जलवायु संकट: बढ़ते तापमान के साथ बढ़ेगी जेट स्ट्रीम की रफ्तार, मौसमी घटनाओं पर पड़ेगा असर

अनुमान है कि तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ इन शक्तिशाली हवाओं की रफ्तार दो फीसदी बढ़ जाएगी
रिसर्च से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के चलते जेट स्ट्रीम हवाएं (चित्र में गहरे लाल रंग में दर्शाई गई हैं) समय के साथ और तेज हो जाएंगी। फोटो: नासा गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर
रिसर्च से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के चलते जेट स्ट्रीम हवाएं (चित्र में गहरे लाल रंग में दर्शाई गई हैं) समय के साथ और तेज हो जाएंगी। फोटो: नासा गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर
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वैश्विक स्तर पर बढ़ता तापमान मौसम को नियंत्रित करने वाली जेट स्ट्रीम को भी प्रभावित कर रहा है। रिसर्च से पता चला है कि बढ़ते तापमान के साथ इन जेट स्ट्रीम की रफ्तार पहले से कहीं ज्यादा तेज होती जाएगी।

बता दें कि ऊपरी वायुमंडल में चलने वाली यह शक्तिशाली, तेज हवाएं अपनी रफ्तार के लिए जानी जाती है। जो पृथ्वी पर मौसम से जुड़ी अधिकांश प्रणालियों को नियंत्रित करती हैं और साथ ही यह हवाएं चरम मौसमी आपदाओं के प्रकोप से भी जुड़ी हैं।

शोधकर्ताओं के मुताबिक जैसे-जैसे दुनिया गर्म होती जाएगी, बेहद ऊंचाई पर चलने वाली यह अत्यंत तेज हवाएं और तेज होती जाएंगी। अनुमान है कि तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ इन बेहद तेज जेट स्ट्रीम की रफ्तार दो फीसदी बढ़ जाएगी। इतना ही नहीं बढ़ते तापमान के चलते सबसे तेज हवाओं की रफ्तार सामान्य हवाओं से ढाई गुणा तेज होगी।

जेट स्ट्रीम पर बढ़ते तापमान के प्रभावों को उजागर करने वाला अपनी तरह का यह पहला अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की प्रोफेसर टिफनी शॉ और नेशनल सेंटर फॉर  एटमॉस्फेरिक रिसर्च के वैज्ञानिक ओसामु मियावाकी द्वारा किया गया है, जिसके नतीजे नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हुए हैं।

इस बारे में प्रोफेसर शॉ का कहना है कि, “अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनके आधार पर हम कह सकते हैं कि इन हवाओं की रफ्तार कहीं ज्यादा तेज हो सकती है। इससे उड़ान का समय घट जाएगा और साफ हवा अशांत हो सकती है। साथ ही चरम मौसमी घटनाएं बढ़ सकती हैं।“

क्या हैं यह जेट स्ट्रीम और मौसम के नजरिए क्यों हैं इतनी महत्वपूर्ण

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह जेट स्ट्रीम या जेट धाराएं पृथ्वी की सतह से करीब आठ से 15 किलोमीटर ऊपर, पश्चिम से पूर्व की ओर चलने वाली बेहद तेज हवाओं का केंद्र है। हवाओं की यह संकरी पट्टी क्षोभमण्डल और समतापमंडल के बीच स्थित 'ट्रोपोपॉज' में मौजूद होती है। बता दें कि यह क्षेत्र क्षोभमण्डल और समतापमंडल को अलग करता है। चूंकि यह क्षेत्र विमानों की उड़ान में सहायक होता है इसलिए उन्हीं के नाम पर इन हवाओं को ‘जेट स्ट्रीम’ के नाम से जाना जाता है।

आमतौर पर इस प्रणाली में हवाएं पश्चिम से पूर्व की ओर चलती हैं, लेकिन इनका बैंड अक्सर उत्तर और दक्षिण की ओर स्थानांतरित हो जाता है क्योंकि जेट स्ट्रीम, गर्म और ठंडी हवाओं के बीच की सीमाओं का पालन करती हैं।

दुनिया भर में अलग-अलग जेट स्ट्रीम होती हैं। इनमें उत्तरी और दक्षिणी दोनों गोलार्धों में 50 से 60 डिग्री अक्षांश रेखाओं के बीच चलने वाली जेट स्ट्रीम को ध्रुवीय जेट कहते हैं, जबकि 30 डिग्री अक्षांतर के आसपास स्थित जेट स्ट्रीम को उपोष्णकटिबंधीय जेट कहते हैं। आमतौर पर इन हवाओं की रफ्तार 129 से 225 किलोमीटर प्रति घंटा तक होती है लेकिन वो बढ़कर 442 किलोमीटर प्रति घंटा तक पहुंच सकती हैं।

शोधकर्ताओं के मुताबिक यह जेट स्ट्रीम पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने के साथ-साथ ध्रुवों पर भारी और ठंडी हवाओं और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से आने वाली हल्की और गर्म हवाओं के बीच विरोधाभास के कारण बनती हैं।

रिसर्च से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से हवा के घनत्व में मौजूद अंतर और मजबूत हो रहा है। जैसे-जैसे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में हवा और गर्म हो रही है, वो बहुत अधिक नमी बनाए रख सकती है। हालांकि ध्रुवों पर भी हवा गर्म हो रही है, चूंकि गर्म हवा, ठंडी हवा की तुलना में बहुत अधिक नमी संजो सकती है, इसकी वजह से इन हवाओं के घनत्व में जो अंतर है वो बहुत बढ़ जाता है।

शॉ के मुताबिक यह वृद्धि बड़ी तेजी से करीब हर डिग्री के साथ दो फीसदी की दर से होती है। ऐसे में यदि शुरूआती अंतर बड़ा है, तो वृद्धि और भी बड़ी हो जाती है, जिससे तेज हवाएं और तेज हो जाती हैं।

क्या कुछ निकलकर आया अध्ययन में सामने

शोधकर्तओं ने अध्ययन के दौरान पृथ्वी के जलवायु मॉडल के साथ जो प्रयोग किए हैं, उनसे पता चला है कि यह प्रभाव बेहद  मजबूत था। शॉ के अनुसार भले ही आप मॉडल में समुद्री धाराओं को शामिल नहीं करते या फिर उसमे से सभी जमीन हटा देते हैं तो भी यह प्रभाव बना रहता है।

शोध के मुताबिक यह हवाएं धरती पर मौसम को भी बड़े पैमाने पर प्रभावित करती हैं। जो हवा के तापमान, पैटर्न और तूफान आदि पर भी असर डालती हैं। वायुमण्डलीय विक्षोभों के साथ-साथ चक्रवातो, प्रतिचक्रवातों को प्रभावित करने के साथ बारिश और ओलावृष्टि में भी सहायक होती हैं।

अध्ययन के दौरान पृथ्वी के जलवायु मॉडल के साथ जो प्रयोग किए हैं, उनसे पता चला है कि यह प्रभाव बेहद  मजबूत थे। शॉ के अनुसार भले ही आप मॉडल में समुद्री धाराओं को शामिल नहीं करते तो भी यह प्रभाव बना रहता है।

शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि हालांकि यह प्रभाव स्पष्ट है लेकिन यह जेट स्ट्रीम किसी तूफान या चरम मौसमी घटनाओं को कैसे प्रभावित करती है, इसके लिए और अधिक शोध करने की आवश्यकता है।

शॉ का कहना है कि इनकी बेहतर समझ नीति निर्माताओं और समुदायों को भविष्य के लिए तैयार रहने में मददगार साबित हो सकती हैं। उनका आगे कहना है कि हालांकि अटलांटिक के पार तेज उड़ानें अच्छी लग सकती हैं, लेकिन इसका एक नकारात्मक पहलू भी है, इसकी वजह से विमानों को कहीं ज्यादा टर्बुलेन्स का सामना करना पड़ेगा।

हालांकि वैज्ञानिकों ने हाल के दशकों में रिकॉर्ड तेज जेट स्ट्रीम हवाएं दर्ज की हैं, लेकिन अभी तक उनकी कोई महत्वपूर्ण प्रवृत्ति नहीं देखी गई है। ऐसे में शॉ ने चेताया है कि अगर हम मौजूदा दर से कार्बन उत्सर्जित करते रहे तो अगले कुछ दशकों में इसके स्पष्ट प्रभाव सामने आ सकते हैं।

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