जलवायु परिवर्तन के चलते तेल और गैस के करीब 40 फीसदी भंडारों पर खतरा मंडरा रहा है। यह जानकारी बिज़नेस रिस्क का आंकलन करने वाली कंपनी वेरिस्क मेपलक्रॉफ्ट द्वारा साझा की गई जानकारी में सामने आई है।
विश्लेषण के अनुसार इन तेल और गैस भण्डार की कुल क्षमता 60,000 करोड़ बैरल से भी ज्यादा है जो बार-बार आने वाले तूफानों, बाढ़, समुद्र के बढ़ते जलस्तर और चरम तापमान के चलते उच्च या अत्यधिक जोखिम का सामना कर रहे हैं।
इतना ही नहीं वेरिस्क मेपलक्रॉफ्ट द्वारा जारी जलवायु परिवर्तन एक्सपोजर इंडेक्स के मुताबिक सऊदी अरब, इराक और नाइजीरिया उन प्रमुख तेल और गैस उत्पादक देशों में से हैं जहां जलवायु संबंधी घटनाओं का जोखिम बड़े पैमाने पर वैश्विक बाजार में तेल की उपलब्धता को प्रभावित कर रहा है। देखा जाए तो इन तीनों देशों में वाणिज्यिक रूप से तेल और गैस की लगभग हिस्सेदारी करीब 19 फीसदी है।
गौरतलब है कि पहले ही जलवायु सम्बन्धी आपदाएं बड़े पैमान पर तेल और गैस की आपूर्ति को बाधित करती रही हैं। ऐसे ही एक मामले इस साल टेक्सास में सामने आया था जब भारी सर्दी के चलते अमेरिकी का तेल और गैस उत्पादन तीन वर्षों के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया था। वहीं तूफान इडा के चलते मेक्सिको की खाड़ी में रिकॉर्ड 55 बार तेल के लीक होने की घटनाएं सामने आई थी, जिसके कारण कच्चे तेल और परिष्कृत उत्पाद दोनों की आपूर्ति में ऐतिहासिक रूप से व्यवधान पैदा हो गया था।
इसी तरह रूस में रिकॉर्ड गर्मी ने पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने की रफ्तार को और तेज कर दिया था, जिसके चलते उत्तरी क्षेत्रों में 40 फीसदी इमारतों और बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा था। यह क्षेत्र तेल और गैस उत्पादन पर बहुत अधिक निर्भर है।
अनुमान है कि 2050 तक जलवायु आपदाओं का यह खतरा तेल और गैस उद्योग पर कहीं अधिक बढ़ जाएगा। आंकड़ों के अनुसार एक तरफ जहां तटवर्ती क्षेत्रों में तेल और गैस सम्बन्धी गतिविधियां तूफान, लू, बाढ़, समुद्र के बढ़ते जलस्तर और चरम मौसमी घटनाओं सहित जलवायु परिवर्तन के भौतिक प्रभावों की पूरी श्रंखला का सामना करने को मजबूर हैं। वहीं दूसरी ओर अपतटीय संचालन जैसे की मैक्सिको की खाड़ी में तेल और गैस सम्बन्धी गतिविधियां उष्णकटिबंधीय चक्रवातों और बढ़ती लहरों के कारण खतरे में हैं।
तेल और गैस उद्योग के लिए कितना बड़ा है यह संकट
कुल मिलाकर, वैश्विक रूप से उपलब्ध तेल और गैस के 10.5 फीसदी भण्डार जलवायु के अत्यधित जोखिम वाले क्षेत्रों में हैं जबकि 29.5 फीसदी क्षेत्र उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में हैं। जिनकी कुल क्षमता करीब 61,700 करोड़ बैरल के बराबर है।
मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में न केवल दुनिया भर के सबसे बड़े तेल और गैस भंडार हैं, साथ ही उन भंडारों पर मंडराता जलवायु सम्बन्धी जोखिम भी सबसे ज्यादा है। सऊदी अरब की पहले ही बड़ी तेल कंपनियां उत्पादन कम करने को लेकर दबाव में हैं। ऊपर से बढ़ता गर्मी का तनाव, पानी की कमी और धूल भरी आंधियां जोखिम को और बढ़ा रही हैं। वहीं संकटग्रस्त भंडारों के मामले में अफ्रीका अनुपातिक रूप से दूसरे स्थान पर है।
अनुमान है कि नाइजीरिया के 72 फीसदी भंडार, जोकि नाइजर डेल्टा में लगभग सभी भंडारों के बराबर हैं वो उच्च या अत्यधिक जोखिम का सामना करने को मजबूर हैं। एक तरफ देश जहां बढ़ते तापमान और बारिश के पैटर्न में आते उतार-चढ़ाव का सामना कर रहा है। जिसके चलते वहां बाढ़ और सूखा दोनों का खतरा बना हुआ है।
इसका असर न केवल वहां हाइड्रोकार्बन उत्पादन पर पड़ेगा, साथी ही इसके चलते कृषि पर भी व्यापक सम्भावना पड़ने की सम्भावना है। ऐसे में इस देश की अर्थव्यवस्था पहले से ही संकट का सामना कर रहे तेल और गैस भंडारों पर कहीं ज्यादा निर्भर करेगी।
इन क्षेत्रों में तेल और गैस उद्योग से जुड़ी कंपनियां कहीं ज्यादा खतरों का सामना करने को मजबूर हैं। वहां इन कंपनियों को निष्कर्षण के लिए संभावित रूप से कहीं अधिक खर्च करना पड़ेगा, साथ ही इन आपदाओं से निपटने के लिए कहीं ज्यादा निवेश की जरुरत होगी।
यदि उष्णकटिबंधीय तूफान आते हैं तो उससे निपटने के लिए संयंत्र को अधिक सुरक्षित करना होगा या फिर तूफान और समुद्र के बढ़ते जलस्तर से निपटने के लिए बुनियादी ढांचे पर और निवेश की जरुरत होगी।
इतना ही नहीं पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील स्थानों में दुर्घटना और रिसाव का जोखिम भी बढ़ सकता है, क्योंकि पाइपलाइनों को मौसम की चरम घटनाओं को झेलने के लिए डिजाईन नहीं किया गया है ऐसे में आपदाओं की बढ़ती घटनाएं रिसाव के जोखिम को और बढ़ा देंगी।
जलवायु से जुड़ी यह घटनाएं समय के साथ और विकराल रूप लेती जा रहीं हैं, जिससे तेल और गैस उद्योग पर खतरा बढ़ता जा रहा है। ऐसे में इन जोखिमों को पहचान करना उन्हें सबके सामने लाना अब ऊर्जा कंपनियों के लिए एक रणनीतिक आवश्यकता बन गया है। देखा जाए तो यह उद्योग पहले ही जलवायु परिवर्तन को लेकर विवादों में हैं, ऊपर से जलवायु से जुड़ी आपदाएं इसके लिए संकट को और गहरा रही हैं।