सभी डॉल्फिनों में माइक्रोप्लास्टिक मिला: औसतन 286.4 टुकड़े प्रति डॉल्फिन, जो अन्य सीटासीन प्रजातियों से अधिक हैं।
अधिकतर माइक्रोप्लास्टिक रेशों के रूप में : 94.76 फीसदी, मुख्यतः नीले या पारदर्शी रंग के और 300 माइक्रोमीटर के आकार के।
मुख्य पॉलिमर पीईटी: कुल प्लास्टिक का 58.16 फीसदी, प्लास्टिक कचरे के स्रोत में जाल, रस्सियां, बोतलें, बैग और कृषि अपशिष्ट शामिल।
स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा: डॉल्फिन में पाचन, प्रतिरक्षा तंत्र, ऑक्सीडेटिव तनाव और प्रजनन क्षमता पर बुरा प्रभाव।
तत्काल कार्रवाई जरूरी: प्लास्टिक प्रदूषण कम करने, निगरानी बढ़ाने और संरक्षण रणनीतियां अपनाने की जरूरत।
आज की दुनिया में प्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुका है। प्लास्टिक का अत्यधिक उपयोग न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि इससे जीव-जंतु और मनुष्यों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ते हैं। प्लास्टिक जब छोटे-छोटे कणों में टूट जाता है, तो उसे माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है।
ये माइक्रोप्लास्टिक नदियों, झीलों और समुद्र में फैलकर पूरे खाद्य जाल में पहुंच जाते हैं। इससे मछलियों और अन्य जलजीवों में विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे मेटाबॉलिक डिसऑर्डर, न्यूरोटॉक्सिसिटी, इम्यून टॉक्सिसिटी और विकास संबंधी विषाक्तता होना इसमें शामिल है।
सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि यह खतरा उन जीवों के लिए और अधिक गंभीर है जो पहले से ही संकटग्रस्त हैं। इंडस डॉल्फिनों को प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) ने इन्हें लाल सूची में शामिल किया है। ऐसा ही उदाहरण है इंडस नदी डॉल्फिन (प्लैटनिस्टा माइनर) का है।
यह डॉल्फिन पाकिस्तान की इंडस नदी में पाई जाती है और भारत में भी इसकी छोटी आबादी मौजूद है। इंडस नदी दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में गिनी जाती है, जिसमें प्लास्टिक कचरे की मात्रा बहुत अधिक है। इस बात की आशंका है कि इंडस नदी डॉल्फिन और उनकी शिकार मछलियां इस प्लास्टिक को निगलती हैं।
हाल ही में शोधकर्ताओं ने इंडस नदी डॉल्फिन के गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट (जीआईटी) का विश्लेषण किया। उन्होंने 2019 से 2022 के बीच पांच मृत डॉल्फिनों का अध्ययन किया। यह पहला अध्ययन है जिसमें इस प्रजाति में माइक्रोप्लास्टिक के स्तर का पता लगाया गया। इस अध्ययन को प्लोस वन नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
कैसे किया गया अध्ययन?
वैज्ञानिकों ने डॉल्फिन के गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट (जीआईटी) से माइक्रोप्लास्टिक निकाले और उन्हें आकार, रंग, आकार और पॉलिमर के प्रकार के आधार पर वर्गीकृत किया। इसके लिए एफटी-आईआर स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीक का इस्तेमाल किया गया। इसके साथ ही उन्होंने पॉलिमर हैजर्ड इंडेक्स (एच) भी निकाला, जिससे यह पता लगाया जा सके कि डॉल्फिनों के लिए कितना खतरा है।
क्या कहते हैं निष्कर्ष?
सभी पांच डॉल्फिनों में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी पाई गई, औसतन 286.4±109.1 टुकड़े प्रति डॉल्फिन। यह आंकड़ा अन्य सीटासीन प्रजातियों की तुलना में अधिक है।
94.76 फीसदी माइक्रोप्लास्टिक रेशों के रूप में थे, जिनका रंग ज्यादातर नीला या पारदर्शी था। आकार पांच मिमी से 300 माइक्रोमीटर के बीच था।
पॉलीएथिलीन टेरिफ्थेलैट (पीईटी) सबसे अधिक पाया गया, जो कुल प्लास्टिक का 58.16 फीसदी था।
प्लास्टिक का स्तर डॉल्फिनों के लिए मध्यम से उच्च पारिस्थितिक खतरों को दर्शाता है।
अध्ययन से पता चला कि यह प्लास्टिक मुख्यतः मछली पकड़ने के जाल, प्लास्टिक की रस्सियां, बोतलें, बैग और कृषि के कचरे से आता है। शोध में यह भी दिखाया गया कि डॉल्फिनों की शिकार मछलियों में वही पॉलिमर पाए गए, जिससे पता चलता है कि माइक्रोप्लास्टिक खाद्य जाल के माध्यम से ऊपर की ओर संचरित होते हैं। यानी डॉल्फिन इन्हें अपनी डाइट के माध्यम से ग्रहण कर रहे हैं।
स्वास्थ्य पर असर
डॉल्फिन द्वारा लगातार पीईटी, पीवीसी और पीई जैसे प्लास्टिक निगलने से उनके स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं। इसमें पाचन तंत्र में समस्याएं, ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस, प्रतिरक्षा तंत्र की कमजोरी तथा प्रजनन क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ना शामिल है।
साथ ही प्लास्टिक में मौजूद बिस्फेनोल और फ्थेलेट्स जैसे रसायन हार्मोन प्रणाली को प्रभावित कर सकते हैं। यह सभी प्रभाव मिलकर इंडस नदी डॉल्फिन की जीवन क्षमता, स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता को गंभीर खतरे में डालते हैं।
क्या है संरक्षण और समाधान
अध्ययन में यह स्पष्ट कहा गया है कि प्लास्टिक का अत्यधिक उपयोग और पर्यावरण में इसकी उपस्थिति डॉल्फिनों और अन्य जलीय जीवों के लिए बहुत बड़ा खतरा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके लिए त्वरित कदम उठाना जरूरी है। कुछ सुझाव इस प्रकार हैं:
प्लास्टिक प्रदूषण को कम करना: प्लास्टिक का उपयोग घटाना और रीसाइक्लिंग बढ़ाना।
नदियों और तटीय क्षेत्रों की निगरानी: प्लास्टिक कचरे की मात्रा पर नजर रखना।
संरक्षण और प्रबंधन रणनीतियां: डॉल्फिन और उनके पर्यावरण की सुरक्षा के लिए विशेष योजनाएं बनाना।
सार्वजनिक जागरूकता: लोगों को प्लास्टिक प्रदूषण के खतरों के बारे में शिक्षित करना।
इंडस नदी डॉल्फिन जैसे संकटग्रस्त प्राणी पहले ही खतरे में हैं। माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण उनके स्वास्थ्य और जीवन के लिए गंभीर खतरा है। अध्ययन से पता चलता है कि प्लास्टिक कचरे को कम करना केवल मानव हित में नहीं, बल्कि प्रकृति और संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई, तो नदियों और उनके निवासियों का अस्तित्व गंभीर संकट में पड़ सकता है।