
जलवायु परिवर्तन और सूखे के चलते दुनियाभर के वेटलैंड्स (दलदली भूमि) खतरे में हैं। यह जानकारी एडिलेड विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक नए शोध में सामने आई है। यह शोध जर्नल अर्थ साइंस रिव्यु में छपा है। शोध से पता चला है कि सूखे के दौरान होने वाले कई भौतिक और रासायनिक परिवर्तन वेटलैंड्स की मिट्टी पर गहरा असर डालते हैं। जिनके गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जिनमें यदि एक बार बदलाव आ जाए तो उसे फिर से पलटना नामुमकिन हो जाता है।
इस शोध से जुड़े शोधकर्ता ल्यूक मोस्ले ने बताया कि वेटलैंड्स हमारी दुनिया के लिए बहुत मायने रखते हैं। यह जैव विविधता को बनाए रखने में अपना महत्वपूर्ण सहयोग देते हैं। साथ ही वो बड़ी मात्रा में कार्बन को भी स्टोर कर सकते हैं इस तरह वो जलवायु परिवर्तन की रोकथाम में भी अपना अमूल्य योगदान देते हैं।
वेटलैंड, उस जगह को कहा जाता है, जहां साल में कम से कम आठ महीने पानी रहता है या जमीन पानी के कारण नम रहती है।
यह वैटलैंड्स हमारे लिए कितने महत्वपूर्ण हैं इस बात का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि यह दुनिया के 1.21 करोड़ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर फैले हैं। जिनसे हर वर्ष करीब 27,57,93,336 करोड़ रुपए (37.8 ट्रिलियन डॉलर) का लाभ होता है। यह लाभ बाढ़ की रोकथाम, खाद्य उत्पादन, जल गुणवत्ता में हो रहे सुधार और कार्बन भंडारण के रूप में होता है।
वेटलैंड्स में सूखे की स्थिति दो कारणों से बनती है पहला जब वातावरण में वास्तविक रूप से सूखे की स्थिति बनती है दूसरा जब उन वेटलैंड्स में आने वाले पानी से ज्यादा निकाल लिया जाता है।
शोध के अनुसार सूखे के कारण गीली मिट्टी पर तेजी से असर पड़ता है और उसके कारण उनके गुणवत्ता पर असर पड़ता है। एक बार जब गीली मिट्टी में ऑक्सीजन की के मात्रा बढ़ने लगती है तो उससे कार्बनिक पदार्थों का ऑक्सीकरण बढ़ जाता है और अकार्बनिक खनिजों में कमी आ जाती है। सूखे के कारण इन वेटलैंड्स में दरार पड़ जाती है और इनमें अम्लता बढ़ जाती है। इसके साथ ही इनसे मीथेन का उत्सर्जन बढ़ जाता है।
जब यह सूखे की स्थिति बहुत लम्बे समय (10 वर्ष या उससे ज्यादा) तक बनी रहती है, तो उसके गंभीर परिणाम सामने आते हैं। जिसके कारण मिट्टी पर गहरा असर पड़ता है । जिसका सीधा असर पानी की गुणवत्ता पर भी होता है। मोस्ले के अनुसार इस विश्लेषण से पता चला है कि हम गीली मिट्टी पर सूखे का क्या असर पड़ेगा और वो उस समय किस तरह व्यवहार करेगी, उसे पूरी तरह नहीं समझ पाए हैं।
संभव है कि विभिन्न प्रकार की मिट्टी और अलग-अलग स्थानों में इसका प्रभाव अलग-अलग हो सकता है। सूखे पर किए गए स्थानीय अध्ययनों से पता चला है कि दक्षिण और मध्य अमेरिका, अफ्रीका, मध्य पूर्व, एशिया और ओशिनिया सहित दुनिया के कई क्षेत्रों में इस पर बहुत ही कम अध्ययन किया गया है। जबकि दूसरी तरह इनमें से कई क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के चलते सूखे के प्रति अतिसंवेदनशील हैं।
इस शोध से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता एर्ने स्टर्लिंग ने बताया कि इस बारे में आज भी बहुत ज्यादा शोध नहीं हुए हैं। दुनिया के कई हिस्सों में सूखे के कारण वेटलैंड्स की मिट्टी पर पड़ने वाले असर के बारे में बहुत कम ही जानकारी उपलब्ध है। साथ ही वेटलैंड्स और जल प्रबंधन के ऊपर भी बहुत ही कम अध्ययन किया गया है। जबकि जलवायु परिवर्तन के लिहाज से देखें तो यहां की मिट्टी उसके प्रति बहुत ज्यादा संवेदनशील है। साथ ही ने केवल पर्यावरण बल्कि आर्थिक रूप से यह वेटलैंड्स इंसानों के लिए बहुत मायने रखते हैं। ऐसे में इनकी सुरक्षा बहुत जरुरी हो जाती है।