क्या साफ हवा के कारण अधिक पैदा हो रहे हैं अटलांटिक तूफान? क्या कहता है अध्ययन

नोआ के एक नए अध्ययन में पाया गया कि अमेरिका और यूरोप में स्वच्छ हवा अधिक अटलांटिक तूफानों को पैदा कर रही है।
फोटो: नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (नोआ)
फोटो: नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (नोआ)
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नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (नोआ) के एक नए अध्ययन में पाया गया कि अमेरिका और यूरोप में स्वच्छ हवा अधिक अटलांटिक तूफानों को पैदा कर रही है।

नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (नोआ) का अध्ययन दुनिया भर में क्षेत्रीय वायु प्रदूषण में बदलाव को ऊपर और नीचे जाने वाली तूफान से संबंधित गतिविधि से जोड़ता है। नोआ के मुताबिक यूरोप और अमेरिका में प्रदूषण कणों और बूंदों में 50 फीसदी की कमी पिछले कुछ दशकों में अटलांटिक तूफान के बनने में 33 फीसदी की वृद्धि से जुड़ी हुई है, जबकि इसके विपरीत प्रशांत क्षेत्र में अधिक प्रदूषण की वजह से तूफान कम पैदा हो रहे हैं।

नोआ के तूफान से संबंधित वैज्ञानिक हिरोयुकी मुराकामी ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में तूफान की गतिविधि में बदलाव का पता लगाने के लिए कई जलवायु कंप्यूटर सिमुलेशन चलाए, जिन्हें प्राकृतिक जलवायु चक्रों द्वारा समझाया नहीं जा सकता है। उन्होंने तूफान के लिए उद्योग और कारों से होने वाले एयरोसोल प्रदूषण के बीच एक संबंध खोजा है। यहां बताते चलें कि प्रदूषित एयरोसोल में सल्फर के कण और हवा में इसकी बूंदे होती हैं जो सांस लेना और देखना मुश्किल बना देती है।

वैज्ञानिकों लंबे समय से यह जानते हैं कि एयरोसोल प्रदूषण हवा को ठंडा करता है, कभी-कभी यह जीवाश्म ईंधन के जलने से होने वाले ग्रीनहाउस गैसों के बड़े प्रभाव को कम करता है। पहले के अध्ययनों ने अटलांटिक तूफानों में वृद्धि की संभावना के रूप में इसका उल्लेख भी किया था, लेकिन मुराकामी ने इसे दुनिया भर में एक कारक के रूप में पाया और इसका एक सीधा संबंध देखा।

तूफान को गर्म पानी की आवश्यकता होती है, पानी हवा के द्वारा गर्म होता है। इसकी शक्ति को हवा के मुड़ने से नुकसान होता है, जो ऊपरी स्तर की हवाओं में बदल जाता है जो तूफान को आने से रोक सकता है। मुराकामी ने कहा कि अटलांटिक में स्वच्छ हवा और प्रशांत में प्रदूषित हवा, चीन और भारत में प्रदूषण से, दोनों में गड़बड़ी पैदा कर रही है।

अटलांटिक में एरोसोल प्रदूषण 1980 के आसपास चरम पर था और तब से लगातार गिर रहा है। मुराकामी ने कहा कि इसका मतलब है कि ग्रीनहाउस गैस के चलते बढ़ते तापमान में से कुछ को ठंडा करने वाली ठंडक दूर जा रही है, इसलिए समुद्र की सतह का तापमान और भी बढ़ रहा है।

इसके ऊपरी स्तर पर ठंडे एरोसोल की कमी ने जेट स्ट्रीम को आगे बढ़ने में मदद की है। हवा का बहाव जो पश्चिम से पूर्व की ओर मौसम को रोलर-कोस्टर जैसे रस्ते पर ले जाती है, आगे उत्तर, उस हवा के बहाव को कम करती है जो तूफान के गठन को कम कर रही थी।

रिस्क फर्म द क्लाइमेट सर्विस के जलवायु और तूफान संबंधी वैज्ञानिक जिम कोसिन ने कहा इसलिए 90 के दशक के मध्य से अटलांटिक बहुत अधिक अशांत   हो गया है जो 70 और 80 के दशक में यह इतना शांत क्यों था। एरोसोल प्रदूषण ने 70 और 80 के दशक में लोगों को आराम दिया था, लेकिन हम सभी अब इसका भुगतान कर रहे हैं।

ला नीना और अल नीनो के साथ उष्णकटिबंधीय चक्रवात की गतिविधि के अन्य कारण हैं, भूमध्यरेखीय प्रशांत के तापमान में प्राकृतिक उतार-चढ़ाव जो दुनिया भर में जलवायु में बदलाव करने के लिए जाना जाता हैं। मुराकामी ने कहा कि ग्रीनहाउस गैसों से होने वाला मानवजनित जलवायु परिवर्तन से एरोसोल प्रदूषण के स्तर में कमी आएगी और अन्य लंबे समय तक होने वाला प्राकृतिक जलवायु परिवर्तन जारी रहेगा।

मुराकामी, कोसिन और अन्य वैज्ञानिकों ने कहा कि ग्रीनहाउस गैसों से होने वाले जलवायु परिवर्तन से तूफानों की कुल संख्या में थोड़ी कमी आने की उम्मीद है, लेकिन सबसे तीव्र तूफानों की संख्या और ताकत में वृद्धि होगी। ये तूफान अधिक बारिश वाले होंगे जो बाढ़ की विभीषिका को बढ़ाएंगे।

कोलंबिया विश्वविद्यालय के जलवायु वैज्ञानिक एडम सोबेल ने कहा, जबकि एयरोसोल कूलिंग ग्रीनहाउस गैसों से बढ़ती गर्मी की तुलना में शायद आधे से एक तिहाई छोटा है, यह उष्णकटिबंधीय चक्रवात की तीव्रता को कम करने में लगभग दोगुना प्रभावी है। मुराकामी ने कहा कि चूंकि अटलांटिक में एयरोसोल प्रदूषण का स्तर कम होता है और ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन बढ़ता है, जो भविष्य में तूफानों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को बढ़ाएगा।

प्रशांत क्षेत्र में खासकर एशियाई देशों से एयरोसोल प्रदूषण 1980 से 2010 तक 50 फीसदी बढ़ गया था जो कि अब कम होना शुरू हो गया है। मुराकामी ने कहा कि 2001 से 2020 तक उष्णकटिबंधीय चक्रवात का गठन 1980 से 2000 की तुलना में 14 फीसदी कम है।

मुराकामी ने एक सहसंबंध भी पाया जो दक्षिण की ओर थोड़ा अलग था। यूरोपीय और अमेरिकी एयरोसोल प्रदूषण में गिरावट ने वैश्विक वायु पैटर्न को इस तरह से बदल दिया कि इसका मतलब ऑस्ट्रेलिया के आसपास दक्षिणी गोलार्ध के तूफानों में कमी आई थी।

वाशिंगटन विश्वविद्यालय के सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रोफेसर क्रिस्टी एबी ने कहा कि अटलांटिक में जितने ज्यादा तूफान आएंगे उतनी ही अधिक समस्या होगी, लेकिन अतिरिक्त तूफानों से होने वाली मौतों की तुलना विश्व स्तर पर वायु प्रदूषण से मरने वाले 70 लाख लोगों से नहीं हो सकती है।

ईबी ने कहा कहा वायु प्रदूषण एक प्रमुख हत्यारा है, इसलिए उत्सर्जन को कम करना महत्वपूर्ण है चाहे चक्रवातों की संख्या के साथ कुछ भी हो। अध्ययन साइंस एडवांस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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