महासागरों पर दोहरी मार करते हैं जलवायु परिवर्तन और प्लास्टिक प्रदूषण

प्लास्टिक के उत्पादन से 2015 से 2020 के बीच लगभग 5600 करोड़ मीट्रिक टन से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होने का अनुमान है।
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स
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प्लास्टिक प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन को आमतौर पर दो अलग-अलग मुद्दों के रूप में देखा जाता है। अभी तक महासागर और यहां रहने वाली प्रजातियों पर प्लास्टिक प्रदूषण से पड़ने वाले प्रभाव पर बहुत से शोध किए गए हैं। वहीं जलवायु परिवर्तन पर भी अनगिनत शोध हुए हैं। लेकिन प्लास्टिक और जलवायु परिवर्तन एक साथ कैसे कार्य करते हैं, इसके मिश्रित प्रभावों को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है।

अब अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं ने दुनिया भर में जलवायु संकट और प्लास्टिक प्रदूषण के बीच मूलभूत संबंधों का खुलासा किया है। चरम मौसम की घटनाओं के कारण माइक्रोप्लास्टिक दूर-दूर तक फैल जाता है। यह शोध जूलॉजिकल सोसाइटी लंदन और बांगोर यूनिवर्सिटी के द्वारा मिलकर किया गया है।

वैज्ञानिकों की एक टीम ने पहली बार इस बात के सबूत जुटाए हैं कि समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के वैश्विक मुद्दे एक दूसरे को बढ़ा रहे हैं। दोनो मिलकर खतरनाक चक्र बना रहे हैं, वैज्ञानिकों के द्वारा सरकारों और नीति निर्माताओं को इन दो मुद्दों को एक साथ निपटाने का आग्रह किया जा रहा है।

प्लास्टिक प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन की बीच संबंध

टीम ने तीन महत्वपूर्ण तरीकों की पहचान की जिसमें जलवायु संकट और प्लास्टिक प्रदूषण समुद्री जैव विविधता के नुकसान से जुड़ा हुआ है। पहला यह है कि प्लास्टिक अपने पूरे जीवन चक्र में उत्पादन से लेकर निपटान तक वैश्विक ग्रीनहाउस गैसों (जीएचजी) में कैसे योगदान देता है।

दूसरा यह दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन से जुड़े बाढ़ और आंधी जैसे चरम मौसम प्लास्टिक प्रदूषण को कैसे फैलाएंगे और इसे बदतर करेंगे। प्लास्टिक प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव हमारे महासागर, समुद्र और नदियों के लिए प्रमुख मुद्दे रहे हैं। तीसरा बिंदु समुद्री प्रजातियों और पारिस्थितिकी तंत्र की जांच करता है जो विशेष रूप से दोनों की वजह से कमजोर पड़ता है।

प्लास्टिक प्रदूषण का समुद्री जैव विविधता पर विनाशकारी प्रभाव पड़ रहा है। जिसमें हर एक जीव द्वारा गलती से प्लास्टिक की थैलियों को निगलने से लेकर माइक्रोप्लास्टिक से प्रदूषित पूरे आवास तक शामिल हैं। दुनिया भर में मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन से प्राप्त किए जाने वाले प्लास्टिक की मांग बढ़ती जा रही है। जिसके चलते प्लास्टिक के उत्पादन से 2015 से 2020 के बीच ग्रीनहाउस (जीएचजी) में लगभग 5600 करोड़ मीट्रिक टन से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होने का अनुमान लगाया गया है, जो कि पूरे शेष कार्बन बजट का 10 से 13 फीसदी है।

जलवायु में हो रहे बदलावों के चलते पहले से ही तूफान और बाढ़ सहित चरम मौसम की घटनाएं अधिक हो रही हैं, जो भूमि और समुद्र के बीच कचरे के फैलने को बढ़ा रहा है। इसके अलावा, समुद्री बर्फ माइक्रोप्लास्टिक के लिए एक जाल का काम करती है, जैसे ही गर्मी बढ़ती है बर्फ के पिघलने पर प्लास्टिक समुद्र में चला जाता है।

प्रोफेसर कोल्डवी ने कहा की जलवायु परिवर्तन निस्संदेह हमारे समय के सबसे महत्वपूर्ण वैश्विक खतरों में से एक है। साथ ही प्लास्टिक प्रदूषण का वैश्विक प्रभाव भी पड़ रहा है। माउंट एवरेस्ट की चोटी से लेकर हमारे महासागर के सबसे गहरे हिस्सों तक प्लास्टिक फैला हुआ है। दोनों का हानिकारक प्रभाव पड़ रहा है।

उन्होंने कहा कि महासागरीय जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन के साथ समुद्र के तापमान को गर्म करने और प्रवाल भित्तियों को विरंजन (ब्लीच) करना शामिल है। प्लास्टिक समुद्री आवासों और प्रजातियों के लिए घातक है। दोनों संकटों का मिश्रित प्रभाव अब समस्या को बढ़ा रहा है। यह बहस का मामला नहीं है कि कौन सा मुद्दा सबसे महत्वपूर्ण है, यह पहचानना है कि दो संकट आपस में जुड़े हुए हैं और इनके लिए संयुक्त समाधान की आवश्यकता है।

अध्ययन से पता चलता है कि कैसे जलवायु परिवर्तन कमजोर प्रजातियां और उनके आवासों पर प्रभाव डाल सकते हैं, उन्हें समुद्री कछुओं और कोरल को भी प्लास्टिक प्रदूषण से खतरा है। इसमें कहा गया है कि इन कड़ियों, में हमारे प्राकृतिक वातावरण में उनकी भूमिका और दोनों मुद्दे पारिस्थितिक तंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

बांगोर विश्वविद्यालय के अध्ययन की अगुवाई करने वाले हेलेन फोर्ड ने कहा चूंकि प्रवाल भित्तियां मेरे शोध का केंद्र बिंदु हैं, इसलिए मुझे प्रतिदिन याद दिलाया जाता है कि ये समुद्री पारिस्थितिक तंत्र जलवायु परिवर्तन के प्रति कितने संवेदनशील हैं। उन्होंने बताया कि कैसे सबसे दूर स्थित प्रवाल भित्तियां भी व्यापक प्रभाव का अनुभव कर रही हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण बड़े पैमाने पर विरंजन के कारण इनकी मृत्यु हो रही है, वहीं प्लास्टिक प्रदूषण इन तनावग्रस्त पारिस्थितिक तंत्रों के लिए एक और खतरा है।

हमारे अध्ययन से पता चलता है कि प्लास्टिक प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन दोनों में पहले से ही लगातार बदलाव हो रहे हैं जो समुद्री जीवों को समुद्री पारिस्थितिक तंत्र और खाद्य प्रणाली में सबसे छोटे तैरते जीवों से लेकर सबसे बड़े व्हेल तक को प्रभावित कर रहे हैं। हमें यह समझने की जरूरत है कि समुद्री जीवन के लिए ये खतरे कैसे असर डालेंगे।

प्रोफेसर कोल्डवी ने जोर देकर कहा कि जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता संकट दोनों के समाधानों के लिए एक साथ निपटा जाना चाहिए। यह अध्ययन साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुआ है।

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