बांग्लादेशियों के मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर रहा जलवायु परिवर्तन

जलवायु परिवर्तन के मामले में बांग्लादेश, दुनिया का सातवां सबसे कमजोर देश है
बांग्लादेश के नेत्रोकोना में बाढ़ में डूबे घरों को छोड़कर जाते बेबस। मानसून के दौरान बांग्लादेश का 70 फीसदी हिस्सा पानी में डूबा रहता है; फोटो: सुप्रतिम भट्टाचार्य/ आईस्टॉक
बांग्लादेश के नेत्रोकोना में बाढ़ में डूबे घरों को छोड़कर जाते बेबस। मानसून के दौरान बांग्लादेश का 70 फीसदी हिस्सा पानी में डूबा रहता है; फोटो: सुप्रतिम भट्टाचार्य/ आईस्टॉक
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जलवायु परिवर्तन, बांग्लादेश में लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को बूरी तरह प्रभावित कर रहा है। पता चला है कि बढ़ती गर्मी, उमस और जलवायु से जुड़ी अन्य घटनाएं वहां लोगों में अवसाद और चिंता का कारण बन रही हैं।

यह जानकारी जॉर्ज टाउन, जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय और विश्व बैंक के शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है। इसके नतीजे प्रतिष्ठित द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। गौरतलब है कि बांग्लादेश जलवायु परिवर्तन के मामले में दुनिया का सातवां सबसे कमजोर देश है।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता और जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ हेल्थ में सहायक प्रोफेसर सैयद शहबाब वाहिद का कहना है कि अध्ययन दर्शाता है कि जलवायु में आता बदलाव इस अत्यधिक कमजोर देश में मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित कर सकता है। उनके अनुसार साथ ही यह अन्य देशों के लिए एक चेतावनी भी है।

वैश्विक स्तर पर इससे पहले किए शोध में भी जलवायु से जुड़ी घटनाओं और अवसाद एवं चिंता के रूप में मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों के बीच संबंध पाया गया था।

प्रोफेसर वाहिद के अनुसार जैसे-जैसे जलवायु में आता बदलाव गंभीर रूप ले रहा है, उसके साथ ही तापमान और आर्द्रता में वृद्धि जारी रहेगी। इसके साथ ही प्राकृतिक आपदाओं जैसे भीषण बाढ़ का कहर भी समय के साथ बढ़ रहा है जो मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डाल रहा है।

शोधकर्ताओं ने अपने इस अध्य्यन में बांग्लादेश के 43 मौसम स्टेशनों पर दो महीनों के भीतर जलवायु संबंधी चरों को मापा था, जिससे तापमान और आर्द्रता में आए बदलावों को समझा जा सके। साथ ही बाढ़ के संपर्क में आने के उदाहरणों का भी अध्ययन किया गया था।

हालांकि शोधकर्ताओं ने माना है कि जलवायु में आते बदलावों और उनके प्रभावों को देखने के लिए यह अवधि पर्याप्त नहीं थी, क्योंकि इसका अध्ययन करने में कई साल लग सकते हैं। लेकिन यह संकेत देता है कि कैसे जलवायु परिवर्तन से जुड़ी मौसमी घटनाओं में छोटे बदलाव भी मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं।

एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ 24 फीसदी अधिक दर्ज की गई अवसाद और चिंता की आशंका

इसके अलावा लोगो में अवसाद और चिंता का आकलन करने के लिए शोधकर्ताओं ने अगस्त से सितंबर 2019 और जनवरी से फरवरी 2020 के बीच शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया था। इसमें उन्होंने 7,000 से ज्यादा लोगों का मूल्याङ्कन किया था।

अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं, उनके अनुसार दो महीनों के दौरान तापमान में एक डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की वृद्धि का अनुभव करने वाले लोगों में चिंतित होने की आशंका में 21 फीसदी की वृद्धि देखी गई। वहीं तापमान में होने वाली इस वृद्धि से अवसाद और चिंता दोनों की आशंका 24 फीसदी बढ़ गई थी।

इसी तरह प्रति घन मीटर हवा में मौजूद नमी में एक ग्राम की वृद्धि से चिंता और अवसाद की आशंका छह फीसदी बढ़ गई थी। हालांकि गर्मी या उमस का केवल अवसाद के बीच कोई संबंध नहीं पाया गया था।

इसी तरह शोध में बाढ़ के प्रकोप पर भी प्रकाश डाला गया है। पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के चलते भीषण बाढ़ के बढ़ते जोखिम से जहां अवसाद में 31 फीसद, चिंता में 69 फीसदी और संयुक्त रूप से अवसाद और चिंता दोनों में 87 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी।

देखा जाए तो यह नतीजे तब और गंभीर लगते हैं जब पता चले की बांग्लादेश की करीब 16.3 फीसदी आबादी अवसाद से ग्रस्त है। वहीं 66 वर्ष से ज्यादा आयु के बुजुर्गों की बात करें तो बांग्लादेश में यह आंकड़ा 38.9 फीसदी दर्ज किया गया है। दूसरी तरफ वैश्विक स्तर पर देखें तो दुनिया की करीब 4.4 फीसदी आबादी अवसाद से पीड़ित है।

इसी तरह वैश्विक स्तर पर जहां 3.6 फीसदी आबादी चिंता सम्बन्धी विकार से ग्रस्त हैं वहीं बांग्लादेश में यह आंकड़ा छह फीसदी है। मतलब कि बांग्लादेश की एक बड़ी आबादी पहले ही चिंता और अवसाद जैसे मानसिक विकारों से जूझ रही है। वहीं आशंका है कि यह स्थिति जलवायु में आते बदलावों के चलते कहीं और ज्यादा गंभीर हो जाएगी।

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