रूप से प्रभावित करती हैं और मौजूदा स्वास्थ्य असमानताओं को बढ़ाती हैं।

बच्चे, गर्भवती महिलाएं, बुजुर्ग, मानसिक स्वास्थ्य की बीमारी वाले लोग, नस्लीय, जातीय अल्पसंख्यक, कम आय वाले व्यक्ति और प्रवासी विशेष रूप से जलवायु संबंधी प्रभावों से अधिक पीड़ित होते हैं।

अश्वेत और हिस्पैनिक आबादी और कम आय वाली आबादी के बाढ़ के अधिक खतरे वाले क्षेत्रों में रहने के अधिक आसार हैं। इस आबादी में त्वचा रोग की अधिक घटनाएं होती हैं और देखभाल तक कम पहुंच होती है।

अत्यधिक गर्मी मजदूरों और प्रवासी कामगारों के लिए सबसे बड़ा व्यावसायिक खतरा है। चरम मौसम की घटनाएं बड़े पैमाने पर प्रवास को बढ़ाती हैं। त्वचा रोग प्रवासियों में देखी जाने वाली सबसे अधिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं में से हैं।

विशेष रूप से चिंता का विषय संचारी और संक्रामक रोगों और वेक्टर जनित विषाणुओं का प्रसार है। बेघर होने का अनुभव करने वाले लोग अत्यधिक रुग्ण, जलवायु-संवेदनशील त्वचा रोगों की उच्च दर से त्रस्त होते हैं।

डॉ. पार्कर ने कहा इस वर्ष उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया में ऐतिहासिक और घातक गर्मी, लू महसूस की गई। अमेरिका, पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया में विनाशकारी बाढ़, सोमालिया और मेडागास्कर में सूखा और अकाल और पश्चिमी अमेरिका, रूस, अर्जेंटीना और पूरे यूरोप में जंगल की आग की घटनाएं हुई।

चरम मौसम की घटनाएं ग्रह को तबाह कर रही हैं, महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को रोक रही हैं, स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही हैं और स्वास्थ्य संबंधी असमानताओं को बढ़ा रही हैं।

दुनिया भर में चिकित्सकों, नीति निर्माताओं, पर्यावरण अधिवक्ताओं और शोधकर्ताओं को वर्तमान और भविष्य के व्यवधानों के बारे में पूरी तरह से अवगत होना चाहिए जो जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम की घटनाओं से मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।

डॉ पार्कर और सहयोगियों का सुझाव है कि प्रतिकूल स्वास्थ्य परिणामों के खतरों से बेहतर ढंग से निपटने के लिए, संवेदनशील आबादी की पहचान करने, लचीलापन और अनुकूलन के लिए उचित और न्यायसंगत रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।

इनसे पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने के लिए जनसंख्या आधारित, नैदानिक ​​और व्यावसायिक स्वास्थ्य अनुसंधान की आवश्यकता है। यह अध्ययन एल्सेवियर द्वारा प्रकाशित द जर्नल ऑफ क्लाइमेट चेंज एंड हेल्थ में प्रकाशित हुआ है।

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