एक रिपोर्ट में कहा गया है कि साइबेरिया में भयंकर आग लगने की घटनाओं के लिए बढ़ता तापमान भी जिम्मेदार है। आने वाले दशकों में इस आग से बड़ी मात्रा में कार्बन निकल सकती है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) द्वारा मिस्र के शर्म-अल-शेख में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) में पार्टियों के 27वें सम्मेलन (कॉप 27) में एक रिपोर्ट जारी की गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ते तापमान के चलते कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। जिसमें भीषण गर्मी, सूखा, विनाशकारी बाढ़ और जंगल में आग लगने की घटनाएं शामिल हैं।
शोधकर्ताओं को डर है कि जल्द ही यह एक सीमा के पार जा सकती है, जिसके आगे तापमान में छोटे बदलाव से उस क्षेत्र के जले हुए इलाकों में तेजी से वृद्धि हो सकती है। जिसका असर दुनिया भर के मौसम पर पड़ सकता है।
इस अध्ययन में कहा गया है कि 2019 और 2020 में, दुनिया के इस दूरदराज के हिस्से में आग ने पिछले 40 वर्षों में जले हुए सतह के लगभग आधे हिस्से के बराबर एक सतही इलाके को नष्ट कर दिया।
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि हाल ही में हुई इन आग की घटनाओं ने वायुमंडल में लगभग 15 करोड़ टन कार्बन उगल दिया है, जो तापमान में बढ़ोतरी करने के लिए जिम्मेवार है, जिसे शोधकर्ता फीडबैक लूप कहते हैं।
अध्ययनकर्ताओं में से एक डेविड गेव्यू ने बताया कि आर्कटिक के ऊपर का क्षेत्र बाकी ग्रह की तुलना में चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है, यह जलवायु में बदलाव का एक रूप है जो असामान्य तरीके से आग लगने की गतिविधि का कारण बनता है।
शोधकर्ताओं ने फ्रांस के आकार के साढ़े पांच गुना क्षेत्र पर गौर किया और उपग्रह चित्रों के साथ 1982 से 2020 तक प्रत्येक वर्ष जले हुए सतह क्षेत्र को देखा।
वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि 2020 में आग ने 25 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि को जला दिया और उसी हिसाब से सीओ 2 जारी हुई, जितना कि एक वर्ष में स्पेन द्वारा उत्सर्जित किया गया था।
उस वर्ष, साइबेरिया में गर्मी 1980 की तुलना में औसतन तीन गुना अधिक थी। रूसी शहर वेर्खोयांस्क ने गर्मियों में 38 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया, जो आर्कटिक के लिए एक रिकॉर्ड है।
गर्मियों में औसत हवा का तापमान, जून से अगस्त तक, अध्ययन की अवधि में केवल चार बार 10 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया जो कि 2001, 2018, 2019 और 2020 में। ये सबसे अधिक आग लगने वाले वर्ष भी निकले।
गेव्यू ने कहा कि टीम ने बताया उनको डर है कि 10 डिग्री सेल्सियस पर यह दहलीज एक ब्रेकिंग पॉइंट होगा जिसे अधिक से अधिक बार पार किया जाता है। उन्होंने कहा प्रणाली गड़बड़ा गई है और 10 डिग्री सेल्सियस से अधिक की एक छोटी सी वृद्धि के लिए हम अचानक बहुत सारी आग देखते हैं।
पर्माफ्रोस्ट का पिघलना
आर्कटिक मिट्टी भारी मात्रा में कार्बनिक कार्बन को जमा करती है, इसका अधिकांश भाग पीटलैंड में होता है। यह अक्सर जमे हुए या दलदली होता है, लेकिन गर्म होती जलवायु में पिघलने और पीटलैंड की मिट्टी सूखती है, जिससे आर्कटिक में बड़ी मात्रा में आग लगने की आशंका होती है।
आग पर्माफ्रोस्ट नामक जमी हुई मिट्टी को नुकसान पहुंचाती है जो और भी अधिक कार्बन छोड़ती है। कुछ मामलों में यह सदियों या उससे अधिक समय से बर्फ में फंसी हुई होती है।
गेव्यू ने कहा इसका मतलब है कि कार्बन को जमा करने वाले (सिंक) कार्बन के स्रोतों में तब्दील हो जाते हैं। अगर हर साल आग लगती रहती है, तो मिट्टी बद से बदतर स्थिति में होगी। इसलिए इस मिट्टी से अधिक से अधिक उत्सर्जन होगा और यही वास्तव में चिंताजनक है।
गेव्यू ने कहा कि 2020 में सीओ2 की एक बहुत अधिक मात्रा जारी हुई थी, लेकिन चीजें भविष्य में इससे भी अधिक भयावह हो सकती हैं।
बहुत अधिक तापमान के प्रभाव
अधिक तापमान होने से वातावरण में अधिक जल वाष्प, जो अधिक तूफानों का कारण बनता है और इस प्रकार अधिक बिजली गिरती है। वनस्पति अधिक बढ़ती है, आग के लिए अधिक ईंधन प्रदान करती है, लेकिन यह अधिक सांस लेती है, जिससे चीजें सूख जाती हैं।
दो संभावित परिदृश्य
भविष्य की ओर देखते हुए, अध्ययन ने दो संभावित परिदृश्यों का विश्लेषण किया।
पहले में, जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए कुछ नहीं किया जाता है और तापमान लगातार बढ़ता रहता है। इस मामले में 2020 में उसी दर से आग हर साल लग सकती है।
दूसरे परिदृश्य में, ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा स्थिर हो जाती है और इस सदी के उत्तरार्ध तक तापमान का स्तर गिर जाता है। मुख्य अध्ययनकर्ता एड्रिया डेस्कल्स फेरांडो ने कहा कि इस मामले में 2020 जैसी भीषण आग औसतन हर 10 साल में भड़केगी।
गेव्यू ने कहा किसी भी तरह से 2020 की तरह आग की घटनाएं 2050 के ग्रीष्मकाल के दौरान दोगुनी से अधिक और बार- बार होंगी। यह अध्ययन साइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।