जलवायु परिवर्तन से जलविद्युत उत्पादन में होगी वृद्धि, लेकिन बांधों के टूटने का खतरा भी होगा दोगुना

भारत में जलविद्युत परियोजनाएं 11 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ, बिजली का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत हैं
फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स, चालीसा जिरुचोक
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एक नए अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन जलविद्युत उत्पादन क्षमता में भारी बदलाव कर सकता है। इस बात का खुलासा गांधीनगर के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा किए गए एक अध्ययन में किया गया है।

इस अध्ययन में दावा किया गया है कि बारिश और गर्मी में वृद्धि होने के साथ, अधिकांश भारतीय जलविद्युत परियोजनाओं की बिजली उत्पादन क्षमता में वृद्धि होगी। वहीं दूसरी ओर इसमें जलविद्युत परियोजनाओं को बाढ़ और बांध टूटने जैसे बढ़ते खतरों की आशंका भी जताई गई है।

अध्ययन में देश के 46 प्रमुख जलविद्युत बांधों की जलविद्युत उत्पादन का पता लगाया है। इसमें पाया गया कि एक गर्म होती जलवायु और बढ़ती बारिश पांच से 33 फीसदी के बीच, प्रमुख बांधों के जलाशयों में पानी का प्रवाह सात से 70 फीसदी तक बढ़ सकता है। यह बढ़ा हुआ बहाव, भविष्य में अधिकांश बांधों में नौ से 36 फीसदी जलविद्युत उत्पादन बढ़ा सकता है।

अध्ययन में कहा गया है कि जलविद्युत उत्पादन पर जलाशय भंडारण और बहाव में होने वाले बदलाव के प्रभाव, जलविद्युत जलवायु परिवर्तन के लिए अतिसंवेदनशील है। यह पाया गया कि मध्य भारत में जलविद्युत परियोजनाओं में अधिक बहाव दिखाई देने का अनुमान है।

अध्ययन में कहा गया है कि, ज्यादातर बांधों के लिए भविष्य में बदलती जलवायु के तहत अत्यधिक प्रवाह और जलाशय का अधिक भंडारण की स्थिति में एक साथ वृद्धि होने का अनुमान है। हालांकि, भविष्य में होने वाले जलवायु परिवर्तन जलविद्युत उत्पादन के लिए एक अनुकूल हाइड्रोक्लाइमेट का अनुमान लगाते हैं, जिसमें चरम मौसम से संबंधित खतरे भी शामिल हैं।

अध्ययन में यह भी कहा गया है कि भविष्य में चरम मौसम की स्थितियों से निपटने के लिए पर्याप्त अनुकूलन उपायों की आवश्यकता पड़ेगी।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि, हमारे निष्कर्ष योजनाकारों और नीति निर्माताओं को भारत में प्रमुख बांधों के लिए हाइड्रोक्लाइमेट और जलविद्युत में अनुमानित बदलावों से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। इसके अलावा, हम भारत में जल विद्युत के संदर्भ में जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन से जुड़ी चुनौतियों और अवसरों को गर्म होती जलवायु के तहत सामने ला सकते हैं। 

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की रिपोर्ट के अनुसार, 1974 से 2008 के बीच, बाढ़ के कारण कम से कम 24 पनबिजली परियोजनाओं पर असर पड़ा है, जिसने उनके सामान्य कामकाज और प्रदर्शन को बाधित किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से 19 परियोजनाएं उनके संचालन और रखरखाव के चरण के दौरान प्रभावित हुई थीं, जबकि सात निर्माण अवधि के दौरान प्रभावित हुई थीं।

भारत में जलविद्युत परियोजनाएं 11 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ, बिजली का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत हैं। जबकि कोयला 50 फीसदी के साथ पहले स्थान और दूसरे स्थान पर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से 30 फीसदी बिजली पैदा की जाती है।   

भारत में 46.8 गीगावाट की 25 मेगावाट से ऊपर की कुल स्थापित क्षमता के साथ 211 बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं चल रही हैं। अन्य 41 पनबिजली परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं, कुल 17 गीगावाट अतिरिक्त बिजली उत्पादन हो सकता है। उनमें नाजुक हिमालयी क्षेत्र में 30 बड़ी पनबिजली परियोजनाएं शामिल हैं जो निर्माण के चरण में हैं।

जोशीमठ की घटना के चलते विवाद बढ़ने के बाद, ऊर्जा मंत्रालय ने हाल ही में संसद में बताया कि सभी बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की पर्यावरण मंजूरी के बाद ही मंजूरी दी जाती है, वह भी एक विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति द्वारा व्यापक मूल्यांकन के बाद।

वैश्विक स्तर पर, इंटरनेशनल हाइड्रोपावर एसोसिएशन 2019 ने जलवायु-रेसिलिएंट पनबिजली परियोजनाओं के लिए एक गाइड या मार्गदर्शक भी तैयार किया। इसने इन पनबिजली परियोजनाओं को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का मुकाबला करने के लिए मजबूत बनाने हेतु चार चरणों का सुझाव दिया गया है। इनमें शामिल हैं-जलवायु सबंधी खतरे की जांच, शुरुआती विश्लेषण, जलवायु तनाव परीक्षण, जलवायु जोखिम प्रबंधन और निगरानी, ​​रिपोर्टिंग और मूल्यांकन शामिल है।

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