जलवायु परिवर्तन नए वक्त की एक ऐसी सच्चाई है जिससे इंकार नहीं किया जा सकता। देखा जाए तो यह बदलाव दुनिया भर में यह उस वर्ग को सबसे ज्यादा दुःख दे रहा है, जो इसके लिए सबसे कम जिम्मेवार हैं। ऐसा ही कुछ दक्षिण एशिया में रहने वाली घरेलू कामगार महिलाओं के साथ भी हो रहा है। शहरों की चकाचौंध के बीच मैली-कुचैली गलियां, जिन्हें हम स्लम कहते हैं, में रहकर यह महिलाएं सिलाई, कढ़ाई या फिर खाने की रेड़ी लगाने जैसे छोटे मोटे काम करके अपना और अपने परिवार का पेट पालती हैं।
इनमें से बहुतों को तो यह भी नहीं पता होगा कि वो जिन परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं उसके लिए जलवायु में आता बदलाव जिम्मेवार है। वो तो बस इतना जानते हैं कि इस बार गर्मी कुछ ज्यादा बढ़ गई है जिस वजह से उनकी टिन की छत ज्यादा ही गर्म हो गई है या फिर भारी बारिश के चलते उनके घरों में पानी भर गया है, जिसका असर उनकी जीविका और आय पर पड़ रहा है।
इसी को समझने के लिए होमनेट साउथ एशिया ने इन घरेलु महिला कामगारों पर पड़ते जलवायु परिवर्तन के असर का अध्ययन किया है, जिसके निष्कर्ष एक रिपोर्ट 'इम्पैक्ट ऑफ क्लाइमेट चेंज ऑन अर्बन होम-बेस्ड वर्कर्स इन साउथ एशिया' के रूप में प्रस्तुत किए है। गौरतलब है कि होमनेट साउथ एशिया घरेलू कामगारों का प्रतिनिधित्व करने वाले समूहों का एक क्षेत्रीय नेटवर्क है।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बांग्लादेश के ढाका, भारत में अहमदाबाद एवं सूरत और नेपाल के भक्तापुर और ललितपुर का अध्ययन किया है जहां उन्होंने 202 महिलाओं से इस बारे में जानकारी हासिल की थी। इनमें से 61 फीसदी महिलाएं 30 से 50 वर्ष की थी। साथ ही करीब 83 फीसदी विवाहित थी, जबकि 63 फीसदी के बच्चे 14 वर्ष से छोटे थे।
रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशिया में महिलाओं के रोजगार में घरेलु महिला कामगारों की हिस्सेदारी करीब एक चौथाई है जबकि पुरुषों का केवल 6 फीसदी हिस्सा ही घरेलु कामगारों के रूप में काम करता है। इससे जुड़े लोग बहुत कमजोर तबके से सम्बन्ध रखते हैं। देखा जाए तो इन घरेलु कामगारों की आय अन्य की तुलना में बहुत कम होती है।
43 फीसदी ने स्वीकारा जलवायु परिवर्तन से आ रही है आय में गिरावट
सर्वे में शामिल 43 फीसदी महिला कामगारों ने आय में आई गिरावट और 41 फीसदी ने उत्पादकता में आती कमी के लिए मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन को जिम्मेवार माना था। 83 फीसदी का कहना है कि पिछले 10 वर्षों में गर्मी के दौरान तापमान बढ़ रहा है। हालांकि उनमें से दो-तिहाई करीब 66.3 फीसदी को नहीं पता कि ऐसा क्यों हो रहा है, जबकि 11 फीसदी ने इसके लिए भगवान के कोप को वजह माना है।
इतना ही नहीं इनमें से 55 फीसदी ने यह स्वीकार किया कि बदलती जलवायु उनके परिवार को प्रभावित कर रही है। इसका जो सबसे ज्यादा असर सामने आया है वो यह है कि इसके चलते महिलाओं के पहले के मुकाबले अपने घरेलु रोजमर्रा के कामों पर ज्यादा वक्त देना पड़ रहा है, जिसके लिए उन्हें कोई वेतन नहीं मिलता।
सर्वे में शामिल करीब 60 फीसदी महिलाओं का कहना है कि उन्हें रोजाना दो घंटे और काम करना पड़ रहा है। उनके अनुसार उन्हें बीमार की देखभाल, पानी भरना और खाने के सामान के रखरखाव पर ज्यादा वक्त देना पड़ रहा है।
यदि स्वास्थ्य की बात करें तो करीब 15 फीसदी का कहना है कि उनके परिवार के किसी न किसी सदस्य को पिछले कुछ वर्षों में हीटस्ट्रोक का सामना करना पड़ा था। वहीं 33 फीसदी ने गंदे पानी के कारण होने वाली बीमारियों और 34 फीसदी ने वेक्टर जनित रोगों की शिकायत की थी। 30 फीसदी घरेलु महिला कामगारों का कहना है कि मानसून के दौरान उनके घरों में बारिश का पानी भर गया था, जबकि उनमें से 47 फीसदी ने घरों के नुकसान की जानकारी दी है।
इनमें से 48 फीसदी को जलवायु परिवर्तन की मार से बचने के लिए अतिरिक्त उपाय करने पड़े थे। करीब 20 फीसदी को अपना घर बदलना पड़ा था, जबकि 16 फीसदी ने अपनी जीविका में बदलाव किए थे।
केवल 24 फीसदी के पास है स्वास्थ्य बीमा की सुरक्षा
इनमें से 57 फीसदी का कहना है कि उन्हें अपना घर चलाने के लिए पार्ट टाइम में काम भी करना पड़ा था क्योंकि उनकी मासिक आय 5,000 से भी कम है। वहीं सर्वे में शामिल 65 फीसदी का कहना है कि उनके पास सेविंग अकाउंट हैं, जबकि 24 फीसदी ने स्वास्थ्य बीमा की बात को स्वीकार किया है। ऐसे में जलवायु परिवर्तन यदि उनके स्वास्थ्य पर असर डालता है तो उससे निपटने के लिए उनके पास बहुत कम साधन हैं।
इन बदलावों से कैसे निपटा जाए इस बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है। गर्मियों में तापमान बढ़ने पर कैसे बचा जाए इस बारे में पूछे जाने पर 55 फीसदी ही यह बता पाए थे कि उन्हें क्या करना चाहिए। 51 फीसदी का कहना है कि उन्हें इस बारे में विशेष जानकारी नहीं है इसलिए वो जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए जरुरी कदम नहीं उठा पाते। इसके बाद 18 फीसदी ने इसके लिए उपयुक्तता की कमी, 17 फीसदी ने उच्च कीमत और 14 फीसदी ने मदद की कमी को वजह माना था।
क्या है समाधान
कुल मिलकर यह कह सकते हैं कि घरेलु कामगार विशेष रूप से महिलाएं जलवायु परिवर्तन की मार से बुरी तरह से प्रभावित हैं। जो उनके लिए एक बुरे सपने जैसा है। गरीबी, सामाजिक सुरक्षा से दूरी, जानकारी की कमी उन्हें इसके प्रति और संवेदनशील बना देती हैं, जो उनकी अनुकूलन क्षमता को भी कम कर देता है।
इससे बचने के लिए अधिकांश को अपने घरों और रोजगार को छोड़ना पड़ता है। ऐसे में यह जरुरी है कि उन घरेलु महिला कामगारों की अनुकूलन क्षमता के निर्माण पर ध्यान देने के लिए विशेष ध्यान दिया जाए। इन बदलावों से कैसे बच सकते हैं इसके लिए उन्हें जागरूक करना भी जरुरी है।
हम जानते हैं कि समय के साथ इस क्षेत्र में तापमान और बढ़ता जाएगा, साथ ही भारी बारिश वाले दिनों में भी इजाफा होने की पूरी सम्भावना है। ऐसे में यह जरुरी है कि इन्हें इसके लिए तैयार किया जाए। रिपोर्ट में भी इनके बचाव के लिए गर्मी रोधी निर्माण सामग्री और ऊर्जा दक्ष घरेलू उपकरणों के उपयोग के साथ ही पीने के साफ पानी तक पहुंच में सुधार की सिफारिश की गई है।
साथ ही उनके घरों को अपग्रेड करने के लिए उन्हें सामाजिक सुरक्षा और वित्तीय सहायता प्रदान करने की पेशकश को प्रस्तावित किया है, जिससे यह भी अपने और अपने बच्चों के लिए एक बेहतर भविष्य के सपने को साकार कर पाएं।