60 वर्षों से भारत में लगातार बढ़ रहा है सूखे और लू का कहर, खेती के लिए भी है बड़ा खतरा

लू के बढ़ते कहर से बचने के लिए कहीं ज्यादा बड़े स्तर पर कार्रवाई की जरूरत है, क्योंकि बदलती जलवायु के साथ यह संकट कहीं ज्यादा गहराता जा रहा है
60 वर्षों से भारत में लगातार बढ़ रहा है सूखे और लू का कहर, खेती के लिए भी है बड़ा खतरा
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भारत के कई हिस्सों में पिछले 60 वर्षों के दौरान सूखे और लू की आवृत्ति काफी बढ़ गई है। जो देश में लोगों के लिए नई चुनौतियां पैदा कर रहीं हैं। यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र और रेड क्रॉस द्वारा जारी नई रिपोर्ट “एक्सट्रीम हीट: प्रीपेरिंग फॉर द हीटवेब्स ऑफ द फ्यूचर” में सामने आई है।

ऐसे में रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि लू के बढ़ते कहर से बचने के लिए कहीं ज्यादा बड़े स्तर पर कार्रवाई की जरूरत है, क्योंकि बदलती जलवायु के साथ यह संकट कहीं ज्यादा गहराता जा रहा है।

इस बारे में हाल ही में जर्नल वेदर एंड क्लाइमेट एक्सट्रीम्स में प्रकाशित एक रिसर्च से पता चला है कि 1970 से 2019 के बीच पिछले 50 वर्षों में देश में लू की 706 घटनाएं दर्ज की गई हैं, जिनमें करीब 17,362 लोगों की जान गई है।

इस दौरान देश में चरम मौसमी घटनाओं के कारण गई कुल जानों में से 12 फीसदी के लिए लू ही जिम्मेवार थी और पिछले 50 वर्षों में लू के चलते मृत्युदर में 62.2 फीसदी की वृद्धि हुई है।

हाल ही में जर्नल करंट साइंस में प्रकाशित एक अन्य शोध से भी पता चला है कि 1978 से 2014 के बीच देश में लू के कारण 12,273 लोगों की जान गई है जबकि 2015 से 2020 के बीच यह आंकड़ा 3,499 दर्ज किया गया है। जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि बढ़ते तापमान के साथ इसका कहर और बढ़ता जा रहा है। आंकड़ों के अनुसार 2015 में ही भारत में लू की वजह से 2,500 से ज्यादा लोगों की जान गई थी।

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि 2021 में लू के कारण कोई मौत नहीं हुई थी, हालांकि रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि 2021 की गर्मियों में लू के चलते एक ही दिन में चेन्नई में 11 लोगों की मौत हो गई थी। जबकि स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि इस साल 2022 में अप्रैल से जून के बीच लू के चलते 79 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी और 3,400 लोगों के लू के शिकार हुए थे। 

इस बारे में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में भूगोल के प्रोफेसर ओमवीर सिंह ने बताते हैं कि भारत, एक उष्णकटिबंधीय देश है, जहां अनूठी भौगोलिक और जलवायु दशाओं के कारण गंभीर लू का अनुभव ज्यादा होता है। वैश्विक रूप से चरम तापमान के कारण होने वाली मौतों की बात करें तो उस दृष्टिकोण से भारत को सबसे गंभीर रूप से प्रभावित देशों की श्रेणी में रखा जाता है।

देश में मिट्टी से नमी को सोख रही है बढ़ती गर्मी

ऐसा नहीं है कि लू और बढ़ती गर्मी का कहर केवल इंसानों के लिए ही जानलेवा साबित हो रहा है, बल्कि इसकी वजह से जानवरों और खेती पर भी व्यापक असर पड़ रहा है।

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बढ़ती गर्मी की वजह से मिट्टी से नमी की मात्रा बहुत तेजी से कम हो रही है, जो खेती के लिए बड़ा खतरा है। अनुमान है कि इसके चलते वैश्विक स्तर पर खाद्य उत्पादन एक चौथाई तक कम हो सकता है।

दुनिया को 28 हजार करोड़ डॉलर का नुकसान

वैश्विक स्तर पर देखें तो अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का अनुमान है कि गर्मी के बढ़ते तनाव के कारण जहां 1995 में 28,000 करोड़ डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ था। आशंका है कि वो 2030 में बढ़कर 2,40,000 करोड़ डॉलर पर पहुंच जाएगा।

वहीं शहरी क्षेत्रों की बात करें तो बढ़ती गर्मी दुनिया की लगभग एक चौथाई और शहरों की 46 फीसदी आबादी को प्रभावित कर रही है। 2016 में 170 करोड़ लोगों को कई दिनों तक भीषण गर्मी का सामना करना पड़ा था, जोकि शहरी आबादी का 46 फीसदी और कुल आबादी का 23 फीसदी हिस्सा था।

इस रिपोर्ट में ‘शहरी जलवायु परिवर्तन शोध नैटवर्क’ से प्राप्त पूर्वानुमानों को भी रेखांकित किया गया है। इसके अनुसार, 2050 तक अत्यधिक गर्म परिस्थितियों में रहने वाले शहरी निर्धन लोगों की संख्या में 700 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है। 

बढ़ते तापमान का असर बच्चों की शिक्षा पर भी देखा गया है। आलम यह है कि भारत में गर्मी के चलते कई स्कूलों ने अपने शिक्षण समय को कम कर दिया था।

यूनिसेफ का अनुमान है कि वर्तमान में करीब 82 करोड़ बच्चों के लू के संपर्क में आने का खतरा है। इस साल, दुनिया के विभिन्न हिस्सों उत्तरी अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व, पश्चिमी अमेरिका और चीन में लोगों ने रिकॉर्ड उच्च तापमान का अनुभव किया है।

इतना ही नहीं, रिपोर्ट में कहा गया है कि यह बढ़ता तापमान पाकिस्तान और सोमालिया जैसे देशों में भारी तबाही मचा रहा है। जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन का असर अब खुल कर सामने आने लगा है। लगातार तेजी से बढ़ती गर्मी आपात स्थिति पैदा कर रही है। 

बढ़ते तापमान के साथ आने वाले दशकों में और बढ़ेगी गर्मी

देश-दुनिया में लू की इन बढ़ती घटनाओं के लिए कहीं न कहीं बढ़ता तापमान जिम्मेवार है। यदि वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि की बात करें तो वो पहले ही 1.28 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुकी है।

वहीं इस बात की 40 फीसदी आशंका है कि अगले पांच वर्षों में वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगी, जबकि अनुमान है कि सदी के अंत तक यह वृद्धि 3.2 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाएगी। ऐसे में आशंका है कि बढ़ते तापमान के साथ भीषण गर्मी और लू का कहर भी कई गुना बढ़ जाएगा।

जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में लू पर छपे एक शोध में आशंका जताई गई है कि तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ लोगों के लू की चपेट में आने का जोखिम करीब तीन गुना बढ़ जाएगा।

ऐसे में यह खतरा कितना गंभीर है इसका अनुमान आप स्वयं लगा सकते हैं। पता चला है कि तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ ही भारत में लू का कहर आम हो जाएगा। यही नहीं तापमान में होने वाली 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से लोगों के इसकी चपेट में आने का जोखिम भी 2.7 गुणा बढ़ जाएगा।

इतना ही नहीं, रिपोर्ट के अनुसार यदि तापमान में होती वृद्धि जारी रहती है तो सदी के अंत तक भीषण गर्मी और लू की घटनाओं की वजह से एशिया और अफ्रीका के कई हिस्से लोगों के रहने योग्य नहीं रहेंगे, जोकि करीब 60 करोड़ लोगों का घर हैं।

जबकि जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में छपे शोध के मुताबिक दुनिया भर में गर्मीं के कारण होने वाली 37 फीसदी मौतों के लिए तापमान में हो रही वृद्धि जिम्मेवार है।

अहमदाबाद में लेना होगा सबक?

इस रिपोर्ट में अहमदाबाद शहर के हीटवेव एक्शन प्लान का भी जिक्र किया है, जिसकी वजह से हर साल लू के कारण होने वाली 1,100 संभावित मौतों को रोकने में मदद मिली।

रिपोर्ट से पता चला है कि यदि हम वैश्विक तापमान में होती वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने में कामयाब रहते हैं तो इसकी मदद से 42 करोड़ लोगों को भीषण गर्मी के कहर से बचाया जा सकता है, जबकि 6.5 करोड़ लोग 'असाधारण' लू के कहर से बच जाएंगें।

गौरतलब है कि अगले महीने मिस्र में जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मलेन कॉप-27 शुरू हो रहा है। ऐसे में यह रिपोर्ट सभी देशों से भीषण गर्मी और उसके दुष्प्रभावों को कम करने के लिए ठोस कदम उठाने का आग्रह करती है।

विश्व के साधन-सम्पन्न देश आने वाले वर्षों में इस बढ़ते तापमान का सामना करने के लिए तैयार हैं लेकिन कमजोर देश अभी भी इससे निपटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। गौरतलब है कि इस बढ़ते तापमान की जद में आने वालों में किसान, प्रवासी, श्रमिकों के अलावा, बुजुर्ग, बच्चे और गर्भवती महिलाएं भी शामिल हैं। इसका सबसे ज्यादा असर निर्बल व हाशिये पर जीवन व्यतीत कर रहे लोगों को सबसे ज्यादा प्रभावित करेगा। ऐसे में उनपर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।

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