कॉप-26: वनों से भरपूर भारत ग्लासगो घोषणा-पत्र से पीछे क्यों हटा?

ग्लासगो घोषणा-पत्र के निर्णायक मसौदे में आधारभूत संरचनात्मक विकास संबंधी गतिविधियों को वन-संरक्षण से जोड़े जाने से भारत खुश नहीं है
कॉप-26: वनों से भरपूर भारत ग्लासगो घोषणा-पत्र से पीछे क्यों हटा?
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दुनिया के वनों से भरपूर शीर्ष दस देशों में शामिल भारत ने जलवायु परिवर्तन पर चल रहे संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन, कॉप-26 में उस घोषणा-पत्र से दूरी बनाए रखी, जिसमें सौ से ज्यादा देशों के नेताओं ने वनों को बचाने का संकल्प लिया गया। यह सम्मेलन स्कॉटलैंड के ग्लासगो में चल रहा है।
एक भारतीय प्रतिनिधि के मुताबिक, भारत ने इस घोषणा-पत्र के तैयार मसौदे में आधारभूत संरचनात्मक विकास संबंधी गतिविधियों को वन-संरक्षण से जोड़े जाने से नाखुश होने के चलते यह फैसला लिया। मसौदे में स्थायी उत्पादन और खपत, बुनियादी ढांचे के विकास, व्यापार के साथ-साथ वित्त और निवेश के संबंधित क्षेत्रों में परिवर्तनकारी कार्रवाई को भी जोड़ा गया है।
ग्लासगो घोषणा-पत्र के मुताबिक:  हमारा मानना है कि विश्व और राष्ट्रीय स्तर पर भविष्य में भूमि उपयोग, जलवायु, जैव विविधता और सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए, स्थायी उत्पादन और खपत, बुनियादी ढांचे के विकास, व्यापार, वित्त, निवेश और छोटे के साझीदारों लिए आपस में जुड़े क्षेत्रों में परिवर्तनकारी कार्रवाई की आवश्यकता होगी। इसमें अपनी आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर स्वदेशी लोग और स्थानीय समुदाय महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
एक भारतीय प्रतिनिधि ने इस संवाददाता को बताया कि व्यापार और जलवायु परिवर्तन के बीच प्रस्तावित मसौदा भारत को इसलिए स्वीकार्य नहीं था, क्योंकि यह मामला विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत आता है।
भारत प्रमुख परियोजनाओं को समायोजित करने के लिए वनों की कटाई की अनुमति देने के लिए मौजूदा वन संरक्षण अधिनियम, 1980 में बदलाव पर भी विचार कर रहा है। अगर भारत ग्लासगो में प्रस्तावित वन समझौते का हिस्सा बन जाता तो उससे भारत के इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों को झटका लगता।
दो अक्टूबर को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एक पत्र जारी किया। इसमें वन संरक्षण अधिनियम, 1980 में बदलाव के 14 संभावित बिंदुओं पर विचार किया गया है। वनों की कटाई कम करने की दिशा में यह कानून बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके तहत वनों का कोई अन्य इस्तेमाल करने के लिए केंद्र सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है।

वन मंजूरी का नियामक तंत्र, मंत्रालय को इस बात पर विचार करने की अनुमति देता है कि वनों की कटाई की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं और अगर ऐसा परमिट दिया जाता है तो उसके लिए क्या शर्तें होनी चाहिए।
ग्लासगो का महत्वूपर्ण पड़ाव
दो नवंबर को, दुनिया के नेताओं ने 2030 तक वनों की कटाई और भूमि क्षरण को रोकने के लिए 19 बिलियन डॉलर के सार्वजनिक और निजी फंड के प्रति अपनी  प्रतिबद्धता जताई। ये नेता दुनिया के कुल वनों के करीब नौ से लेकर दसवें हिस्से तक का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस घोषणा को वैश्विक वनों की रक्षा में ‘सबसे बड़ा कदम’ बताया गया।
कनाडा से लेकर रूस ने अपने तायगा वनों और ब्राजील के उष्णकटिबंधीय बर्षा वनों तक, कोलंबिया, इंडोनशिया से लेकर कांगो गणराज्य ने ग्लासगो में ‘वन और भूमि के उपयोग संबंधी घोषणपत्र’ का समर्थन किया। ये सारे देश मिलकर दुनिया में वनों का 85 फीसद हिस्सा घेरते हैं, जो 13 मिलियन स्कवायर मील में फैला हुआ है।
हमारे ग्रह का फेफड़े होने के कारण वन, हर साल जीवाश्म ईंधन के जलने से निकलने वाली वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड का लगभग एक तिहाई अवशोषित करते हैं। हालांकि कहा जाता है कि इस गैस का नुकसान चेतावनी के स्तर तक खतरनाक दर से होता है, जिसके चलते हर मिनट में 27 फुटबॉल पिचों के आकार के बराबर वन का क्षेत्र नष्ट हो जाता है।
वैश्विक जलवायु उत्सर्जन में अपनी भूमिका रेखांकित करते हुए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा, ‘कॉप-26 में दुनिया के नेताओं ने धरती के वनों को बचाने और उनके संरक्षण के लिए ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
इस प्रोजेक्ट से जुड़े ब्रिटिश सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, ‘इस प्रयास के महत्व को समझने के लिए आपको वचनबद्ध पूंजी की प्रतिबद्धता और उसकी संरचना को देखना होगा। निजी पूंजी होने के बावजूद लोकनिधि ज्यादा प्रभावी रहती है। इसके अलावा, वित्त पोषण की एक निश्चित समय सीमा है। यह मॉडल उत्सर्जन में कमी को लेकर अन्य क्षेत्रों में अग्रणी बन सकता है’।

घोषणा-पत्र को अमल में लाने के लिए खर्च होने वाले लगभग 19 बिलियन डॉलर में 12 बिलियन डॉलर जनता के सहयोग से ही जुटाएं जाएंगे। इसमें ब्रिटेन समेत 12 देश शामिल होंगे और इसके लिए 2021 से लेकर 2025 तक की समय-सीमा तय की गई है। इसके अलावा निजी क्षेत्र की तीस से अधिक वित्तीय संस्थाओं से भी 7.2  बिलियन डॉलर जुटाए जाएंगे।
इस पूंजी का इस्तेमाल विकासशील देशों में क्षरित भूमि को संग्रहित करने, जंगल में आग लगने की घटनाओं को काबू में करने के लिए और मूल समुदायों के अधिकारों को समर्थन देने में किया जाएगा।
कोलंबिया के राष्ट्रपति इवान डुक्यू ने कहा, ‘ ग्लासगो में ‘वन और भूमि के उपयोग संबंधी घोषणापत्र’ का हिस्सा बनकर कोलंबिया गौरवांवित है। यह घोषणपत्र’ अगले दशक में दुनिया के देशों के लिए वन संरक्षण और भूमि-क्षरण को रोकने की दिशा में ऐतिहासिक समझौता है। हम 2030 तक वनों की कटाई पूरी तरह से रोकने और अपनी भूमि और महासागरीय संसाधनों के 30 फीसद की रक्षा करने की प्रतिबद्धता को कानूनी तौर पर स्थापित करेंगे।’
घोषणापत्र के तहत ब्रिटेन, इंडोनेशिया में उष्णकटिबंधीय जंगलों के लिए समर्थन और कांगो बेसिन की रक्षा के लिए अगले पांच सालों में 1.5 बिलियन यूरो ( 2.4 बिलियन डॉलर) की मदद करेगा। यह क्षेत्र उष्णकटिबंधीय वर्षावनों का दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा इलाका है, जिसे अपने अस्तित्व को बचाने के लिए इंडस्ट्री, खनन और खेती से खतरों का सामना करना पड़ रहा है।
ताड़ का तेल, कोको और सोया जैसी प्रमुख वस्तुओं में वैश्विक व्यापार के 75 फीसद का प्रतिनिधित्व करने वाली सरकारें  एक नए वन, कृषि और वस्तु व्यापार (एफएसीटी) समझौते पर भी हस्ताक्षर करेंगी। ये वही वस्तुएं हैं, जो वनों को खतरे में डाल सकती हैं।
सतत व्यापार और जंगलों पर दबाव कम करने के लिए 28 देशों की सरकारें एक साझा कार्यक्रम पर काम करेंगी। इसमें छोटे किसानों को समर्थन और आपूर्ति श्रंखला की पारदर्शिता को बढ़ाना भी शामिल होगा। फिलहाल वैश्विक उत्सर्जन में 23 फीसद हिस्सा भूमि संबंधी गतिविधियों का है, जिसमें वनो की कटाई और खेती आदि शामिल है।
वनों की रक्षा करना और भूमि के नुकसानदायक उपयोग को खत्म, करना दुनिया के उन सबसे महत्वपूर्ण कामों में से एक है जो विनाशकारी ग्लोबल वार्मिंग को सीमित कर सकता है। इसके साथ ही यह दुनिया भर में 1.6 अरब लोगों के जीवन और भविष्य की रक्षा भी कर सकता है, जो दुनिया की कुल आबादी का लगभग 25 फीसद है और अपनी आजीविका के लिए वनों पर निर्भर है।
क्षेत्रीय समुदायों के वैश्विक गठबंधन के संचालक और उसमें अफ्रीका के वर्षावनों, लातिन अमेरिका इंडोनेशिया का प्रतिनिधत्व काने वाने तुंतियाक काअन के मुताबिक, ‘हालांकि हम कॉप-26 में हुए ऐलान का स्वागत करते हैं, फिर भी हम यह देखते रहेंगे कि इन्हें अमल में लाने के लिए पूंजी का इस्तेमाल कैसे किया जाता है।’

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