जलवायु परिवर्तन के साथ हिमालय में सिकुड़ रहा भौंरों का आवास

जलवायु परिवर्तन के चलते 2050 तक, हिमालय क्षेत्र में भौंरों की 75 फीसदी से अधिक प्रजातियां उपयुक्त आवास क्षेत्रों में गिरावट का सामना करने को मजबूर होंगी
प्रतीकात्मक तस्वीर; फोटो: आईस्टॉक
प्रतीकात्मक तस्वीर; फोटो: आईस्टॉक
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वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के शोधकर्ताओं ने खुलासा किया है कि जलवायु में आते बदलावों के साथ हिमालय में भौंरों का आवास सिकुड़ रहा है, जो एक चिंताजनक प्रवृत्ति का संकेत देता है। शोधकर्ताओं ने आशंका व्यक्त है कि भौरों के उपयुक्त आवास में आती गिरावट की यह प्रवति भविष्य में भी जारी रहेगी।

गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन और इंसानी गतिविधियों के चलते पर्वतीय और समशीतोष्ण क्षेत्रों में भौंरों की आबादी तेजी से घट रही है। हालांकि हिमालयी क्षेत्र में यह बदलावों उनके आवासों को किस कदर प्रभावित कर रहे हैं, इस बारे में विश्वसनीय जानकारी का आभाव है।

यही वजह है कि अपने इस नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने न केवल भौंरों के वर्तमान बल्कि भविष्य में उनके आवासों पर पड़ने वाले प्रभावों का भी आंकलन किया है। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने एन्ट्रापी एल्गोरिदम का उपयोग किया है। वैश्विक स्तर पर देखें तो भौरों की अब तक 265 प्रजातियां खोजी जा चुकी हैं, जिनमें हिमालय में पाई जाने वाली 53 प्रजातियां भी शामिल हैं। इनमें से नौ प्रजातियां ऐसी हैं जो केवल इसी क्षेत्र में मिलती हैं।

बता दें कि भौंरे अपनी गजब की शारीरिक बनावट के लिए जाने जाते हैं जो सर्द मौसम में भी अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित कर सकते हैं। इसकी वजह से वो बेहद अधिक ऊंचाई पर कम तापमान और ऑक्सीजन में भी परागण कर सकते हैं, जहां दूसरे परागणकर्ता ऐसा कर पाने में असमर्थ रहते हैं। इनकी इसी क्षमता के कारण इन्हें पर्वतीय और समशीतोष्ण क्षेत्रों में जंगली पौधों और फसलों के सबसे महत्वपूर्ण परागणकों के रूप में पहचाना जाता है।

वैज्ञानिक शोधों में सामने आया है कि 1951 से 2014 के बीच हिमालय क्षेत्र के तापमान में 0.2 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक की दर से उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यह तापमान विशेष तौर पर अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में 0.5 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक की दर से बढ़ रहा है। जलवायु के लेकर जो अनुमान लगाए गए हैं, उनके मुताबिक 2050 तक इस क्षेत्र का औसत तापमान दो से पांच डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। इतना ही नहीं यहां होने वाली औसत वार्षिक वर्षा में भी अगले 26 वर्षों में आठ से 12 फीसदी की वृद्धि होने का अंदेशा है।

गौरतलब है कि जलवायु में आता बदलाव पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता को इस कदर प्रभावित कर रहा है, जिसकी भरपाई मुमकिन नहीं है। इसकी वजह से कई हिमालयी प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं। विशेष रूप से परागण करने वाले जीवों पर पड़ता प्रभाव इन पर गहरा असर डाल रहा है।

जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं वो एक चिंताजनक प्रवृत्ति का संकेत देते हैं। जो स्पष्ट तौर पर दर्शाती है कि हिमालय में भौंरों के आवास की जो स्थितियां बन रही हैं वो आशाजनक नहीं हैं। शोधकर्ताओं ने आशंका जताई है कि 2050 तक हिमालय क्षेत्र का 10 फीसदी से भी कम हिस्सा भौंरों की 72 फीसदी प्रजातियों के लिए उपयुक्त रह जाएगा।

हालांकि इस दौरान भौंरों की कुछ प्रजातियों को नए उपयुक्त आवास मिल सकते हैं, लेकिन नतीजे दर्शाते हैं कि कुल मिलकर अगले 50 वर्षों में हिमालयी भौंरों के लिए उपयुक्त आवास क्षेत्रों में गिरावट आएगी। जो उनके आवास क्षेत्र में संभावित बदलावों को उजागर करती है। मौजूदा समय में देखें तो हिमालय क्षेत्र का महज 15 फीसदी हिस्सा ही भौंरों के लिए बेहद उपयुक्त है।

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि मौजूदा समय में हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र का 30 फीसदी से अधिक हिस्सा भौंरों की अध्ययन की गई 32 में से केवल तीन प्रजातियों के लिए उपयुक्त है। वहीं 10 से 20 फीसदी क्षेत्र 11 प्रजातियों के लिए उपयुक्त है। वहीं 10 फीसदी से भी कम क्षेत्र इनकी 16 प्रजातियों के लिए उपयुक्त है।

अध्ययन में यह भी सामने आया है कि भौरों के लिए मौजूदा समय में जो उपयुक्त आवास है वो 2050 तक 5.4 फीसदी से लेकर 99.9 फीसदी तक घट जाएगा। मतलब कि कुछ प्रजातियां तो ऐसी होंगी जो अपने उपयुक्त आवास को पूरी तरह खो देंगी।

15 प्रजातियां ऐसी हैं जो वर्तमान में अपने उपयुक्त आवास का 90 फीसदी से अधिक हिस्सा खो देंगी। वहीं भौंरों की दस प्रजातियां मौजूदा में अपने उपयुक्त आवास का 50 से 90 फीसदी भाग खो देंगी।

यदि हिमालय के कुल क्षेत्रफल के संबंध में देखें तो 2050 तक, हिमालय का 20 फीसदी से अधिक हिस्सा केवल एक प्रकार के भंवरे बी ग्राहमी, के लिए उपयुक्त होगा। वहीं अन्य 10 से 20 फीसदी हिस्सा केवल तीन प्रजातियों के लिए उपयुक्त होगा।

देखा जाए तो इन 25 प्रजातियों में से, केवल बी ल्यूकोरम अपने वर्तमान आवास का करीब 63.87 फीसदी खो देगी, लेकिन साथ ही उसे इस बीच 58.26 फीसदी  नए उपयुक्त आवास भी मिलेंगे। वहीं भंवरे की प्रजाति बी जेनैलिस के मौजूदा उपयुक्त आवास का करीब 94.59 फीसदी हिस्से पर प्रभाव नहीं पड़ेगा। वहीं पांच प्रजातियां अपने उपयुक्त आवास में वृद्धि का अनुभव करेंगी।

वहीं यदि 2070 के लिए जारी पूर्वानुमान को देखें तो भौंरों की सभी प्रजातियों के अनुकूल आवास क्षेत्रों में 5.13 से 100 फीसदी तक की गिरावट आने का अंदेशा है।

देखा जाए तो प्रजातियों के अनुकूल आवास क्षेत्र में गिरावट या वृद्धि प्रजातियों पर निर्भर करेगा। रिसर्च में यह भी सामने आया है कि 2070 तक 13 प्रजातियां अपने मौजूदा अनुकूल आवास क्षेत्रों में 90 फीसदी से ज्यादा की गिरावट का सामना करेंगी। वहीं 11 प्रजातियां 50 से 90 फीसदी की गिरावट का सामना करेंगी।

यदि हिमालय क्षेत्र में इनके उपयुक्त आवास को देखें तो 2070 तक हिमालय का 20 फीसदी से अधिक क्षेत्र केवल दो प्रजातियों के लिए उपयुक्त होगा। वहीं 10 फीसदी से अधिक क्षेत्र केवल दो प्रजातियों बी लेपिडस और बी जेनैलिस के लिए उपयुक्त रह जाएगा। वहीं चार प्रजातियां अपने उपयुक्त आवास क्षेत्रों में वृद्धि का अनुभव करेंगी।

अध्ययन में जो पूर्वानुमान सामने आए हैं, उनके मुताबिक 2050 तक, हिमालय क्षेत्र में भौंरों की 75 फीसदी से अधिक प्रजातियां उपयुक्त आवास क्षेत्रों में गिरावट का अनुभव करेंगी। इनमें से 40 फीसदी से अधिक प्रजातियां अपने उपयुक्त आवास के 90 फीसदी हिस्से में गिरावट का सामना करेंगी।

वहीं 45 फीसदी से अधिक प्रजातियों के पास एक फीसदी से भी कम उपयुक्त आवास क्षेत्र होगा। इतना ही नहीं 2070 तक में स्थिति में सुधार आने के कोई संकेत नहीं है, क्योंकि इस दौरान 85 फीसदी से अधिक प्रजातियां अपने उपयुक्त आवास में गिरावट का सामना करेंगी। वहीं उनमें 40 फीसदी से अधिक को अपने आवास क्षेत्रों में 90 फीसदी गिरावट का सामना करना होगा। वहीं 35 फीसदी से अधिक प्रजातियों के लिए उपयुक्त आवास क्षेत्र सिकुड़ कर एक फीसदी से कम क्षेत्र में रह जाएगा।

चूंकि हिमालयी क्षेत्र में भौरों के यह उपयुक्त आवास कई देशों में फैले हुए हैं। ऐसे में इनके संरक्षण के लिए इन हिमालयी देशों को मिलकर प्रयास करने चाहिए, ताकि पारिस्थितिक तंत्र के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण इन नन्हे जीवों को बचाया जा सके।

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