हैजा महामारी को बढ़ा सकती हैं जलवायु संबंधी विसंगतियां, जानें कैसे, क्या कहता है शोध

अध्ययन में कहा गया है कि ऐसा हो सकता है कि अल-नीनो के कारण ही साल 1904 से 1907 के दौरान भारत में हैजा फैला, जिसमें हजारों लोगों की जान चली गई
शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की चरम सीमाओं में वृद्धि से वर्तमान सदी के अंत तक नए वेरिएंटों के सामने आने के आसार बढ़ सकते हैं।
शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की चरम सीमाओं में वृद्धि से वर्तमान सदी के अंत तक नए वेरिएंटों के सामने आने के आसार बढ़ सकते हैं।फोटो साभार: आईस्टॉक
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एक नए शोध में दावा किया गया है कि 20वीं सदी की शुरुआत (साल 1904 से 19ृ07) में अल नीनो की वजह से ही हैजा महामारी के दौरान हैजे का एक नया वेरिएंट पैदा हुआ, जिसने इस बीमारी को तेजी से फैलने में मदद की।

शोध के मुताबिक जलवायु विसंगतियां हैजे के नए वेरिएंट के पैदा होने के भी अवसर पैदा कर सकती हैं। यह शोध स्पेन में बार्सिलोना के इंस्टीट्यूटो डी सलूड ग्लोबल के शोधकर्ताओं ने किया है।

साल 1961 से अब तक दुनिया भर में 10 लाख से अधिक लोग हैजे की महामारी के कारण काल की गाल में समा चुके हैं, जो 1817 के बाद से होने वाली सातवीं हैजा महामारी है।

प्राचीन काल में हैजा महामारी के कारणों का पता नहीं चल पाया है, लेकिन एक परिकल्पना यह है कि असामान्य जलवायु परिस्थितियां विब्रियो कोलेरा के आनुवंशिक बदलावों के साथ मिलकर काम कर सकती हैं। यह एक ऐसा जीवाणु है जिसके कारण बीमारी होती है, जिससे नए वेरिएंट के फैलने और यह खतरे को बढ़ा सकता है।

जलवायु और हैजा के बीच के संबंधों को स्पष्ट करने में मदद करने के लिए, शोधकर्ताओं ने छठी हैजा महामारी के दौरान पूर्व ब्रिटिश भारत के विभिन्न क्षेत्रों में जलवायु स्थितियों और हैजे से होने वाली मौतों के ऐतिहासिक रिकॉर्ड पर विभिन्न सांख्यिकीय और कम्प्यूटेशनल उपकरणों का इस्तेमाल किया, जो 1899 से 1923 तक चली थी। साथ ही उन्होंने महामारी के दौरान जलवायु और हैजे के आंकड़ों के साथ पिछली स्थितियों की तुलना भी की।

इस विश्लेषण से पता चला कि 1904 से 1907 तक हैजे से होने वाली मौतों के असामान्य पैटर्न एल नीनो की घटना से जुड़े असामान्य मौसमी तापमान और बारिश के स्तर के साथ-साथ हुए, इन घटनाओं के समय छठी महामारी के दौरान एक नए आक्रामक वेरिएंट के पैदा होने से जुड़ा है।

इसके अलावा, ये ऐतिहासिक जलवायु परिस्थितियां एल नीनो की घटनाओं के साथ समानताएं दिखाती हैं जो चल रही महामारी के दौरान हैजा के वेरिएंट में बदलाव से जुड़ी हैं।

ये निष्कर्ष इस बात से जुड़े हैं कि असामान्य जलवायु घटनाएं नए हैजे के वेरिएंट के पैदा होने और फैलने को सुविधाजनक बनाने में मदद कर सकती हैं।

इसके बाद शोधकर्ताओं ने मानक जलवायु पूर्वानुमान मॉडल का उपयोग करके हैजे के नए वेरिएंटों के जलवायु की मदद से भविष्य में पैदा होने के बारे में पता लगाया।

शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की चरम सीमाओं में वृद्धि से वर्तमान सदी के अंत तक नए वेरिएंटों के सामने आने के आसार बढ़ सकते हैं।

शोधकर्ता ने शोध में कहा, इस घातक बीमारी को ओर गहराई से समझने के लिए, हैजे के विकास और जलवायु विसंगतियों के परस्पर प्रभाव पर आधारित और अधिक शोध करने की आवश्यकता है। यह शोध ओपन-एक्सेस जर्नल पीएलओएस नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

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