भारत सहित पूरे एशिया-पैसिफिक क्षेत्र के लिए मौजूदा समय आपदा आपातकाल से कम नहीं। इस क्षेत्र में आती जलवायु आपदाएं लोगों का कड़ा इम्तिहान ले रहीं हैं। ऐसे में यदि समय रहते इन पर ध्यान न दिया गया तो तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ इन आपदाओं से होने वाला नुकसान बढ़कर 82 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है।
स्थिति कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जलवायु से जुड़ी इन आपदाओं का जोखिम क्षेत्र की सहनशीलता की क्षमता को पार कर रहा है। बता दें कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र दुनिया में आपदाओं के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील है। यह जानकारी एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए गठित संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग (यूएन ईएससीएपी) द्वारा जारी नई रिपोर्ट "एशिया पैसिफिक डिजास्टर रिपोर्ट 2023" में सामने आई है।
रिपोर्ट के मुताबिक इस क्षेत्र में समय रेत की तरह तेजी से फिसल रहा है। ऐसे में यदि इस बढ़ते जलवायु संकट पर अभी कार्रवाई न की गई तो भारत सहित पूरे एशिया-पैसिफिक क्षेत्र को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
रिपोर्ट के मुताबिक चरम मौसमी घटनाएं अब पहले से कहीं ज्यादा हावी हो चुकी हैं। यह न केवल पहले से कहीं ज्यादा तीव्र और विकराल रूप ले चुकी हैं साथ ही इनकी आवृत्ति भी पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है। इन आपदाओं का सबसे ज्यादा खामियाजा एशिया-प्रशांत क्षेत्र को ही झेलना पड़ रहा है।
1970 के बाद से करीब 20 लाख लोग इन आपदाओं की भेंट चढ़ चुके हैं। यदि 2022 के आंकड़ों पर गौर करें तो केवल इसी एक वर्ष में 140 से अधिक आपदाएं आईं थी, जिनमें 7,500 से अधिक लोगों की मौतें हो गई थी। इतना ही नहीं इन आपदाओं में 6.4 करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे।
जलवायु से जुड़ी आपदाओं का सामना करने के लिए तैयार नहीं एशिया-पैसिफिक
इन आपदाओं से अर्थव्यवस्था को करीब 4.66 लाख करोड़ रुपए (5700 करोड़ डॉलर) से ज्यादा का नुकसान उठाना पड़ा था। रिपोर्ट के अनुसार बढ़ते तापमान के साथ आने वाले समय में स्थिति कहीं ज्यादा गंभीर रूप ले सकती है।
भारत जैसे देश जो इन जलवायु आपदाओं के लिए पहले ही हॉटस्पॉट हैं, वहां पहले से कहीं ज्यादा आपदाएं आ सकती हैं। इतना ही नहीं उनके कहीं ज्यादा तीव्र होने का भी अंदेशा है। साथ ही इस क्षेत्र में इन आपदाओं के जोखिम वाले नए हॉटस्पॉट भी उभरने की आशंका है।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी इस रिपोर्ट के मुताबिक यदि इसकी रोकथाम और अनुकूलन के लिए तत्काल कार्रवाई न की गई तापमान में 1.5 से दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ ऐसी आपदाएं आएंगी, जो क्षेत्र की जलवायु अनुकूलन क्षमता के परे होंगी। मतलब की क्षेत्र इन्हें झेल पाने के काबिल नहीं है।
इसकी वजह से क्षेत्र ने सतत विकास की राह पर जो उपलब्धियां हासिल की हैं वो खतरे में पड़ जाएंगी। वहीं जलवायु परिवर्तन और अनुकूलन की दिशा में कार्रवाई न करने के परिणाम कहीं ज्यादा गंभीर होंगें।
रिपोर्ट के अनुसार यदि तापमान में होती वृद्धि दो डिग्री सेल्सियस पर पहुंच जाती है तो उसकी वजह से इन आपदाओं के कारण होने वाला आर्थिक नुकसान बढ़कर 82 लाख करोड़ रुपए (एक लाख करोड़ डॉलर) पर पहुंच जाएगा। मतलब की इन आपदाओं के चलते क्षेत्र को अपने सकल घरेलू उत्पाद के करीब तीन फीसदी हिस्से के बराबर नुकसान झेलना पड़ सकता है।
इसका सबसे ज्यादा खामियाजा उन क्षेत्रों को उठाना पड़ेगा जो पहले ही इन आपदाओं का दंश झेलने को मजबूर हैं। इसकी वजह से प्रशांत क्षेत्र में छोटे द्वीपों के रूप में जो विकासशील देश हैं वो, कृषि और ऊर्जा क्षेत्रों में बढ़ती असमानता और तबाही का अनुभव करने को मजबूर होंगें, जिसका असर खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा पर भी पड़ेगा।
इसको लेकर संयुक्त राष्ट्र की अवर महासचिव और ईएससीएपी की कार्यकारी सचिव, आर्मिडा साल्सिया अलीसजहबाना ने चेताया है कि, "जैसे-जैसे तापमान बढ़ रहा है, आपदाओं के हॉटस्पॉट उभर रहे हैं। वहीं मौजूदा हॉटस्पॉट कहीं ज्यादा गंभीर रूप ले रहे हैं।" उनके अनुसार आपदा का आपातकाल चल रहा है। ऐसे में हमें इन चुनौतियों से निपटने और इनका सामना करने के अपने मौलिक तरीकों में बदलाव की जरूरत है।
रिपोर्ट में ऐसी पूर्व चेतावनी प्रणालियों में निवेश को बढ़ावा देने की बात कही है, जो एक साथ कई आपदाओं की चेतावनी देने में सक्षम हैं। विशेष रूप से यह विकासशील देशों में जीवन के रक्षा के लिए बहुत मायने रखती हैं।
रिपोर्ट के अनुसार यह प्रणालियां मृत्यु दर को काफी हद तक कम कर सकती हैं और आपदाओं से होने वाले नुकसान को करीब 60 फीसदी तक कम कर सकती हैं। इतना ही नहीं इन चेतावनी प्रणालियों पर किया निवेश बदले में दस गुना फायदा पहुंचाएगा।
इस रिपोर्ट को आपदाओं के जोखिम को कम करने के लिए हो रहे ईएससीएपी समिति के आठवें सत्र के दौरान जारी किया गया है। यह सत्र 25 से 27 जुलाई तक चलेगा। इसमें निम्नलिखित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।