व्यापार से संबंधित रणनीतियों से जलवायु संकट पर काबू पाया जा सकता है: अध्ययन

इंडोनेशिया भारत की तुलना में लगभग दो डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म है, दोनों देशों के बीच तापमान में एक डिग्री का अंतर होने से उनके बीच हर साल व्यापार में औसतन 82 मिलियन डॉलर की वृद्धि होगी।
फोटो साभार :आई-स्टॉक
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बढ़ता तापमान मौसम के मिजाज को और अधिक खतरनाक बना रहा है इसके कारण विभिन्न क्षेत्रों में असमानताएं बढ़ रही हैं। हालांकि, अध्ययन में कहा गया है कि, आर्थिक विकास अभी भी संभव है, अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक तापमान के प्रभावों के प्रति अलग-अलग तरह से निपटती हुई दिख रही हैं।

वैज्ञानिकों ने यह समझने की कोशिश कि, क्या जलवायु संकट नए व्यापारिक पैटर्न बना रहा है। अध्ययन के निष्कर्ष बताते है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन रणनीति के रूप में काम कर सकता है।

बदलती जलवायु के कारण उत्पादन में बदलाव घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाजारों के पक्ष में हो सकता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि, वे दुनिया भर में एक दूसरे से संबंधित वस्तुओं की आवाजाही को कैसे सुविधाजनक बनाते हैं।

अध्ययन के मुताबिक, भौगोलिक दूरी या अर्थव्यवस्थाओं के आकार जैसी स्थितियों को ध्यान में रखते हुए, दो व्यापारिक साझेदारों के बीच वस्तुओं के आदान-प्रदान का महत्व उतना ही अधिक होता है जितना उनकी जलवायु परिस्थितियां अलग होती हैं। विशेष रूप से, दो देशों के औसत तापमान के बीच अंतर में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के लिए, उनके बीच व्यापार औसतन 38 फीसदी तक बढ़ने की उम्मीद जताई गई है।

उदाहरण के लिए, 1996 से 2015 के बीच, भारत और इंडोनेशिया के बीच कृषि और खाद्य-संबंधी व्यापार इस अवधि के दौरान हर साल औसतन 215 मिलियन डॉलर का था। इंडोनेशिया भारत की तुलना में लगभग दो डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म है और दोनों देशों के बीच तापमान में एक डिग्री सेल्सियस का अंतर होने के कारण उनके बीच हर साल व्यापार में औसतन 82 मिलियन डॉलर की वृद्धि होगी।

तापमान में बदलाव के कारण नए शिपिंग मार्ग बन रहे हैं

इकोलॉजिकल इंडीकेटर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि, विभिन्न देशों में तापमान का अंतर जितना अधिक होगा, उनके व्यापारिक रिश्ते उतने ही मजबूत होंगे। पूर्ण रूप से, उत्तरी गोलार्ध में मार्गों के लिए व्यापार में काफी वृद्धि होती है, खासकर जब यूरोपीय संघ और अमेरिका शामिल होते हैं। इंट्रा-ईयू शिपिंग मार्गों में हर साल एक बिलियन डॉलर से अधिक की वृद्धि होने की उम्मीद है।

ईयू-यूएस मार्ग में धन संबंधी लाभ भी प्रासंगिक है, जो ईयू व्यापार भागीदार के आधार पर हर साल 611 से बढ़कर 893 मिलियन डॉलर तक बढ़ जाता है। हालांकि कम पहचाने गए, दक्षिणी गोलार्ध के देशों के बीच व्यापार में वृद्धि की उम्मीद है, जिसमें लैटिन अमेरिका, उदाहरण के लिए, अर्जेंटीना और ब्राजील के बीच 552 मिलियन डॉलर की वृद्धि और ओशिनिया- ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच 573 मिलियन डॉलर की वृद्धि शामिल है।

उत्तरी और दक्षिणी देशों के बीच व्यापार प्रभावों के परिणाम में अंतर संभवतः दोनों देशों की जलवायु और आर्थिक विकास की स्थिति में भिन्नता के कारण है। अधिकांश उत्तरी देश विकसित अर्थव्यवस्थाएं हैं, जबकि अधिकांश दक्षिणी देश विकासशील या उभरती हई अर्थव्यवस्थाएं हैं।

उत्तरी विकसित देशों में दक्षिणी विकासशील देशों की तुलना में ठंडी जलवायु और अधिक कीमत वाले व्यापार होते हैं। तापमान में अंतर समान वृद्धि के तहत, आर्थिक विकास का उच्च स्तर धन संबंधी बड़े फायदों की और इशारा करता है।

हालांकि, यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि मौसम की ताकत दुनिया भर में काफी अलग होती है, भूमध्य रेखा के आसपास मौसम अधिक समान होते हैं। तापमान में अंतर से चीन जैसे निचले अक्षांश वाले देशों और यूरोपीय संघ जैसे उच्च अक्षांश वाले देशों के बीच व्यापार किए जाने वाले कृषि और खाद्य उत्पादों के मूल्य में वृद्धि होती है।

यूरोपीय आयोग के कृषि और ग्रामीण विकास महानिदेशालय के आंकड़ों के अनुसार, चीन यूरोपीय संघ के लिए एक शीर्ष मूल और एक शीर्ष गंतव्य दोनों है। 1996 से 2015 के बीच की अवधि के लिए चीन औसतन यूरोपीय संघ के व्यापारिक साझेदारों की तुलना में छह डिग्री सेल्सियस अधिक ठंडा है।

शोधकर्ता ने बताया कि, हमारे परिणामों के अनुरूप, इस तरह के अंतर से यूरोपीय संघ और चीन के बीच व्यापार में वृद्धि होगी। अन्य मध्य एशियाई देशों के समान, जो परंपरागत रूप से तापमान के कारण पीड़ित थे, चीन को गर्म तापमान के साथ बेहतर कृषि उत्पादकता से लाभ होगा।

गर्म वातावरण में जीवित रहने की रणनीतियां

जलवायु परिवर्तन का पूरे अंतरिक्ष में व्यापक प्रभाव पड़ता है, कुछ देशों को दूसरों की तुलना में अधिक नुकसान या लाभ होता है। कुल मिलाकर, जलवायु परिस्थितियों में बदलाव और देशों के तापमान में बढ़ता अंतर आर्थिक भूगोल को बदलने और क्षेत्रीय विशेषज्ञता को आकार देने में योगदान देता है।

अपनी विशेषज्ञता को स्थानांतरित करने वाले देश अनुकूलन का एक रूप है जो दुनिया के अन्य क्षेत्रों में भागीदारों के साथ व्यापार करने की उनकी क्षमता पर निर्भर करता है। अलग-अलग विशेषज्ञताओं के साथ व्यापारिक साझेदार विकसित करने से जलवायु परिवर्तन के लिए संभावित रूप से लाभकारी अनुकूलन रणनीति तैयार होगी।

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