आज जलवायु परिवर्तन जीवन के हर पहलु पर हावी होना शुरू हो चुका है। चाहे बात कृषि पैदावार की हो या आम आदमी के स्वास्थ्य की, जलवायु परिवर्तन हर क्षेत्र पर हावी होता जा रहा है। जलवायु में आते इन बदलावों के लिए तेजी से बढ़ता उत्सर्जन जिम्मेवार है, जिसके लिए कहीं न कहीं वो कंपनियां भी जिम्मेवार हैं जो बड़े पैमाने पर उत्सर्जन कर रही हैं। ऐसे में उनके खिलाफ लोगों का आक्रोश लाजिमी भी है।
इस आक्रोश की एक झलक जलवायु परिवर्तन को लेकर अदालत में दायर मुकदमों के रूप में भी दिखती है। इस बारे में जारी एक नई रिपोर्ट में सामने आया है कि दुनिया भर में कंपनियों के खिलाफ जलवायु संबंधी मुकदमे तेजी से बढ़ रहे हैं, और इनमें से अधिकांश सफल भी रहे हैं।
“ग्लोबल ट्रेंड्स इन क्लाइमेट लिटिगेशन: 2024 स्नैपशॉट” नामक इस रिपोर्ट के मुताबिक 2015 से अब तक इन बड़ी कंपनियों और व्यापारिक संघों के खिलाफ जलवायु संबंधी करीब 230 मुकदमे दायर किए गए हैं। हैरानी की बात है कि इनमें से दो-तिहाई मुकदमे 2020 के बाद शुरू हुए हैं। ग्रांथम रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑन क्लाइमेट चेंज एंड एनवायरनमेंट द्वारा जारी इस विश्लेषण के मुताबिक इन बढ़ते मामलों का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन पर और अधिक कार्रवाई को बढ़ावा देना है।
यह रिपोर्ट दर्शाती है कि 2023 में जलवायु परिवर्तन से जुड़े कितने मुकदमे दायर किए गए, वे कहां दायर किए गए और उन्हें किसने दायर किया। साथ ही इस रिपोर्ट में इन मामलों से जुड़े रुझानों और उसके विषयों पर भी प्रकाश डाला गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ वर्षों में "क्लाइमेट-वॉशिंग" के मामलों में तेजी से वृद्धि हुई है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जब कंपनियों पर्यावरण और जलवायु के मुद्दे पर अपनी छवि को साफ सुथरा दर्शाने की कोशिश करती हैं तो उसे "क्लाइमेट-वॉशिंग" कहा जाता है। 2023 में ऐसे 47 मामले प्रकाश में आए हैं। इस तरह 2016 से देखें तो दुनिया में इस तरह के 140 मामलों पर सुनवाई हुई है। इनमें से 77 मामलों में कार्रवाई पूरी हो चुकी है। आपको जानकार हैरानी होगी की इनमें से 70 फीसदी से अधिक मामलों का फैसला वादी के पक्ष में आया है।
यदि अतीत पर नजर डालें तो जलवायु से ज्यादातर मामले सरकारों के खिलाफ दायर किए गए थे। ऐसा ही कुछ 2023 में भी देखने को मिला। अमेरिका में जहां सबसे ज्यादा मामले प्रकाश में आए हैं, वहां महज 15 फीसदी मामले कंपनियों के खिलाफ हैं, जबकि अमेरिका से बाहर अन्य देशों में करीब 40 फीसदी मामलों में कंपनियों को भी कटघरे में खड़ा किया गया है।
जलवायु मुद्दे पर अदालतों पर टिकी निगाहें
रिपोर्ट में न केवल कंपनियों बल्कि 1986 से लेकर अब तक जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर दायर ज्यादातर मुकदमों को रिकॉर्ड किया गया है। आंकड़े दर्शाते हैं कि 1986 से 2023 के बीच 37 वर्षों में जलवायु परिवर्तन से जुड़े करीब 2,666 मामले दायर हुए हैं। इनमें से करीब 70 फीसदी मामले 2015 के बाद दर्ज किए गए। बता दें कि 2015 वही साल है जब जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पेरिस समझौते को अपनाया गया था।
यदि सिर्फ 2023 की बात करें तो एक साल में कुल 233 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 129 अकेले अमेरिका में ही सामने आए हैं। वहीं यूके में 24, जबकि ब्राजील में दस, जर्मनी में सात, और ऑस्ट्रेलिया में छह मामले दर्ज किए गए हैं।
इनमें से कई मामलों में सरकारों और कंपनियों को जलवायु कार्रवाई के लिए जवाबदेह ठहराने के प्रयास किए गए हैं। हालांकि 2023 से जुड़े आंकड़ों को देखें तो, पिछले साल मामलों की संख्या पहले की तुलना में कम तेजी से बढ़ी है, जो इस बात का संकेत है कि अब खास क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जहां ज्यादा असर हो सकता है। 2023 में 'सरकारी ढांचे' के मामलों में भी महत्वपूर्ण सफलता हाथ लगी है। ये मामले सरकार की जलवायु नीति की महत्वाकांक्षा या उसके कार्यान्वयन को चुनौती देते हैं।
गौरतलब है कि पिछले सप्ताह ब्रिटेन की सर्वोच्च अदालत ने फैसला सुनाया कि स्थानीय परिषद को इस बात पर विचार करना चाहिए कि नए कुओं से तेल निकालने से जलवायु पर क्या प्रभाव पड़ेगा। कुल मिलाकर देखें तो पिछले तीन दशकों में अमेरिका में जलवायु परिवर्तन से जुड़े सबसे ज्यादा 1,745 मामले दायर किए गए हैं। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया में इन मामलों की संख्या 132 दर्ज की गई है। हालांकि 2023 में ऑस्ट्रेलिया में केवल छह नए मामले ही प्रकाश में आए हैं।
ग्लोबल साउथ में भी सरकार और कंपनियों पर बढ़ रहा दबाव
रिपोर्ट में इस तथ्य को भी उजागर किया गया है कि अब जलवायु संबंधी मामले उन देशों में भी सामने आ रहे हैं, जहां पहले ऐसा कुछ नहीं दर्ज किया गया था। उदाहरण के लिए 2023 में पनामा और पुर्तगाल में पहली बार इस सम्बन्ध में मामले दर्ज किए गए। यह इस बात का सबूत है कि लोग जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर कहीं ज्यादा सजग हुए हैं। आंकड़े दर्शाते हैं कि अब तक 55 देशों में जलवायु संबंधी मामले दर्ज किए गए हैं। कहीं न कहीं ग्लोबल साउथ की अदालतों में भी ऐसे मामलों की संख्या बढ़ रही है, जो सामने आए कुल मामलों का करीब आठ फीसदी है।
2023 को देखें तो वो वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन से जुड़े मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण वर्ष रहा, जब प्रमुख अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों और न्यायाधिकरणों से जलवायु परिवर्तन पर निर्णय लेने और सलाह देने के लिए कहा गया। हालांकि इस दौरान जलवायु से जुड़े महज पांच फीसदी मामले ही अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों के सामने आए, लेकिन इनमें से कई मामले ऐसे थे जो दूसरे घरेलु मामलों पर गहरा असर डाल सकते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक ‘प्रदूषक भुगतान सिद्धांत’ से जुड़े मामलों में भी महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। मौजूदा समय में दुनिया भर में ऐसे 30 से अधिक मामलों में कम्पनियों को उनके उत्सर्जन की वजह से जलवायु को होते नुकसान के लिए जवाबदेह ठहराने की मांग की जा रही है।
नए 'कॉर्पोरेट ढांचे' को लेकर भी मामले प्रकाश में आते रहे हैं, जो यह सुनिश्चित करने की कोशिश करते हैं कि इन औद्योगिक घरानों की नीतियां और प्रक्रियाएं जलवायु लक्ष्यों से मेल खाती हों। न्यूजीलैंड के सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे ही एक मामले को आगे बढ़ने की अनुमति दी है, हालांकि अन्य जगहों पर दायर मामलों को खारिज कर दिया गया है। मिलियूडिफेंसिया एट ऑल बनाम शेल के एक ऐसे ही महत्वपूर्ण मामले में अपील की गई है।
इस साल जो यह नया विश्लेषण जारी किया गया है उसमें ट्रांजिशन रिस्क से जुड़े मामलों की एक नई केटेगरी को भी शामिल किया गया है। इन केटेगरी में कॉर्पोरेट निदेशकों और अधिकारियों के खिलाफ दायर जलवायु जोखिम प्रबंधन से जुड़े मामलों को शामिल किया गया है। गौरतलब है कि एनिया के शेयरधारकों ने पोलैंड में एक नए कोयला बिजली संयंत्र में निवेश के लिए पूर्व निदेशकों के खिलाफ ऐसा ही मामला दायर करने को लेकर मंजूरी दी है।
वहीं 2023 में दायर 230 से ज्यादा मामलों में से करीब 50 मामले जलवायु लक्ष्यों से जुड़े नहीं हैं। इनमें से कुछ मामले जलवायु कार्रवाई को चुनौती देते हैं, जबकि अन्य जलवायु कार्रवाई को चुनौती नहीं देते, बल्कि इसे लागू करने के तरीके से जुड़े हैं।
यह मामले इस बात का सबूत हैं कि लोग जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को लेकर जागरूक हो रहे हैं। यही वजह है कि दुनिया भर में सरकारों और कम्पनियों पर ग्लोबल वार्मिंग पर अपने प्रभाव को कम करने के लिए कानूनी दबाव बढ़ रहा है।
आज जलवायु कार्यकर्ता, इस मुद्दे पर कार्रवाई करने के लिए अदालतों का सहारा ले रहे हैं। उम्मीद है कि इससे आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर एक सकारात्मक बदलाव आएगा और कंपनियों के साथ सरकारें भी इस मुद्दे की गंभीरता को समझेंगी और अपनी जिम्मेवारी से दूर नहीं भागेंगी।