कार्बन डाइऑक्साइड को कम कर भी दिया तो भी अतीत जैसा जलवायु का लौटना मुश्किल

एक अध्ययन के मुताबिक सीओ2 की मात्रा के कम होने पर भी दुनिया के कुछ इलाकों में साल में होने वाली औसत वर्षा में 20 फीसदी की कमी तथा कुछ इलाकों में 15 फीसदी की वृद्धि हुई
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स
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आज जबकि पूरी दुनिया कार्बन को कम करने के लिए जीरो कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जन हासिल करने की बात कर रही है। तब एक नए शोध से पता चला है कि कुछ क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन को रोकना मुश्किल है, भले ही पहले से बढ़ा हुआ सीओ 2 का स्तर कम ही क्यों न हो।

जैसे ही कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) घटता है, तो इंटरट्रॉपिकल कन्वर्जेंस ज़ोन (आईटीसीजेड) दक्षिण की ओर मुड़ या शिफ्ट हो जाता है। जो लगातार अल नीनो की स्थितियों को बढ़ा सकता है। अल नीनो एक ऐसी घटना है जिसमें भूमध्य रेखा के पास समुद्र की सतह का तापमान 1 से 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है, जिससे दुनिया भर में सूखा पड़ने, तूफान और बाढ़ की आशंका बढ़ जाती है।

यह अध्ययन पर्यावरण विज्ञान और इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर जोंग-सियोंग कुग और जी-हून ओह की अगुवाई में किया गया। शोधकर्ताओं ने पृथ्वी प्रणाली मॉडल पर एक सिमुलेशन आयोजित किया जो वायुमंडलीय सीओ 2 की मात्रा को कम ज्यादा कर सकता है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि आईटीसीजेड, जो सीओ2 की सांद्रता बढ़ने पर मुश्किल से हिलता था, सीओ2 के स्तर में कमी आने पर तेजी से दक्षिण की ओर शिफ्ट हो गया। यहां तक कि जब सीओ2 की मात्रा अपने मूल स्तर पर वापस आ गई, तब भी इसका केंद्र दक्षिणी गोलार्ध में बना रहा।

इंटरट्रॉपिकल कन्वर्जेंस ज़ोन (आईटीसीजेड) का शिफ्ट होना, जहां पर दुनिया भर में होने वाली बारिश का 32 फीसदी होती है। यह उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा निर्धारित करने में एक अत्यंत महत्वपूर्ण कारक है। यह बदलाव हैडली प्रसार को बदल सकता है, जो दुनिया भर में वायुमंडलीय प्रसार का प्रारंभिक बिंदु है। यह दुनिया भर के जलवायु में असामान्यताएं पैदा कर सकता है।

इस अध्ययन के माध्यम से, प्रोफेसर कुग की टीम ने पुष्टि की है कि जैसे-जैसे सीओ 2 घटने लगती है, इंटरट्रॉपिकल कन्वर्जेंस ज़ोन दक्षिणी गोलार्ध में चला जाता है, जो उत्तरी गोलार्ध के विपरीत गर्म रहता है, जो सीओ2 की कमी होने पर ठंडा हो जाता है।

वायुमंडलीय सीओ2 की कमी धीरे-धीरे औसत वैश्विक तापमान और वर्षा को सामान्य कर सकती है। हालांकि, शोधकर्ताओं का दावा है कि कुछ क्षेत्रों में जलवायु पूरी तरह से अलग दिखाई दे सकती है। आईटीसीजेड के दक्षिण की ओर शिफ्ट होने के कारण वर्षा में परिवर्तन एक चरम अल नीनो के दौरान पैटर्न के समान है। दूसरे शब्दों में, यह आशंका व्यक्त की जाती है कि कुछ क्षेत्रों में एक असामान्य जलवायु स्थिति का अनुभव होगा जहां एक चरम अल नीनो बना रहता है।

मॉडल सिमुलेशन ने पुष्टि की कि भले ही बढ़ी हुई सीओ 2 की मात्रा कम हो गई है और अपने मूल पर वापस आ गई है, सहारा रेगिस्तान और भूमध्य सागर के आसपास के दक्षिणी यूरोप सहित साहेल क्षेत्र ने मौजूदा स्तरों की तुलना में औसत वार्षिक वर्षा में 20 फीसदी की कमी का अनुभव किया। इसके विपरीत, उत्तर और दक्षिण अमेरिका में वर्षा में लगभग 15 फीसदी की वृद्धि हुई।

वास्तव में, उत्तर और दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी क्षेत्रों में अधिक बार बाढ़ आने के खतरे के बारे में पता चला है, जहां वर्षा में वृद्धि हो गई थी। पूर्वी एशिया में, कोरियाई प्रायद्वीप सहित, गर्मियों में अधिक वर्षा के कारण मानसून के मौसम में अधिक वर्षा होने के आसार थे।

प्रोफेसर जोंग-सियोंग कुग ने बताया कि जटिल जलवायु प्रणाली का सही ढंग से अनुमान लगाना असंभव है। यदि कार्बन तटस्थता या कार्बन की कमी जैसे जलवायु परिवर्तन को कम करने की नीतियां बनाते समय केवल औसत वैश्विक तापमान और वर्षा के स्तर पर विचार किया जाता है। प्रोफेसर कुग ने कहा इस बात पर जोर देते हुए कि आईटीसीजेड की दक्षिण की ओर शिफ्ट होने जैसे क्षेत्रीय परिवर्तनों को पूरी तरह से ध्यान में रखा जाना चाहिए।

पहले से उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों का धरती पर स्थायी प्रभाव पड़ता है, इसलिए हमें उनके लंबे समय तक पड़ने वाले  प्रभावों के साथ-साथ उनके जलवायु परिवर्तन पर तत्काल प्रभावों को पहचानने की जरूरत है। यह अध्ययन नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हुआ है।

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