शोधकर्ताओं का कहना है कि अंटार्कटिका में समुद्री लू और बर्फ का पिघलना जैसी चरम घटनाएं निश्चित रूप से अधिक सामान्य और अधिक खतरनाक हो जाएंगी।
ग्लोबल वार्मिंग को पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य तक सीमित करने के लिए अब कठोर कार्रवाई की जरूरत है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अंटार्कटिका में हालिया चरम सीमा, पानी में बर्फ के उस टुकड़े के सामान है जिसका छोटा सा भाग पानी के ऊपर दिखाई देता है और विशाल भाग पानी के अंदर होता है।
अध्ययन में अंटार्कटिका और दक्षिणी महासागर में चरम घटनाओं के सबूतों की समीक्षा की गई है, जिसमें मौसम, समुद्री बर्फ, समुद्र का तापमान, ग्लेशियर और बर्फ की चट्टान प्रणाली और भूमि और समुद्र की जैव विविधता शामिल है।
अध्ययन के निष्कर्ष में कहा गया है कि, अंटार्कटिका का नाजुक वातावरण भविष्य में काफी तनाव और नुकसान का विषय बन सकता है, इसकी सुरक्षा के लिए तत्काल नीतिगत कार्रवाई की मांग की गई है।
एक्सेटर विश्वविद्यालय के प्रमुख अध्ययनकर्ता के मुताबिक, अंटार्कटिका में बदलाव का दुनिया भर में प्रभाव हैं। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को शून्य तक कम करना अंटार्कटिका को संरक्षित करने का सबसे अच्छा तरीका है, यह ग्रह पर हर देश और व्यक्ति के लिए मायने रखता है।
अध्ययन के हवाले से उन्होंने कहा कि, अंटार्कटिका में अब जो तेजी से बदलाव हो रहे हैं, उससे कई देशों को अंतरराष्ट्रीय संधि का उल्लंघन करना पड़ सकता है।
उन्होंने बताया, अंटार्कटिक संधि पर हस्ताक्षर करने वाले यूके, अमेरिका, भारत और चीन सहित इस दूरस्थ और नाजुक जगह के पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए संकल्प लिया है।
देशों को यह समझना चाहिए कि दुनिया में कहीं भी जीवाश्म ईंधन की खोज, निष्कर्षण और जलाना जारी रखने से, अंटार्कटिका के पर्यावरण और उनका संकल्प पूरा नहीं होगा तथा जिससे वह अधिक प्रभावित हो जाएगा।
शोधकर्ताओं ने हालिया चरम घटनाओं की एक श्रृंखला के बाद, कारणों और भविष्य में होने वाले बदलावों को समझने के लिए अंटार्कटिका की विभिन्न चरम घटनाओं पर विचार किया।
उदाहरण के लिए, दुनिया की सबसे बड़ी हीटवेव या लू 2022 में पूर्वी अंटार्कटिका में दर्ज की गई थी और शीतकालीन समुद्री बर्फ का निर्माण रिकॉर्ड पर सबसे कम है।
चरम घटनाएं जैव विविधता को भी प्रभावित कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, अधिक तापमान क्रिल की संख्या के कम होने के रूप में देखा गया है, जिससे क्रिल पर निर्भर शिकारियों की प्रजनन दर गिर रही है, समुद्र तटों पर कई मृत फर वाली सील के बच्चों से इसका प्रमाण मिलता है।
लीड्स विश्वविद्यालय के सह-अध्ययनकर्ता ने कहा कि, नतीजे बताते हैं कि जहां चरम घटनाएं भारी वर्षा और बाढ़, लू और जंगल की आग के द्वारा दुनिया को प्रभावित करने के लिए जानी जाती हैं, जैसे कि गर्मी यूरोप में देखी गईं, वे भी सुदूर ध्रुवीय क्षेत्रों पर इस तरह का प्रभाव देखा गया।
अंटार्कटिका ग्लेशियर, समुद्री बर्फ और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र सभी चरम घटनाओं से प्रभावित होते हैं। इसलिए, यह जरूरी है कि इन खूबसूरत लेकिन नाजुक क्षेत्रों की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय संधियों और नीति को लागू किया जाए।
ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण के समुद्री बर्फ विशेषज्ञ डॉ. कैरोलिन होम्स ने अध्ययन में बताया कि, अंटार्कटिक समुद्री बर्फ हाल के हफ्तों में सुर्खियां बटोर रही है और यह अध्ययन दिखाता है कि कैसे समुद्री बर्फ पहले रिकॉर्ड ऊंचाई पर थी, लेकिन 2017 के बाद से, कई वर्षों से रिकॉर्ड अंटार्कटिका में लड़खड़ा रहा है।
गौरतलब है कि, अंटार्कटिका की प्राकृतिक और जैविक प्रणाली के विभिन्न पहलुओं में चरम घटनाओं के बीच गहरे संबंध हैं, उनमें से लगभग सभी किसी न किसी तरह से मानवजनित प्रभाओं का असर देखा जा सकता है।
अंटार्कटिका की समुद्री बर्फ के पीछे हटने से नए क्षेत्र जहाजों के पहुंचने योग्य हो जाएंगे और शोधकर्ताओं का कहना है कि कमजोर स्थानों की सुरक्षा के लिए सावधानीपूर्वक प्रबंधन की आवश्यकता होगी।
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और यूरोपीय आयोग कॉपरनिकस सेंटिनल उपग्रह पूरे अंटार्कटिक क्षेत्र और दक्षिणी महासागर की नियमित निगरानी के लिए एक आवश्यक उपकरण हैं।
इन आंकड़ों का उपयोग असाधारण रूप से बढ़िया रिज़ॉल्यूशन पर बर्फ की गति, समुद्री बर्फ की मोटाई और बर्फ के नुकसान को मापने के लिए किया जा सकता है। यह अध्ययन फ्रंटियर्स इन एनवायर्नमेंटल साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।