जलवायु परिवर्तन: खतरे में रेंडियर, सदी के अंत तक 80 फीसदी की गिरावट की आशंका

अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से पिछले तीन दशकों में रेंडियर की दो-तिहाई आबादी खत्म हो चुकी है
जलवायु परिवर्तन: खतरे में रेंडियर, सदी के अंत तक 80 फीसदी की गिरावट की आशंका
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हर साल दिसंबर की सर्द रातों में जब बच्चे सांता क्लॉज के आने का इंतजार करते हैं, तो उनकी कल्पनाओं में आसमान में उड़ते रेंडियर होते हैं, जो सांता की उपहारों से भरी गाड़ी को खींचने में मदद करते हैं।

रेंडियर बच्चों की महज कल्पना नहीं हैं, यह जीव आर्कटिक के जीवन और संतुलन का आधार हैं, जो हजारों वर्षों से इन सर्द इलाकों में विचरते रहे हैं। लेकिन जिस तरह से वैश्विक तापमान में इजाफा हो रहा है उसके चलते इन जीवों की आबादी बड़ी तेजी से घट रही है। एक नए अंतरराष्ट्रीय अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से पिछले तीन दशकों में रेंडियर की दो-तिहाई आबादी खत्म हो चुकी है।

अध्ययन में यह भी सामने आया है कि जलवायु में आने वाले बदलावों के कारण आने वाले दशकों में रेंडियर की संख्या और उनके प्राकृतिक आवास में भारी गिरावट आ सकती है। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि यह गिरावट इतनी ज्यादा होगी जितनी पिछले 21,000 वर्षों में कभी नहीं देखी गई।

यह अध्ययन ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ एडिलेड और डेनमार्क की यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगन से जुड़े वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किया गया है, जिसके नतीजे जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित हुए हैं।

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इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 21,000 वर्षों के जीवाश्म, प्राचीन डीएनए और कंप्यूटर मॉडल की मदद से रेंडियर की आबादी और उनके विस्तार में आए बदलावों पर प्रकाश डाला है।

वैज्ञानिकों ने न केवल इस बात की जानकारी एकत्र की है कि कैसे रेंडियर ने पहले के जलवायु बदलावों का सामना किया। साथ ही उन्होंने इस सवाल का जवाब भी खोजने का प्रयास किया है कि क्या ये जीव भविष्य में आने वाले इन बदलावों से निपट पाएंगे।

आर्कटिक की पारिस्थितिकी के लिए बेहद मायने रखते हैं यह जीव

गौरतलब है कि रेंडियर, जिन्हें उत्तरी अमेरिका में ‘कैरिबू’ भी कहा जाता है, हिम युग की एक प्रजाति है जो आर्कटिक की कठोर परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए अनूठे ढंग से अनुकूलित हैं। ये जीव न केवल आर्कटिक की पारिस्थितिकी को संतुलित रखने में अहम भूमिका निभाते हैं, बल्कि साथ ही स्थानीय समुदायों की जीविका का भी आधार हैं।

अध्ययन से जुड़ी मुख्य शोधकर्ता डॉक्टर एलिसाबेटा कैंटेरी ने अध्ययन पर प्रकाश डालते हुए प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी, “इतिहास में जब-जब जलवायु तेजी से गर्म हुई, रेंडियर की आबादी में बड़ी गिरावट आई। लेकिन आने वाले दशकों में जो नुकसान हो सकते हैं, वे अतीत की तुलना में कहीं अधिक गंभीर हो सकते हैं।"

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अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं, उनसे पता चला है कि उत्तरी अमेरिका की कैरिबू प्रजातियां जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा खतरे में हैं।

ऐसे में यदि ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन को तुरंत कम नहीं किया गया और वन्यजीव संरक्षण में निवेश को नहीं बढ़ाया गया, तो सदी के अंत तक इन जादुई जीवों की आबादी में 80 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक रेंडियर की घटती आबादी का असर, वहां की वनस्पति पर भी पड़ेगा, जिनकी विविधता में गिरावट आएगी। इससे आर्कटिक की मिट्टी में जमा कार्बन बाहर निकल सकता है, जो जलवायु परिवर्तन की रफ्तार को और तेज कर देगा। इससे इन जीवों पर मंडराता खतरा और बढ़ जाएगा। इतना ही नहीं इसका असर इंसानों पर भी पड़ेगा, जिनपर जलवायु संकट और गहरा जाएगा।

वैज्ञानिकों का कहना है कि, रेंडियर और कैरिबू टुंड्रा क्षेत्र में वनस्पति की विविधता को बनाए रखने में मदद करते हैं, वे कुछ पौधों को खाते हैं, जिससे दूसरों की वृद्धि पर असर पड़ता है। ऐसे में यदि ये जीव गायब होते हैं, तो वहां पेड़-पौधों की विविधता भी घटने लगती है।

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर एरिक पोस्ट का कहना है, 'रेंडियर और कैरिबू की कमी से टुंड्रा में पौधों की विविधता घटेगी, जिसका कई स्तरों पर असर पड़ेगा, इनमें आर्कटिक की मिट्टी में कार्बन को संजोकर रखने की क्षमता में आने वाली कमी भी शामिल है।'

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उनका आगे कहना है, रेंडियर न केवल वनस्पतियों को संतुलित रखते हैं, बल्कि हजारों वर्षों से मानव समुदायों को पारिस्थितिकी सेवाएं और संसाधन भी प्रदान करते रहे हैं। अब समय आ गया है कि हम उनके संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाएं।

वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर हम अब भी कार्रवाई नहीं करते, तो हम न केवल इस अद्भुत प्रजाति को खो देंगे, बल्कि इससे उन पारिस्थितिकी तंत्रों और समुदायों को भी नुकसान पहुंचेगा जो इन पर निर्भर हैं।

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