फसलों पर जलवायु परिवर्तन के असर को कम क्यों आंक रही हैं एजेंसियां?

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 2021 में 82.8 करोड़ से अधिक लोगों को भूख का सामना करना पड़ा और जलवायु परिवर्तन के कारण सदी के मध्य तक यह संख्या आठ करोड़ तक और बढ़ सकती है
फसलों पर जलवायु परिवर्तन के असर को कम क्यों आंक रही हैं एजेंसियां?
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एक अध्ययन के मुताबिक, दुनिया भर के कई इलाकों में फसल पैदावार के कम होने के खतरों को कम करके आंका गया है। अध्ययन में चेतावनी देते हुए कहा गया है कि, जलवायु परिवर्तन हमारे खाद्य प्रणालियों पर भारी प्रभाव डाल रहा है।

खाद्य उत्पादन से दुनिया गर्म हो रही है और उत्सर्जन का यह एक प्रमुख स्रोत है। साथ ही इस पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का भारी असर होता है। जलवायु और फसल मॉडल का उपयोग यह पता लगाने के लिए किया जाता है कि दुनिया के गर्म होने पर इसके क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं।

यह अध्ययन कोलंबिया यूनिवर्सिटी और जर्मन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स के शोधकर्ता और मुख्य अध्ययनकर्ता काई कोर्नह्यूबर की अगुवाई में किया गया है। अध्ययन में कहा गया है कि, फसलों पर असर पड़ने की घटनाओं से कीमतों में बढ़ोतरी, खाद्य असुरक्षा और यहां तक कि लोगों में अशांति फैल सकती है।

नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित इस नए अध्ययन में, इस बात की आशंका पर गौर किया गया है कि कई प्रमुख खाद्य उत्पादक क्षेत्रों को एक साथ कम पैदावार का सामना करना पड़ सकता है।

अध्ययन के मुताबिक, ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को बढ़ाकर, हम इस समस्या में फंसते जा रहे हैं, हम वास्तव में इस बात का सटीक अंदाजा लगाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं कि हम किस प्रकार की मौसम की चरम सीमाओं का सामना करने जा रहे हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि, इस प्रकार की लगातार होने वाली घटनाओं को वास्तव में काफी हद तक कम करके आंका गया है।

अध्ययन में 1960 से 2014 के बीच अवलोकन और जलवायु मॉडल के आंकड़ों और फिर 2045 से 2099 के अनुमानों को देखा गया। सबसे पहले जेट स्ट्रीम के प्रभाव को देखा गया, जेट स्ट्रीम- हवा की धाराएं हैं जो दुनिया के कई सबसे महत्वपूर्ण फसल उत्पादक क्षेत्रों में मौसम के पैटर्न को संचालित करती हैं।

बड़ी लहर के आकार में बहने वाली जेट स्ट्रीम के मजबूत घुमाव का उत्तरी अमेरिका, पूर्वी यूरोप और पूर्वी एशिया के प्रमुख कृषि क्षेत्रों पर विशेष रूप से प्रभाव पड़ता है, जिससे उपज में सात प्रतिशत तक की कमी आती है।

अध्ययन में यह भी पाया कि यह अतीत में एक साथ फसल की पैदावार के कम होने से जुड़ा था। उदाहरण के लिए 2010 में जब जेट स्ट्रीम के उतार-चढ़ाव को रूस के कुछ हिस्सों में अत्यधिक गर्मी और पाकिस्तान में विनाशकारी बाढ़ से जोड़ा गया था, जिससे फसलों को नुकसान हुआ था।

खतरों का आकलन

अध्ययन में यह भी देखा गया कि कंप्यूटर मॉडल इन खतरों का कितनी अच्छी तरह आकलन करते हैं, और पाया गया कि हालांकि वे जेट स्ट्रीम के वायुमंडलीय गतिविधि को दिखाने में अच्छे हैं, लेकिन वे जमीन पर उत्पन्न होने वाली चरम सीमा की भयावहता को कम कर के आंकते हैं।

अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक, यह अध्ययन खाद्य क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बारे में हमारी अनिश्चितताओं को लेकर एक चेतावनी देता है, जिसमें अधिक बार और तीव्र चरम मौसम और चरम से जटिल मौसम संबंधी बदलाव शामिल हैं।

अध्ययन में चेतावनी देते हुए कहा गया है कि, भविष्य में इस प्रकार के जटिल जलवायु संबंधी खतरों के लिए तैयार रहने की जरूरत है और मौजूदा दौर के मॉडल इसे पकड़ नहीं पाते हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि, भूख और पीड़ा भविष्य के लिए वास्तव में भयानक विनाशकारी चेतावनी है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन की चरम सीमा ने फसलों, पशुधन और महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित किया है।

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 2021 में 82.8 करोड़ से अधिक लोगों को भूख का सामना करना पड़ा और जलवायु परिवर्तन के कारण सदी के मध्य तक यह संख्या आठ करोड़ तक और बढ़ सकती है।

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