नदियों के मौसमी प्रवाह में रुकावट डाल रही है बदलती जलवायु, बढ़ सकता है जल संकट

नदियों के मौसमी प्रवाह में रुकावट डाल रही है बदलती जलवायु, बढ़ सकता है जल संकट

बर्फ पिघलने वाले क्षेत्रों में वसंत और गर्मियों की शुरुआत में नदी के स्तर में कमी के कारण नदी के किनारे की वनस्पति और नदी में रहने वाले जीवों पर भी प्रभाव पड़ सकता है
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एक नए शोध के अनुसार, जलवायु परिवर्तन दुनिया भर में खासकर अमेरिका, रूस और यूरोप के सुदूर उत्तरी नदियों के मौसमी प्रवाह में रुकावट डाल कर जल सुरक्षा और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा पैदा कर रहा है।

लीडस विश्वविद्यालय के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम ने दुनिया भर में नदी माप स्टेशनों के ऐतिहासिक आंकड़ों का विश्लेषण किया और पाया कि उनमें से 21 फीसदी में पानी के स्तर में मौसमी वृद्धि और गिरावट में बहुत बड़ा बदलाव आया है।

साइंस पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में आंकड़ों पर आधारित पुनर्निर्माण और अत्याधुनिक सिमुलेशन का उपयोग करके दिखाया गया है कि नदी का प्रवाह अब पहले की तुलना में 50 डिग्री से अधिक अक्षांशों में मौसम के साथ बदलने के बहुत कम आसार हैं। इसे सीधे तौर पर बदलावों से जोड़ा जा सकता है, जो मानवजनित गतिविधियों के कारण जलवायु में हुए बदलाव के कारण है।

अब तक के साक्ष्य जलवायु परिवर्तन का नदी के प्रवाह के मौसमी प्रकृति पर प्रभाव पड़ता है, यह स्थानीय अध्ययनों तक ही सीमित है या मानवजनित जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर स्पष्ट रूप से विचार करने में विफल रहे हैं।

इस अध्ययन में, टीम ने 1965 से 2014 तक 10,120 गेजिंग स्टेशनों से हर महीने के औसत नदी प्रवाह माप का उपयोग किया।

पहली बार वे जलाशय प्रबंधन या जल निकासी जैसे प्रत्यक्ष मानवीय हस्तक्षेपों को बाहर करने में सफल रहे, यह दिखाने के लिए कि नदी का प्रवाह मौसम के  आधार पर आने वाली भारी कमी जलवायु परिवर्तन के कारण थी।

चीन में लीड्स विश्वविद्यालय और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शोधकर्ता तथा मुख्य अध्ययनकर्ता होंग वांग ने कहा, हमारे शोध से पता चलता है कि हवा का बढ़ता तापमान नदी के प्रवाह के प्राकृतिक पैटर्न को बदल रहा है।

इस बदलाव का चिंताजनक पहलू मौसम के आधार पर नदी के प्रवाह का कमजोर होना है और यह ऐतिहासिक मानवजनित उत्सर्जन का प्रत्यक्ष परिणाम है। यह हवा के तापमान में वृद्धि जारी रहने पर नदी के निरंतर मौसमी प्रवाह में काफी कमी का इशारा करता है।

नदी के प्रवाह पर मानवजनित प्रभाव

मानवजनित गतिविधियां दुनिया भर में नदी के प्रवाह पैटर्न को बदल रही हैं। प्रत्यक्ष रूप से जलाशयों जैसे प्रवाह नियमों के माध्यम से और अप्रत्यक्ष रूप से भूमि उपयोग में परिवर्तन और हवा के तापमान, वर्षा, मिट्टी की नमी और बर्फ के पिघलने पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों जैसे कारणों से यह बदल रहा है।

ग्रीनहाउस गैसों और एरोसोल में वृद्धि के अप्रत्यक्ष प्रभावों पर विचार किए बिना भी दुनिया की दो-तिहाई से अधिक नदियों में लोगों द्वारा पहले ही बदलाव किया जा चुका है।

नदी का प्रवाह मौसमी बाढ़ और सूखे के चक्र में अहम भूमिका निभाता है। नदियों के परवाह के कमजोर पड़ने से जल सुरक्षा और मीठे पानी की जैव विविधता को खतरा हो सकता है। उदाहरण के लिए, स्नोपैक की कमी से शुरुआती पिघले पानी का एक बड़ा हिस्सा तेजी से महासागरों में बह सकता है और इसलिए मानव उपयोग के लिए उपलब्ध नहीं रह जाता है।

नदी के मौसमी प्रवाह की स्थिति के कमजोर होने से, उदाहरण के लिए, बर्फ पिघलने वाले क्षेत्रों में वसंत और गर्मियों की शुरुआत में नदी के स्तर में कमी के कारण नदी के किनारे की वनस्पति और नदी में रहने वाले जीवों पर भी प्रभाव पड़ सकता है।

मौसमी प्रवाह का आकलन

उत्तरी अमेरिका में, शोधकर्ताओं ने पाया कि देखे गए 119 स्टेशनों में से 40 फीसदी में नदी के मौसमी प्रवाह में भारी कमी देखी गई। इसी तरह के परिणाम दक्षिणी साइबेरिया में भी देखे गए, जहां 32 फीसदी स्टेशनों में भारी कमी देखी गई।

यूरोप में एक तुलना करने योग्य पैटर्न थे, जहां 19 फीसदी नदी गेज स्टेशनों में भारी कमी देखी गई, मुख्य रूप से उत्तरी यूरोप, पश्चिमी रूस और यूरोपीय आल्प्स में।

इसके अलावा, अमेरिका के निकटवर्ती क्षेत्रों (कोलंबिया जिले सहित उत्तरी अमेरिका के निचले 48 राज्यों) में रॉकी पर्वत और फ्लोरिडा की नदियों को छोड़कर, समग्र रूप से नदी प्रवाह की मौसमी प्रवृत्ति में मुख्य रूप से कमी देखी गई।

मध्य उत्तरी अमेरिका में, शोध ने 18 फीसदी स्टेशनों में महत्वपूर्ण रूप से घटती नदी प्रवाह मौसमी प्रवृत्तियों को दिखाया।

इसके विपरीत, शोधकर्ताओं ने दक्षिण-पूर्व ब्राजील के 25 फीसदी गेजिंग स्टेशनों में नदी के मौसमी प्रवाह में भारी वृद्धि देखी, जिससे पता चलता है कि जल चक्र में परिवर्तन का दुनिया के कुछ हिस्सों में एक अलग प्रभाव पड़ रहा है।

यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स स्कूल ऑफ ज्योग्राफी में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मेगन क्लार ने कहा, विभिन्न मौसमों के दौरान नदी के प्रवाह का उतार-चढ़ाव पानी में रहने वाली प्रजातियों के लिए महत्वपूर्ण संकेत देते हैं।

उदाहरण के लिए, बहुत सारी मछलियां अपने प्रजनन क्षेत्रों में ऊपर की ओर या समुद्र की ओर भागने के लिए पानी में हुई वृद्धि का उपयोग करती हैं। यदि उनके पास वे संकेत नहीं हैं, तो वे अंडे देने में सक्षम नहीं होंगी।

शोध का निष्कर्ष है कि लुप्त हो रही कुछ प्राकृतिक प्रणालियों और प्रक्रियाओं को फिर से बनाने की कोशिश करने के लिए प्रवाह का प्रबंधन करके मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए जलवायु अनुकूलन प्रयासों में तेजी लाने की आवश्यकता है।

प्रोफेसर जोसेफ होल्डन ने कहा, बहुत सारी चिंताएं इस बात पर आधारित हैं कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन क्या करेगा, लेकिन हमारे शोध से पता चलता है कि यह अभी हो रहा है और हवा के तापमान में वृद्धि हो रही है जो नदी के प्रवाह में भारी बदलाव ला रहा है।

उन्होंने आगे कहा, जलवायु परिवर्तन में तेजी को देखते हुए हमें इस बारे में बहुत चिंतित होना चाहिए कि भविष्य में क्या होगा और नदी का मौसमी प्रवाह के भविष्य में कमजोर पड़ने को कम करने के लिए शमन रणनीतियों और अनुकूलन योजना के बारे में सोचना शुरू करना चाहिए, खासकर पश्चिमी रूस, स्कैंडिनेविया और कनाडा जैसे स्थानों में।

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