अतिशय मौसम से भारत में कॉफी का उत्पादन घटा

जलवायु परिवर्तन के कारण देश में कॉफी उत्पादन में 20 फीसदी की गिरावट
अतिशय मौसम से भारत में कॉफी का उत्पादन घटा
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केरल और अन्य काफी उत्पादक राज्यों में पिछले एक साल से जलवायु परिवर्तन के चलते लगातार अतिशय मौसम के कारण भारत में कॉफी का उत्पादन घट रहा है। अगस्त, 2018 से केरल और कर्नाटक के कॉफी उत्पादक क्षेत्रों में ख़राब मौसम के कारण कुल कॉफी उत्पादन में लगभग 20प्रतिशत की गिरावट आई।

ख़राब मौसम और वैश्विक स्तर पर कॉफी की घटती कीमतों ने भारत के कॉफी उत्पादकों को प्रभावित किया है। दक्षिण भारतीय राज्य जैसे कर्नाटक,केरल और तमिलनाडु आदि ऐसे राज्य जहां देश के कुल कॉफी उत्पादन में 80 प्रतिशत का योगदान करते हैं, ने पिछले कुछ वर्षों में अत्यधिक खराब मौसम का सामना किया है जिससे कॉफी की उपज प्रभावित हुई है।  नाम न छापने की शर्त पर कॉफी बोर्ड ऑफ़ इंडिया के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 2018-19 में लगभग 63,000 टन कम कॉफी पैदा होने वाली है। हालांकि दूसरी ओर कॉफी बोर्ड ऑफ इण्डिया सदस्य एमबी अभिमन्यु कुमार का कहना है कि बोर्ड ने एक सर्वेक्षण किया है लेकिन उत्पादन में गिरावट के बारे में कोई रिपोर्ट जारी नहीं की है।

कुमार बताते हैं, तबाही के चिन्ह अब भी देखे जा सकते हैं, मसलन फसलों को नुकसान और उत्पादन में गिरावट। उत्पादन में 20 फीसदी की गिरावट का आकलन स्वतंत्र बाजार के शोधकर्ताओं ने किया था, न कि बोर्ड ने। भारत ने 2015-16 में कॉफी का रिकॉर्ड उत्पादन किया था। कुल3,48,000 टन। हालांकि तब से उत्पादन लगातार घट रहा है। 2016-17 और 2017-18 में उत्पादन क्रमशः 312,000 टन और 316,000 टन था। भीषण बाढ़ एवं भूस्खलन की भविष्यवाणी भी की गई है, जिससे उत्पादन घटकर 2,53,000 टन तक जा सकता है। कॉफी उत्पादक दक्षिण भारतीय राज्यों में पिछले चार वर्षों में खराब मौसम की घटनाओं की एक श्रृंखला देखी गई है। बरसात के दौरान मौसम के सूखे रहने की आवृत्ति में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप सूखा पड़ रहा है। कोडागु स्थित जैविक कॉफी उत्पादक सेलेला पाटकर कहती हैं, कम बारिश और तापमान में वृद्धि के कारण कॉफी के उत्पादन में कमी आई है। खराब मौसम ने न केवल कॉफी के उत्पादन में कमी लाया है, बल्कि इससे महंगे कॉफी बाजार पर भी असर पड़ा है। पवनकुमार रेड्डी हैदराबाद के एक कॉफी व्यापारी हैं, जो इथियोपिया से प्रीमियर कॉफी के निर्यात-आयात से जुड़े हैं। पवन बताते हैं,“ प्रीमियर गुणवत्ता की कॉफी विशिष्ट क्षेत्रों में उगाई जाती है जहां जलवायु इसे समय पर पकने देती है। लेकिन असमान वर्षा और बढ़ते तापमान के कारण फलियों की गुणवत्ता में गिरावट आई है।”

अंतर्राष्ट्रीय बाजार की स्थिति चिंताजनक

जलवायु परिवर्तन के अलावा अंतर्राष्ट्रीय बाजार की स्थिति भी चिंताजनक। मूल्य काफी कम हैं जिसके फलस्वरूप किसान कॉफी उत्पादन में निवेश नहीं कर रहे। कुमार कहते हैं, चार से पांच साल पहले हमें प्रति क्विंटल कॉफी 22,000 रुपए मिलते थे लेकिन अब यह घटकर 12,000 रुपए प्रति क्विंटल रह गई है। मूल्यों में गिरावट के के बावजूद, पिछले वर्ष की तुलना में वैश्विक कॉफी उत्पादन में वृद्धि हुई है। 2018-19 में उत्पादित कॉफी की अनुमानित मात्रा लगभग 174.5 मिलियन बैग थी, जो पिछले वर्ष में 158.9 मिलियन बैग थी। एक बैग 60 किलोग्राम कॉफी के बराबर है।वैश्विक वृद्धि मुख्य रूप से कोलंबिया और वियतनाम में उत्पादन में वृद्धि के कारण है। कॉफी उत्पादन में दुनिया में अग्रणी ब्राज़ील का उत्पादन 63मिलियन बैग से घटकर 55 मिलियन बैग तक ही रह जाने की सम्भावना है।  विशेषज्ञ बताते हैं कि पिछले चार वर्षों में, ब्राजील के किसानों को अपनी उपज के लिए सबसे कम राशि प्राप्त होती आ रही है जो उन्हें कॉफी की खेती में निवेश करने से हतोत्साहित करती है। ब्लूमबर्ग के बाजार विश्लेषक के अनुसार, 2019 में कॉफी की कीमतें बढ़कर 1.24 डॉलर प्रति पाउंड (192 रुपये प्रति किलोग्राम) हो जाएंगी। पिछले वर्षों में, किसानों को लगभग 1.15 डॉलर प्रति पाउंड (178 रुपये प्रति किलोग्राम) का औसत मूल्य मिलता आ रहा है।

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