एक तरफ जहां वैश्विक नेता जलवायु परिवर्तन पर चर्चा कर रहे हैं वहीं बढ़ते तापमान को लेकर एक और परेशान कर देने वाली खबर सामने आई है। पता चला है कि गत नवंबर का महीना जलवायु इतिहास का अब तक सबसे गर्म नवंबर था।
यूरोप की कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस ने जानकारी दी है कि नवंबर में बढ़ता तापमान एक नए शिखर पर पहुंच गया। आंकड़ों के मुताबिक नवंबर 2023 के दौरान सतह के पास हवा का औसत वैश्विक तापमान 14.22 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया, जो औद्योगिक काल (1850-1900) से पहले की तुलना में करीब 1.75 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म था।
वहीं यदि 1991 से 2020 के बीच नवंबर के औसत तापमान से तुलना करें तो नवंबर 2023 में तापमान 0.85 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। इससे पहले सबसे गर्म नवंबर 2020 में दर्ज किया गया था। लेकिन इस साल बढ़ते तापमान ने उसको भी पीछे छोड़ दिया है। यही वजह है कि इस साल नवंबर में तापमान पिछले सबसे गर्म नवंबर से भी 0.32 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया है।
यूरोपियन सेंटर फॉर मीडियम-रेंज वेदर फोरकास्ट्स (ईसीएमडब्ल्यूएफ) के प्रारंभिक विश्लेषण के मुताबिक, 17 नवंबर, 2023 को वैश्विक तापमान दो डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गया था। इस दिन तापमान औद्योगिक काल से पहले (1850-1900) के औसत तापमान की तुलना में 2.06 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। इससे पहले कभी भी तापमान इस सीमा पर नहीं पहुंचा था।
बढ़ते तापमान का असर साफ तौर पर देखा जा सकता है। भारत में जहां सर्दियों की शुरूआत हो चुकी है उसके बावजूद उतनी ज्यादा सर्दी महसूस नहीं हो रही जितने इस समय में होनी चाहिए थी।
यदि 2023 की बात करें तो अब यह करीब-करीब तय माना जा रहा है यह साल जलवायु इतिहास का अब तक का सबसे गर्म साल होगा। यदि जनवरी से नवंबर के बीच पिछले 11 महीनों के औसत तापमान को देखें तो वो औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.46 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया है। जो उसे अब तक की सबसे गर्म अवधि बनाता है। वहीं जून से नवंबर के बीच पिछले छह महीनों की बात करें तो इन सभी महीनों ने बढ़ते तापमान के रिकॉर्ड बनाए हैं।
जलवायु परिवर्तन पर चर्चा के लिए कॉप-28 में जारी है वार्ताओं का दौर
नेशनल ओसेनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के नेशनल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल इंफॉर्मेशन (एनसीईआई) द्वारा 15 नवंबर 2023 को जारी रिपोर्ट से पता चला है कि पिछले अक्टूबर अब तक का सबसे गर्म अक्टूबर का महीना था। जब औसत तापमान सामान्य से 1.34 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रिकॉर्ड किया गया। इसी तरह जून, जुलाई, अगस्त और सितम्बर ने भी जलवायु इतिहास में कीर्तिमान बनाए थे।
आंकड़ों के मुताबिक इस साल नवंबर के महीने में कोई भी दिन ऐसा नहीं रहा जब बढ़ता तापमान औद्योगिक काल से पहले के औसत तापमान से एक डिग्री सेल्सियस ज्यादा न हो, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। इसी तरह महीने के 43 फीसदी दिनों में तापमान औसत से 1.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया।
वैज्ञानिकों के मुताबिक यदि बढ़ते तापमान का यह सिलसिला दिसंबर 2023 में भी जारी रहता है, तो इस साल का औसत तापमान सामान्य से 1.48 डिग्री सेल्सियस अधिक रह सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक न केवल जमीन पर बल्कि समुद्र भी बढ़ते तापमान के प्रभावों से सुरक्षित नहीं है। आंकड़ों के मुताबिक लगातार आठवें महीने, वैश्विक स्तर पर महासागरों की सतह का तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। नवंबर में, समुद्र की सतह के औसत तापमान ने भी एक नया रिकॉर्ड बनाया है, जो 2015 के दूसरे सबसे गर्म नवंबर की तुलना में 0.25 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म था।
वहीं यदि ध्रुवों पर जमा बर्फ की बात करें तो नवंबर में आर्कटिक समुद्री बर्फ का विस्तार औसत से चार फीसदी घटकर अब तक के अपने आठवें सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया। इसी तरह यह दूसरा मौका है जब अंटार्कटिक में समुद्री बर्फ का विस्तार इतना कम दर्ज किया गया जो औसत से करीब नौ फीसदी कम रहा।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) भी इस बात की पुष्टि कर चुका है कि अल नीनो का प्रभाव अगले साल अप्रैल 2024 तक जारी रहेगा। मतलब की इस साल में बढ़ते तापमान से छुटकारा पाने की सम्भावना बिलकुल न के बराबर है। डब्ल्यूएमओ के मुताबिक इस बढ़ते तापमान के साथ गर्मी, लू, बाढ़ जैसी चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि होने की आशंका लगातार बढ़ रही है।
गौरतलब है कि धरती पर मंडराते सबसे बड़े खतरों में से एक जलवायु परिवर्तन पर चर्चा के लिए वार्ताओं का दौर 30 नवंबर से संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में शुरू हो चुका है। 30 नवंबर से 12 दिसंबर 2023 तक चलने वाले इस सम्मलेन में जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ उससे जुड़े कई मुद्दों पर चर्चा की जाएगी।
सरकारें दुबई में कॉप-28 के दौरान अभी भी इस बात को लेकर चर्चा कर रही हैं कि जीवाश्म ईंधन के उपयोग को किस तरह चरणबद्ध तरीके से बंद किया जाए। बता दें कि यह जीवाश्म ईंधन कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते उत्सर्जन की सबसे बड़ी वजह है, जो बढ़ते तापमान के लिए जिम्मेवार है।
हालांकि नवंबर में बढ़ते तापमान ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि बढ़ते उत्सर्जन को सीमित करना कितना जरूरी है, क्योंकि जैसे-जैसे तापमान बढ़ रहा है स्थिति कहीं ज्यादा विकट होती जा रही है। ऐसे में यदि हम अभी नहीं चेते तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम झेलने पड़ सकते हैं।