आईपीसीसी संश्लेषण रिपोर्ट: कई चुनौतियों का सामना कर रहीं हैं कार्बन कैप्चर तकनीकें

रिपोर्ट के मुताबिक शुद्ध शून्य उत्सर्जन (नेट जीरो एमिशन) के लक्ष्य को हासिल करने के लिए वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाना जरूरी है
Carbon capture and storage (CCS) involves capturing CO2 from the atmosphere and other emission sources, transporting it and storing or burying it in a suitable deep, underground location or minerals. Photo: iStock
Carbon capture and storage (CCS) involves capturing CO2 from the atmosphere and other emission sources, transporting it and storing or burying it in a suitable deep, underground location or minerals. Photo: iStock
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जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) के अनुसार, कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (सीसीएस) को लागू करने की राह में कई बाधाएं हैं। कार्बन कैप्चर और स्टोरेज तकनीकों को जलवायु शमन के एक उपकरण के रूप में भी जाना जाता है, जो वातावरण में मौजूद अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड को हटाती हैं।

इन सभी पहलुओं को उजागर करते हुए आईपीसीसी ने 20 मार्च 2023 को अपनी नई संश्लेषण रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में कार्बन कैप्चर और स्टोरेज के रास्ते में मौजूद तकनीकी, आर्थिक, संस्थागत, पारिस्थितिक, पर्यावरण और सामाजिक एवं सांस्कृतिक बाधाओं पर प्रकाश डाला गया है। लेखकों का इस बारे में विचार है कि, "नीतिगत उपकरण, अधिक सार्वजनिक समर्थन और तकनीक में नवीनता आदि की मदद से इन बाधाओं को पार किया जा सकता है।"

देखा जाए तो वातावरण से अतिरिक्त कार्बन को सोखने को दो तरीके हैं पहला प्राकृतिक तरीका है जिसमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाना, वेटलैंड आदि का समर्थन करना आदि शामिल है जो प्राकृतिक तौर पर वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं। इन्हें प्राकृतिक सिंक भी कहा जाता हैं।

वहीं दूसरे तरीके में इसके लिए तकनीकों की मदद ली जाती है। ‘कार्बन कैप्चर और स्टोरेज’ इसी को कहते है इसमें नवीनतम तकनीकों की मदद से वातावरण में मौजूद कार्बन को एकत्र करके उसका भंडारण कर लिया जाता है। देखा जाए तो यह कार्बन डाइऑक्साइड को वातावरण में छोड़ने से पहले ही कैप्चर और स्टोर करने की प्रक्रिया है।

इस प्रक्रिया में तकनीकों की मदद से वातावरण या अन्य उत्सर्जन स्रोतों से कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर करना, उसका परिवहन और फिर उसे उपयुक्त गहराई या खनिजों में स्टोर करना शामिल है। कार्बन डाइऑक्साइड को जमीन में इंजेक्ट या स्टोर करने के ऐसे ही एक विकल्प को "एन्हांस्ड ऑयल रिकवरी" (ईओआर) कहा जाता है। यह तकनीक तेल और गैस उद्योगों को विशेष रूप से आकर्षित करती है।

कैसे काम करती हैं यह कार्बन कैप्चर तकनीकें

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) में एनर्जी सप्लाई यूनिट के प्रमुख क्रिस्टोफ मैकग्लाडे का कहना है कि, "ऐसा इसलिए है क्योंकि यह अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) ऑयल रिजर्व के कुल दबाव को बढ़ा देती है। नतीजन मौजूद तेल, उत्पादन कुओं की ओर जाने लगता है।" उनके अनुसार इंजेक्ट किया गया सीओ2 तेल के साथ मिल सकता है, जिससे उसे बहने में मदद मिलती है।

आईईए के एन्हांस्ड ऑयल रिकवरी परियोजनाओं के नए वैश्विक डेटाबेस से पता चला है कि, आज इस तकनीक की मदद से हर दिन करीब 5,00,000 बैरल तेल का उत्पादन किया जा रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार जब इस कार्बन डाइऑक्साइड को सीधे वातावरण (डीएसीसीएस) या बायोमास (बीईसीसीएस) से कैप्चर किया जाता है तब कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज तकनीकें सीओ2 हटाने के तरीकों के लिए भंडारण घटक प्रदान करती हैं। हालांकि यह सीसीएस तकनीकें बिजली, सीमेंट और केमिकल उत्पादन के लिए अभी उतनी परिपक्व नहीं है, जहां इसे जलवायु शमन के एक महत्वपूर्ण विकल्प के रूप में देखा जाता है।

वहीं सेंटर फॉर इंटरनेशनल एनवायरनमेंटल लॉ की उप निदेशक लिली फुहर का कहना है कि अधिकांश मौजूदा सीसीएस परियोजनाएं, एन्हांस्ड ऑयल रिकवरी यानी ईओआर परियोजनाएं हैं, जो तेल उत्पादन तो कर रही हैं, लेकिन उत्सर्जन को कम नहीं करती।" उनके अनुसार वर्तमान में वो वैश्विक उत्सर्जन के 0.1 फीसदी से भी कम हिस्से को कैप्चर कर रही हैं।

उनके अनुसार देखा जाए तो यह जीवाश्म ईंधन कंपनियां, इस तकनीक का उपयोग एक आवरण के रूप में कर रही हैं, क्योंकि वे इसकी आड़ में अपने व्यापार का बढ़ाना चाहती हैं।

सेंटर फॉर इंटरनेशनल एनवायरनमेंटल लॉ के मुताबिक सीसीएस तकनीकें एक उत्सर्जक स्रोत, जैसे सीमेंट संयंत्र से उत्सर्जन के एक हिस्से को वायुमंडल में प्रवेश करने से रोकती हैं। वहीं दूसरी तरफ कार्बन डाइऑक्साइड हटाने (सीडीआर) की तकनीकें कार्बन डाइऑक्साइड को पहले से ही वातावरण में भंडारण के किसी न किसी रूप में स्थानांतरित कर देती है।

ऐसे में रिपोर्ट का कहना है कि शुद्ध-नकारात्मक उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए सीडीआर तकनीकें जरूरी हैं। यदि तापमान में होती वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाती है तो रिपोर्ट का सुझाव है कि ऐसे में अतिरिक्त सीडीआर की तैनाती जरूरी है।

इतना ही नहीं सीडीआर की मदद से कृषि, उड्डयन, नौवहन और औद्योगिक प्रक्रियाओं से होने वाले उत्सर्जन का मुकाबला किया जा सकता है। इसकी मदद से शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं। हालांकि, रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता और लोगों के लिए सीडीआर को लागू करने के प्रभाव, जोखिम और सह-लाभ अत्यधिक परिवर्तनशील होंगे। जो इसके स्थान, तरीकों और पैमाने पर निर्भर करेंगें।

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