
नेचर नामक प्रतिष्ठित पत्रिका में छपी एक अध्ययन रिपोर्ट ने दुनिया को चौंका दिया था। जर्मनी के पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक मैक्सिमिलियन कोट्ज और उनकी टीम ने अपने शोध में दावा किया था कि अगर जलवायु परिवर्तन पर लगाम नहीं लगाई गई तो सदी के अंत तक दुनिया की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 62 फीसदी तक घट सकती है। इस रिपोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों तक में चिंता बढ़ा दी थी।
लेकिन अब अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन पर सवाल उठाए हैं। हाल ही में जारी उनके नए विश्लेषण में पाया गया कि यह अनुमान वास्तविकता से कहीं ज्यादा था।
स्टैनफोर्ड के शोधकर्ताओं की टीम ने बताया कि इस शोध में उज्बेकिस्तान के आंकड़ों की गड़बड़ी की वजह से नतीजे बिगड़े। जैसे ही उन आंकड़ों को हटाया गया, जीडीपी पर असर का अनुमान करीब तीन गुना कम होकर सामने आया जो लगभग 20 फीसदी है। अध्ययन में कहा गया है कि यह नतीजे पहले के अध्ययनों से भी मेल खाते हैं।
अध्ययन प्रभावशाली लेकिन संदिग्ध
यह अध्ययन साल 2024 में छपने के बाद बहुत प्रभावशाली साबित हुआ। इसे विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), अमेरिकी सरकार और कई अन्य संस्थाओं ने अपनी नीतियों में शामिल किया। कार्बन ब्रीफ के अनुसार, इस जलवायु शोध का उस साल दूसरा सबसे ज्यादा हवाला दिया गया था।
अध्ययन में कहा गया है कि जब इसमें 62 फीसदी की गिरावट का दावा किया गया तो कई विशेषज्ञ चौंक गए थे। शोध पत्र में स्टैनफोर्ड के वैज्ञानिक और अर्थशास्त्री सोलोमन ह्सिआंग ने कहा, ज्यादातर लोग मानते हैं कि 20 फीसदी की गिरावट भी बहुत बड़ी है। इसलिए 62 फीसदी देखकर हमें संदेह हुआ और हमने इसकी दोबारा जांच की।
वैज्ञानिक प्रक्रिया पर भरोसा
मूल अध्ययन के लेखक मैक्सिमिलियन कोट्ज ने भी अपनी गलती स्वीकार की है। उन्होंने माना कि आंकड़ों और मुद्रा विनिमय दरों में गड़बड़ी हुई थी। फिलहाल उन्होंने एक संशोधित संस्करण अपलोड किया है, लेकिन उसकी अभी तक समीक्षा नहीं की गई है।
नेचर जर्नल ने नवंबर 2024 में ही इस पेपर पर नोट डाल दिया था और अब संभव है कि इसे वापस ले लिया जाए। शोध पत्र में जर्नल के संपादक कार्ल जीमेलिस ने कहा है कि इस पर अंतिम निर्णय जल्द लिया जाएगा।
क्या है बड़ी बात?
विशेषज्ञ मानते हैं कि इस गलती के बावजूद जलवायु परिवर्तन से होने वाला आर्थिक नुकसान बहुत बड़ा है। अध्ययन में अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, डेविस की प्रोफेसर फ्रांसेस मूर का कहना है कि 2100 तक अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ना बहुत बुरी स्थिति होगी और इसे रोकने की लागत कहीं अधिक होगी।
इस विवाद ने एक बार फिर यह साबित किया है कि विज्ञान में सुधार की प्रक्रिया जीवित है। वैज्ञानिकों की एक टीम ने गलती पकड़ी, दूसरी टीम ने उसे स्वीकार किया और अब पूरा समुदाय सही आंकड़े सामने लाने की कोशिश कर रहा है। असल बात यह है कि चाहे नुकसान 62 फीसदी हो या 20 फीसदी, जलवायु परिवर्तन को नजरअंदाज करना दुनिया की अर्थव्यवस्था और समाज दोनों के लिए भारी पड़ेगा।
अध्ययन के मुख्य बिंदु
🌍 नेचर में प्रकाशित 2024 के अध्ययन में दावा: 2100 तक वैश्विक जीडीपी 62 फीसदी घट सकती है
📊 स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी ने किया पुनः विश्लेषण, पाया: असल असर करीब 20 फीसदी
गलती का कारण: उज्बेकिस्तान के आंकड़ों और मुद्रा विनिमय दर में गड़बड़ी
🏛 अध्ययन को विश्व बैंक, आईएमएफ और कई सरकारों ने नीतियों में शामिल किया था
📰 यह रिपोर्ट 2024 की दूसरी सबसे ज्यादा संदर्भित जलवायु स्टडी बनी
✅ मूल लेखक मैक्सिमिलियन कोट्ज ने गलती स्वीकार की, संशोधित संस्करण अपलोड किया
📉 विशेषज्ञ मानते हैं: 20 फीसदी गिरावट भी बहुत बड़ी आर्थिक चोट है
💡 क्या है बड़ी बात: जलवायु परिवर्तन की अनदेखी दुनिया की अर्थव्यवस्था और समाज के लिए खतरनाक है