संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने अपनी नई रिपोर्ट "टाइम टू एक्ट: अफ्रीकन चिल्ड्रन इन द क्लाइमेट चेंज स्पॉटलाइट" में जानकारी दी है कि 98 फीसदी अफ्रीकी देशों में बच्चों पर जलवायु में आते बदलावों का गंभीर खतरा मंडरा रहा है। हालांकि इसके बावजूद अफ्रीका में बच्चों के पास इन बदलावों का सामना करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, चाड, नाइजीरिया, गिनी, सोमालिया और गिनी-बिसाउ में रहने वाले बच्चों पर सबसे ज्यादा खतरा है। गौरतलब है कि इस रिपोर्ट को नैरोबी में अगले सप्ताह होने वाली अफ्रीकी जलवायु शिखर बैठक से ठीक पहले जारी किया गया है, जिसमें हिस्सा लेने के लिए नेतागण इकट्ठा हो रहे हैं।
बता दें कि अफ्रीकन क्लाइमेट समिट, चार से छह सितम्बर के बीच आयोजित होगी। इस बैठक के दौरान जलवायु कार्रवाई में निवेश को बढ़ाए जाने पर जोर दिए जाने के साथ-साथ अन्य मुद्दों पर भी चर्चा की जाएगी।
रिपोर्ट से पता चला है कि अध्ययन किए गए 49 में से 48 अफ्रीकी देशों में बच्चों पर जलवायु परिवर्तन के गंभीर खतरों की चपेट में आने का जोखिम बहुत ज्यादा है। इसके बावजूद उनके लिए पर्याप्त वित्तीय साधनों का आभाव है। आंकड़ों से पता चला है कि इन खतरों के बावजूद वैश्विक जलवायु वित्त पोषण का केवल एक छोटा सा हिस्सा, करीब 2.4 फीसदी ही बच्चों के लिए दिया जा रहा है। जो हर साल करीब 587 करोड़ रुपए के बराबर है।
बड़ों के मुकाबले जलवायु परिवर्तन के प्रति कहीं ज्यादा संवेदनशील होते हैं बच्चे
विश्लेषण में इस बात का अध्ययन किया गया है कि इन देशों में बच्चे चक्रवात और लू जैसी जलवायु से जुड़ी चरम घटनाओं के प्रति कितने ज्यादा संवेदनशील हैं। साथ ही आवश्यक सेवाओं तक उनकी पहुंच के आधार पर वे इन समस्याओं से कितनी अच्छी तरह निपट सकते हैं, इस बात का भी अध्ययन किया गया है।
रिपोर्ट बच्चों पर जलवायु परिवर्तन के असंगत प्रभावों पर प्रकाश डालती है, क्योंकि अफ्रीका वो क्षेत्र है जिसका बढ़ते उत्सर्जन में बेहद कम योगदान है। हालांकि यह क्षेत्र इससे सबसे ज्यादा प्रभावित है। रिपोर्ट यूनिसेफ द्वारा बनाए चिल्ड्रन्स क्लाइमेट चेंज रिस्क इंडेक्स (सीसीआरआई) के आंकड़ों पर आधारित है।
इस बात पर भी जोर दिया है कि बच्चे पानी की कमी से लेकर वेक्टर-जनित बीमारियों और बाढ़ जैसी आपदाओं के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं। इतना ही नहीं जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बढ़ रहा है, उसके साथ ही इन आपदाओं की तीव्रता और आवृत्ति भी बढ़ रही है।
यूनिसेफ ने इसपर क्षोभ प्रकट करते हुए कहा है कि जलवायु में आते बदलावों के कठोर प्रभावों का खामियाजा अफ्रीकी समाज की नई नस्लों को भुगतना पड़ रहा है। संगठन ने खतरे में पड़ी इस आबादी की सहायता के लिए वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराए जाने पर बल दिया है, ताकि वे जलवायु से जुड़े इन खतरों से निपटने के काबिल बन सकें।
विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चे, बड़ों की तुलना में जलवायु में आते बदलावों के प्रति कहीं ज्यादा संवेदनशील होते हैं। बाढ़, सूखा, लू, तूफान जैसी चरम मौसमी घटनाओं का सामना करने के लिए उनकी शारीरिक क्षमता वयस्कों की तुलना में कम होती है। इतना ही नहीं हैवी मेटल्स जैसे सीसा और प्रदूषण के दूसरे स्रोत भी बच्चों पर गहरा प्रभाव डालते हैं। वहीं स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, जल, साफ-सफाई और स्वच्छता के साथ अन्य सेवाओं से दूरी भी बच्चों की चुनौतियों को और बढ़ा रही है जो उनकी निर्बलता का कारण बन रहे हैं।
ऐसे में यूनिसेफ के पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीकी क्षेत्र के उप निदेशक लीके वैन डी विएल का कहना है कि "अफ्रीका समाज के सबसे छोटे सदस्य जलवायु में आते बदलावों से सबसे ज्यादा पीड़ित हैं। वे अपनी कम उम्र और महत्वपूर्ण सेवाओं से दूर होने के कारण इनका सामना करने में सबसे ज्यादा कमजोर होते हैं।" ऐसे में उनके अनुसार इन बच्चों की मदद के लिए कहीं ज्यादा धनराशि देनी चाहिए, जिससे वे जीवन भर जलवायु परिवर्तन के चलते पैदा हुए व्यवधानों का बेहतर ढंग से सामना कर सकें।
विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि दीर्घकालीन बदलाव लाने के साथ-साथ सतत विकास की राह में बच्चों और युवाओं की भूमिका अहम है। इसके मद्देनजर उन्हें नीतिगत व वित्तीय उपायों के साथ-साथ अन्य जलवायु समाधानों का भी हिस्सा बनाया जाना चाहिए।