तेलोली गांव जोकि कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले में प्राचीन अंशी जंगल के किनारे स्थित है वहां रहने वाले ग्रामीण जंगल में आते ऐसे बदलावों को अनुभव कर रहे हैं, जो पहले कभी नहीं देखे गए। इसके लिए बढ़ता तापमान, बारिश के पैटर्न में आता बदलाव और मौसम की चरम घटनाएं जिम्मेवार हैं। डर है कि यह अनजाने बदलाव आगे चलकर व्यापक घटनाओं की वजह बन सकते हैं।
इस बात की पुष्टि भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) ने 2020 में किए अपने तकनीकी अध्ययन में भी की है कि अंशी वन 1951 से 2019 के बीच जलवायु में आते बदलावों और उनके प्रभावों के लिए एक हॉटस्पॉट है।
एक स्थानीय ग्रामीण 55 वर्षीय सुरेश बाबू गावड़ा ने जंगल और गांव के बीच लगे एक पेड़ की ओर इशारा करते हुए डाउन टू अर्थ (डीटीई) को बताया कि, "इस साल, हमारे गांव या आस-पास के इलाकों में पेड़ों पर कोई वेटे हुली फल नहीं लगे।" गौरतलब है कि वेटे हुली, जिसे मंकी जैक के नाम से भी जाना जाता है। स्वाद में खट्टे इन फलों का उपयोग स्थानीय लोग खासकर स्थानीय कंद वाली सब्जियों में मसाले के रूप में करते हैं।
पिछले कुछ वर्षों में मंकी जैक का उत्पादन कम हुआ है, लेकिन इस बार यह इतना घट गया कि जिसको देखकर लोग हैरान हैं। इस बारे में पास के कुंभारवाड़ा गांव के शांताराम कामत का कहना है कि पहले हमें एक पेड़ से करीब 50 क्विंटल फल मिलता था, जो हाल के वर्षों में घटकर 30 से 40 क्विंटल रह गया है। लेकिन 2023 ने तो सभी को बड़ा झटका दिया है।" कामत काली फार्मर्स प्रोड्यूसर नामक कंपनी चलाते हैं और वन पारिस्थितिकी के स्थानीय विशेषज्ञ भी हैं।
बता दें कि मंकी जैक, एक अर्ध-सदाबहारी वृक्ष हैं, जो अंशी जंगल और उसके आसपास उत्तरी कर्नाटक में पश्चिमी घाट के अन्य क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में उगता है। यह पेड़ शरद ऋतु के दौरान थोड़े समय के लिए अपनी पत्तियां गिरा देते हैं। इनमें फरवरी के आसपास फूल आते हैं और अप्रैल से मई के बीच फलों के लगने का सिलसिला शुरू हो जाता है।
स्थानीय इनका उपयोग भोजन, चारे, लकड़ी और औषधीय प्रयोजनों के लिए करते हैं। आम तौर पर यह पेड़ गहरी अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में पनपते हैं और उन्हें साल में औसतन 700 से 2,000 मिलीमीटर बारिश की आवश्यकता होती है। लेकिन 2023 में बहुत कम बारिश हुई हुई है। एक मार्च से 31 मई के बीच उत्तर कन्नड़ जिले में सामान्य से 59 फीसदी कम बारिश हुई।
शहद के साथ जंगलों से मिलने वाले अन्य उत्पादों पर भी पड़ा असर
इस बारे में कामत ने बताया कि, "होली और गुड़ी पड़वा के दौरान हमेशा लगातार मध्यम तीव्रता की बारिश होती है, यह सिलसिला दोनों प्री-मॉनसून सीजन में जारी रहता है। लेकिन पिछले कुछ सालों से ऐसा नहीं हुआ।" उन्होंने आगे बताया कि, "या तो बारिश नहीं हो रही है या भारी से अत्यधिक बारिश हो रही है।"
बारिश की कमी का असर प्रदेश के दूसरे इलाकों में भी देखने को मिल रहा है। जब डीटीई ने कादरा से, जहां से अंशी वन प्रभाग शुरू होता है, कुंभारवाड़ा तक की यात्रा की तो वहां जंगल के कई हिस्से सूखे पड़े थे।
बारिश की कमी का असर जंगलों से मिलने वाले अन्य उत्पादों जैसे शहद और कंद को भी प्रभावित कर रहा है। उदाहरण के लिए, शहद के अच्छे उत्पादन के लिए मानसून से पहले अच्छी बारिश की आवश्यकता होती है। कामत ने समझाया कि “जब बारिश नहीं होती या कम होती है, तो शहद गाढ़ा हो जाता है, जिससे कुल उत्पादन कम हो जाता है। पेड़ों के फूलने के लिए भी बारिश की आवश्यकता होती है, जो मधुमक्खियों के लिए शहद पैदा करने का अमृत स्रोत है।
गावड़ा ने बताया कि, "चार-पांच साल पहले, वे एक छत्ते से करीब 20 किलो शहद इकट्ठा करते थे। यह अब घटकर पांच से दस किलो रह गया है।" इसी तरह जंगल के दूसरे कई अन्य पौधों और पेड़ों को भी अंकुरण और अन्य गतिविधियों के लिए मानसून से पहले अच्छी बारिश की आवश्यकता होती है। फिर मानसून की बारिश उनके आगे विकास में सहायता करती है।
कामत का कहना है कि "इसके बावजूद मुख्य जंगलों के अंदर इसकी निगरानी नहीं की जा रही और हमारे पास किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कोई आंकड़े भी नहीं है।"
एक फसल जिससे इस स्थिति को समझा जा सकता है वह है कंद, जिसकी सिंचाई और देखभाल स्थानीय किसानों द्वारा की जाती है। हालांकि इसके बावजूद जंगलों के बाहर इसकी वृद्धि प्रभावित हुई है। वहीं कामत के मुताबिक, जंगल के अंदर तो स्थिति कहीं ज्यादा भयावह होगी। एक और असामान्य और पहले कभी न देखी गई घटना तेलोली गांव के ठीक बाहर वन क्षेत्र के अंदर 21 जुलाई, 2021 को हुआ भूस्खलन था। इस दौरान जंगल को जो क्षति हुई, उसका असर मई 2023 में भी दिखाई दे रहा था।
21 जुलाई, 2021 को पहली बार तेलोली गांव के पास में अंशी वन क्षेत्र में हुआ भूस्खलन/ फोटो: अक्षित संगोमला
इलाके से गायब हो रही 'बटकी'
गावड़ा का कहना है कि, “उस दिन थोड़ी ही देर में बहुत ज्यादा बारिश हुई और पहाड़ी का किनारा नीचे खिसक गया।" उनके मुताबिक ''बारिश से इस तरह जंगल का बह जाना इस क्षेत्र में पहली बार हुआ है।
बारिश के पैटर्न में जिस तरह बदलाव आए हैं उसके कारण अन्य पारिस्थितिकीय प्रभाव भी पड़े हैं जैसे तितलियों की संख्या में कमी के साथ-साथ विविधता में भी कमी आई है। इतना ही नहीं इस इलाके में आने वाले प्रवासी पक्षियों की उपस्थिति में भी कमी देखी गई है।
ऐसा ही कुछ 'बटकी' के साथ भी देखने को मिला है। इस पक्षी को हर साल अगस्त से जनवरी के बीच इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में देखा जा सकता था। लेकिन गावड़ा के मुताबिक इस प्रजाति के दो पक्षियों को आखिरी बार नवंबर 2022 में देखा गया था।