दुनिया भर में पेड़-पौधों को प्रभावित कर रहा बारिश के चरित्र में आता बदलाव, क्या जलवायु परिवर्तन है जिम्मेवार

बारिश में कमी और अधिकता से जहां कुछ पौधों को इसका फायदा मिलता है, वहीं दूसरों पर दबाव बढ़ जाता है
बारिश की राह तकती फसलें, जलवायु परिवर्तन से कहीं ज्यादा न बढ़ जाए इन्तजार: फोटो: आईस्टॉक
बारिश की राह तकती फसलें, जलवायु परिवर्तन से कहीं ज्यादा न बढ़ जाए इन्तजार: फोटो: आईस्टॉक
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वैश्विक स्तर पर जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहे हैं उससे बारिश का पैटर्न भी पूरी तरह बदल रहा है। बारिश के चरित्र में आता यह बदलाव पेड़-पौधों की सेहत के लिए सही नहीं है। यदि अप्रैल के महीने को देखें इस दौरान होने वाली बारिश, एकाएक भारी बारिश में बदल रही है, जिससे मई के दौरान फूलों के खिलने पर असर पड़ रहा है।

हालांकि देखा जाए तो यह बदलाव सिर्फ अप्रैल तक सीमित नहीं है। भारत में तो मानसून के दौरान अच्छा खासा बदलाव देखा गया है। इसी तरह साल के अन्य महीनों में होने वाली बारिश का मिजाज भी आज पूरी तरह बदल गया है।

वैश्विक तापमान के बढ़ने से साल में होने वाली बारिश ने प्रचंड रूप तो लिया, लेकिन साथ ही जो पानी पहले रूक-रूक कर लगातार बरसता था, वो अचानक से भारी बारिश के रूप में गिर रहा है। मतलब की पहले से बारिश की तीव्रता तो बढ़ी, लेकिन बार-बार पानी बरसने की सम्भावना घटती जा रही है।

इसका सीधा असर पेड़-पौधों और फसलों पर पड़ रहा है। यह जानकारी मैरीलैंड विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किए अध्ययन में सामने आई है, जिसके नतीजे नेचर रिव्यूज अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुए हैं।

रिसर्च के मुताबिक पहले ही अधिकांश क्षेत्रों में साल भर में होने वाली बारिश का आधे से अधिक हिस्सा उन महज 12 दिनों में होता है जब बेहद अधिक बारिश होती है। मतलब की साल में होने वाली आधी बारिश इन 12 दिनों में होती है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि यह संख्या और भी घट सकती है, क्योंकि बढ़ते तापमान के साथ बारिश कम दिनों में अधिक केंद्रित हो जाएगी।

हालांकि भारी बारिश के बाद लम्बे समय तक शुष्क दौर देखने को मिलता है। इससे पश्चिम अमेरिका जैसे शुष्क क्षेत्रों में तो पौधों को फायदा मिलेगा, लेकिन नम क्षेत्रों में पौधों पर दबाव बढ़ जाएगा। गौरतलब है कि शोधकर्ताओं द्वारा किया यह अध्ययन क्षेत्रों पर किए प्रयोगों, उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों, मॉडल सिमुलेशन और पिछले अध्ययनों के विश्लेषण पर आधारित है।

शोधकर्ता के मुताबिक इन बदलावों का पौधों पर क्या असर होगा यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि पौधे पानी के प्रति कैसे प्रतिक्रिया करते हैं। शुष्क पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले पौधे भारी बारिश के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं। ऐसे में उन्हें एकाएक से होने वाली बारिश से फायदा हो सकता है। हालांकि, एक ही पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर मौजूद पौधे भी बारिश के प्रति अलग-अलग प्रतिक्रिया कर सकते हैं। इसका मतलब है कि जलवायु परिवर्तन से पूरे पारिस्थितिक तंत्र में पौधों के संयोजन और किस्मों में बदलाव आ सकता है।

बारिश में बदलाव से फसलों पर भी पड़ेगा भारी असर

इस बड़े में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता एंड्रू एफ फेल्डमैन ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से जानकारी दी है कि साल भर में बारिश में होने वाला इजाफा पौधों को खुशहाल बनाता है और अधिक वनस्पतियों को पनपने का मौका देता है।

हालांकि, यदि पौधे होने वाली बारिश में बदलाव को देखते हैं तो वो अपने प्रकाश संश्लेषण और विकास को 10 से 30 फीसदी तक अनुकूलन कर सकते हैं। उदाहरण के लिए सप्ताह में तीन बार हल्की बूंदा बांदी और एक बार भारी बारिश का सामना करना पड़े, हालांकि इससे वार्षिक वर्षा पर कोई असर न पड़े तो भी वो पौधों को प्रभावित कर सकती है।

वहीं ऐसे क्षेत्रों में जहां बहुत ज्यादा नमी या बहुत सूखा नहीं है, वहां इन बदलावों की वजह से एक साल में ही पौधों की कार्यक्षमता में 25 फीसदी तक का बदलाव आ सकता है।

दुनिया भर में किए अध्ययनों से पता चला है कि पौधे बारिश के बदलते पैटर्न पर अलग-अलग तरह से प्रतिक्रिया करते हैं, इसकी वजह से उनके प्रकाश संश्लेषण, हरियाली और विकास पर असर पड़ता है। 42 फीसदी मामलों में, लगातार बारिश की कमी के बाद एकाएक भारी बारिश का सामना करने पर पौधे अच्छे से विकसित नहीं हो पाए।

वहीं 35 फीसदी मामलों में उनमे सुधार देखा गया, जबकि 23 फीसदी मामलों में कोई खास बदलाव नहीं आया। फेल्डमैन के अनुसार, बारिश में यह बदलाव जलवायु परिवर्तन का सिर्फ एक पहलु है। इसके साथ ही पौधों को हवा में कहीं ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड और उच्च तापमान जैसे अन्य बदलावों का भी सामना करना होगा।

शोधकर्ताओं के मुताबिक वैश्विक स्तर पर कार्बन के जमीनी प्रवाह के मामले में पौधे बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि पौधे हर दिन बारिश में आने वाले बदलावों के प्रति कैसे प्रतिक्रिया करते हैं, क्योंकि यह फसलों के उत्पादन को भी प्रभावित करता है। साथ ही वातावरण में उत्सर्जित होते कार्बन को सीमित करने पर भी असर डाल सकता है।

इसमें कोई शक नहीं कि जलवायु में आता बदलाव मानसून और लम्बी अवधि में होने वाली बारिश को प्रभावित कर रहा है। लेकिन एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि बढ़ता तापमान रोजमर्रा में होने वाली बारिश पर भी असर डाल रहा है। भारत में अगस्त 2023 में ऐसा ही कुछ देखें को मिला था जब पिछले 123 वर्षों का सबसे सूखा महीना दर्ज किया गया।

जलवायु संकट: भारत सहित दुनिया भर में तेजी से बदल रहा है बारिश का चरित्र

यह महीना ने केवल बारिश की कमी का शिकार था, साथ ही इस दौरान तापमान भी रिकॉर्ड गर्म था। इस बारे में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने जो जानकारी साझा की है उससे पता चला है कि अगस्त के दौरान भारत में कुल 161.7 मिलीमीटर बारिश हुई थी, जो सामान्य से 35 फीसदी कम है। 1901 के बाद से देश में कभी भी अगस्त में इतनी कम बारिश नहीं हुई।

सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) ने भी दिल्ली को लेकर जारी अपनी नई रिपोर्ट “स्वैल्ट्रिंग नाइट्स: डीकोडिंग अर्बन हीट स्ट्रेस इन दिल्ली” में खुलासा किया है कि दिल्ली में जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम तेजी से बदल रहा है। इसकी वजह से तापमान की तुलना में वातावरण में मौजूद नमी में तेजी से बढ़ रही है।

वहीं एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि यदि समय रहते बढ़ते उत्सर्जन पर लगाम न लगाई गई तो सदी के अंत तक दुनिया की दो-तिहाई (65.6 फीसदी) आबादी मतलब करीब 500 करोड़ लोग बारिश के पैटर्न में आते बदलावों से प्रभावित होंगें।

बारिश के पैटर्न में आता यह बदलाव कहीं बारिश में वृद्धि करेगा तो कहीं इसमें कमी की वजह बनेगा। मतलब की इसकी वजह से कहीं बाढ़ जैसी आपदाओं का खतरा बढ़ जाएगा तो कहीं सूखे जैसे हालात पैदा हो जाएंगे।

भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो अध्ययन का अनुमान है कि उच्च उत्सर्जन परिदृश्य में सदी के अंत तक सालाना होने वाली बारिश में औसतन 30 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हो सकता है। इसका प्रभाव देश के 130 करोड़ से ज्यादा लोगों पर पड़ेगा।

वहीं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के शोधकर्ताओं द्वारा किए अन्य अध्ययन से पता चला है कि निकट भविष्य में गंगा बेसिन के निचले इलाकों में खेती पर सूखे की मार पड़ सकती है। शोधकर्ताओं ने इसके लिए औसत बारिश में आने वाली कमी को जिम्मेवार माना है। रिसर्च से यह भी पता चला है कि निकट भविष्य में इस क्षेत्र में होने वाली औसत मासिक वर्षा में सात से 11 मिलीमीटर प्रतिदिन की उल्लेखनीय कमी आ सकती है।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार मार्च 2023 में सामान्य से 26 फीसदी ज्यादा बारिश दर्ज की गई। मार्च में औसतन देश में 29.9 मिलीमीटर बारिश होती है जो इस बार बढ़कर 37.6 मिलीमीटर दर्ज की गई।

वहीं पिछले 113 वर्षों के आंकड़ों की जांच से पता चला है कि जहां इस दौरान पश्चिमी भारत में मॉनसूनी बारिश में वृद्धि हुई है, वहीं पूर्वोत्तर भारत में इस दौरान होने वाली बारिश में उल्लेखनीय कमी आई है।

क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों हो रहा है। जिन क्षेत्रों में भीषण सूखा पड़ रहा था, वहां एकाएक से भारी बारिश आ जाती है, जिसके बाद बाढ़ की स्थिति बन जाती है। चिंता की बात तो यह है कि इस तरह का बदलाव किसी एक जगह तक सीमित नहीं है, बल्कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में बार-बार ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं।

वैज्ञानिकों की मानें तो इनके लिए जलवायु में आता बदलाव जिम्मेवार है, जिसकी वजह से मौसम का मिजाज तेजी से बदल रहा है। मौसम इतना अनियमित होता जा रहा है, कि उसका पूर्वानुमान तक करना कठिन होता जा रहा है।

गौरतलब है कि हाल के वर्षों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जब गंभीर सूखे से मौसम अचानक भारी और संभावित रूप से खतरनाक बारिश में बदल गया। उदाहरण के लिए दिसंबर 2022 में अमेरिका का कैलिफोर्निया इतने विकट सूखे का सामना कर रहा था, जितना वहां पिछले 1,000 वर्षों में भी नहीं देखा गया। लेकिन एकाएक मौसम ने करवट ली और बारिश के चलते परिस्थितियां तेजी से बदलने लगी। इसकी वजह से जनवरी, फरवरी और मार्च 2023 में कैलिफोर्निया में रिकॉर्ड बाढ़ आ गई थी।

यह उदाहरण किसी खतरे की घंटी से कम नहीं जो बार-बार इस ओर इशारा करते हैं कि जलवायु में आता बदलाव किस कदर दुनिया पर हावी होता जा रहा है। ऐसे में यदि सही समय पर इससे बचने के उपाय न किए गए तो पेड़-पौधों और फसलों के साथ-साथ दूसरे कई अन्य रूपों में मानवता को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।

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