संयुक्त राष्ट्र द्वारा बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि 40 फीसदी संभावना है कि अगले पांच वर्षों में वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगी| साथ ही इस बात की भी संभावनाएं बढ़ रही हैं कि समय के साथ तापमान में हो रही वृद्धि और बढ़ती जाएगी|
गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन को लेकर 2015 में किए पैरिस समझौते में तापमान में हो रही वृद्धि को पूर्व औद्योगिक काल से 1.5 डिग्री सेल्सियस के नीचे रखने का लक्ष्य रखा गया था| हालांकि वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि अब तक 1.2 डिग्री सेल्सियस तक जा चुकी है|
यही नहीं रिपोर्ट में इस बात की भी 90 फीसदी सम्भावना जताई है कि 2021 से 2025 के बीच कम से कम एक वर्ष ऐसा होगा जो अब तक तापमान में हो रही वृद्धि के सारे रिकॉर्ड तोड़ देगा, जिसका मतलब है कि वो इतिहास का अब तक का सबसे गर्म वर्ष होगा|
1.28 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड की गई थी 2020 में तापमान में हो रही वृद्धि
रिकॉर्ड के अनुसार ला नीना के बावजूद भी 2020 अब तक का सबसे गर्म वर्ष था, जब तापमान में हो रही औसत वृद्धि 2016 और 2019 के बराबर रिकॉर्ड की गई थी। यदि 2020 के दौरान तापमान में हुई औसत वृद्धि को देखें तो वो पूर्व औद्योगिक काल से 1.28 डिग्री सेल्सियस ज्यादा थी। यही नहीं पिछला दशक (2011 से 20) इतिहास का अब तक का सबसे गर्म दशक था।
वहीं यदि संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित एक अन्य रिपोर्ट "एमिशन गैप रिपोर्ट 2020" को देखें तो उसमें सम्भावना व्यक्त की गई थी कि यदि तापमान में हो रही वृद्धि इसी तरह जारी रहती है, तो सदी के अंत तक वो वृद्धि 3.2 डिग्री सेल्सियस के पार चली जाएगी। जिसके विनाशकारी परिणाम झेलने होंगे।
इसके साथ ही इस रिपोर्ट में भविष्यवाणी की गई है कि एक तरफ जहां अटलांटिक महासागर में आने वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के बढ़ने की संभावना है| वहीं अफ्रीका के सहेल और ऑस्ट्रेलिया में सामान्य से ज्यादा बारिश होने की सम्भावना है| वहीं उत्तरी अमेरिका के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में सूखा पड़ने की सम्भावना कहीं अधिक है|
डब्ल्यूएमओ के महासचिव पेटेरी तालास ने इस बारे में कहा है कि यह आंकड़ों से बढ़कर हैं। बढ़ते तापमान का मतलब है, कहीं अधिक मात्रा में बर्फ का पिघलना, समुद्र के जल स्तर का बढ़ना, हीटवेव का बढ़ना, साथ ही मौसम की चरम घटनाओं का और विनाशकारी होना है| जिसका असर खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और सतत विकास पर पड़ेगा। उनके अनुसार यह यह एक बार फिर हमें आगाह करती है कि दुनिया को बढ़ते उत्सर्जन में कमी लाने की तुरंत जरुरत है|
यदि इन सब पर गौर करें तो तापमान में पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा तेजी से बदलाव आ रहा है जिसका खामियाजा हमें ही भुगतना पड़ रहा है| यदि हमने इन सब चेतावनियों पर आज गौर नहीं किया बहुत जल्द धरती का तापमान टिप्पिंग पॉइंट पर पहुंच जाएगा, तब हमारे पास इससे निपटने का कोई मौका भी नहीं बचेगा|