जलवायु संकट: बढ़ते तापमान से मगरमच्छों के व्यवहार में हो रहा बदलाव

जलवायु परिवर्तन की वजह से मगरमच्छों को कहीं अधिक गर्मी का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे में शरीर का बढ़ता तापमान इनके व्यवहार में बदलाव की वजह बन रहा है
शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए आराम करता मगरमच्छ; फोटो: आईस्टॉक
शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए आराम करता मगरमच्छ; फोटो: आईस्टॉक
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धरती पर बढ़ता तापमान सिर्फ हम इंसानों के लिए ही नहीं दूसरे जीवों के लिए भी बड़ा खतरा है, जो इन जीवों को अलग-अलग तरह से प्रभावित कर रहा है। बढ़ते तापमान के साथ जहां कुछ जीवों के व्यवहार और आदतों में बदलाव आ रहा है। वहीं कुछ को अपने अनुकूल वातावरण की तलाश में लम्बी दूरी की यात्राएं करने पड़ रही है। वहीं कुछ जीवों को अपने भोजन के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। ऐसा ही कुछ मगरमच्छों के साथ भी हो रहा है।

जलवायु परिवर्तन की वजह से मगरमच्छों में आते बदलावों को समझने के लिए किए एक नए अध्ययन से पता चला है बढ़ते तापमान के चलते इन जीवों के व्यवहार में बदलाव आ रहा है।

ऑस्ट्रेलिया में मगरमच्छों पर किए इस अध्ययन के मुताबिक जलवायु परिवर्तन की वजह से इन जीवों को कहीं अधिक गर्मी का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे में शरीर का बढ़ता तापमान इनके व्यवहार में बदलाव की वजह बन रहा है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल करंट बायोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं।

इस बारे में अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता कैटलिन बरहम ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, "आंकड़ों से पता चला है कि मगरमच्छ 32 से 33 डिग्री सेल्सियस के आसपास अधिक समय बिता रहे हैं। तापमान की यह सीमा मगरमच्छों के लिए लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण होती है। ऐसे में तापमान में आए बदलाव से उनके व्यवहार पर असर पड़ता है।"

क्वींसलैंड विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं ने अपने इस शोध में केप यॉर्क की वेनलॉक और ड्यूसी नदियों में 203 जंगली मगरमच्छों का अध्ययन किया है। इस अध्ययन में उन्होंने सेंसर और ट्रैकर्स की मदद से प्राप्त 15 वर्षों के आंकड़ों का भी विश्लेषण किया है।

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गौरतलब है कि पक्षियों और स्तनधारियों के विपरीत मगरमच्छ ठन्डे रक्त के प्राणी होते हैं। इसका मतलब है कि वो अपने शरीर के तापमान को स्वयं आंतरिक रूप से नियंत्रित नहीं कर सकते हैं। आमतौर पर यह जीव 30-33 डिग्री सेल्सियस के तापमान में रहना पसंद करते हैं।

यदि तापमान में कोई बदलाव आता है तो वो गर्म और ठन्डे क्षेत्रों के बीच घूमकर इसे नियंत्रित करते हैं। उदाहरण के लिए सर्दियों में वे अपने आप को गर्म रखने के लिए धूप में बैठते हैं। वहीं तापमान बढ़ने पर वे छाया की तलाश करते हैं।

बरहम के मुताबिक जैसे-जैसे इनका वातावरण गर्म होता जा रहा है, इन जानवर को भी गर्मी से जूझना पड़ रहा है। इसकी वजह से अपने शरीर को ठंडा रखने की कोशिश में अधिक समय की आवश्यकता पड़ रही है। ऐसे में यदि उनकी ऊर्जा और समय, ठंडा रहने पर खर्च हो रहा है, तो इसकी वजह से उनकी शिकार करने, शिकारियों से सुरक्षित रहने या प्रजनन के लिए आवश्यक गतिविधियां कम हो जाती हैं।

जीवों के लिए समस्या बन रहा बढ़ता तापमान

शोधकर्ताओं के मुताबिक 2008 से, अध्ययन में शामिल मगरमच्छों ने तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि का अनुभव किया है। इसकी वजह से उनके शरीर का औसत तापमान 0.11 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। उत्तरी ऑस्ट्रेलिया जलवायु कार्यक्रम की एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया का औसत तापमान हर दशक 0.05 से 0.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ रहा है।

अध्ययन में शामिल 45 मगरमच्छों के शरीर का तापमान कम से कम एक बार 34 डिग्री सेल्सियस से अधिक पाया गया। अध्ययन से जुड़े अन्य शोधकर्ता प्रोफेसर क्रेग फ्रैंकलिन ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि मगरमच्छों के शरीर का तापमान ठंडा रहने की कोशिश करते समय भी उच्च दर्ज किया गया।" उनके अनुसार 32 से 33 डिग्री सेल्सियस से ऊपर, उनकी गोताखोरी और तैरने की क्षमता प्रभावित होती है।

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शोधकर्ताओं के मुताबिक जब मगरमच्छों के शरीर का तापमान अधिक होता है तो वो पानी के अंदर लम्बे समय तक नहीं रह सकते, जो चिंताजनक है। गौरतलब है कि मगरमच्छ घात लगाकर शिकार करने वाला जीव है, वो अपने शिकार को पकड़ने के लिए पानी के भीतर सांस रोककर उसका इन्तजार करते हैं। 

हालांकि यह शोध ऑस्ट्रेलिया में मगरमच्छों पर किया गया है। लेकिन इस बात की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि भारत में भी इन जीवों पर जलवायु परिवर्तन का असर पड़ रहा है, क्योंकि वैश्विक तापमान में होती वृद्धि के साथ भारत में भी तापमान में इजाफा दर्ज किया गया है।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने भी पुष्टि की है कि साल 2024 में वार्षिक औसत तापमान सामान्य से 0.65 डिग्री सेल्सियस रहा, जो एक नया रिकॉर्ड है। इस बढ़ते तापमान की वजह न केवल सीधे तौर पर जीवों असर पड़ रहा है साथ ही चरम मौसमी घटनाएं भी पहले से विकराल रूप ले रही हैं, जो इंसानों के साथ-साथ दूसरे जीवों पर भी गहरा असर डाल रही हैं।

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