किसानों को वित्तीय सेवाओं, बेहतर बुनियादी ढांचे और विश्वसनीय मौसम के आंकड़ों तक पहुंच की जरूरत है और सही निर्णय लेने के लिए रूपरेखा तैयार करने में बड़ी भूमिका की जरूरत है। फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स
जलवायु

किसानों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए फसल बीमा सहित कई चीजों की जरूरत

जलवायु परिवर्तन से निपटने में छोटे किसानों की क्षमता को समझने के लिए भारत, नेपाल और बांग्लादेश में 633 कृषक परिवारों के साथ घरेलू सर्वेक्षण और साक्षात्कार किए गए।

Dayanidhi

दक्षिण एशिया में खेती पहले से ही जलवायु परिवर्तन के कठोर प्रभावों का सामना कर रही है। बढ़ता तापमान और अनियमित बारिश विशेष रूप से नेपाल, भारत और बांग्लादेश में कृषि को बद से बदतर बना रही है। इन देशों में आधी से ज्यादा आबादी अपनी आजीविका के लिए खेती पर निर्भर है।

अप्रत्याशित मौसम का पैटर्न और फसल उत्पादन में लगातार गिरावट के साथ, प्रभावी जलवायु अनुकूलन की जरूरत अहम है। हालांकि सीमित संसाधनों के साथ दूरदराज के इलाकों में रहने वाले छोटे किसान इन चुनौतियों का सामना करने में सबसे कम सक्षम हैं। यह समझना कि जलवायु के अनुकूल होने की उनकी क्षमता कैसे बढ़ सकती है, ऐसी नीतियां विकसित करने के लिए जरूरी है जो उनकी आजीविका की रक्षा करें और क्षेत्रीय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करें।

यह शोध त्रिभुवन विश्वविद्यालय, चीनी विज्ञान अकादमी और अन्य क्षेत्रीय संस्थानों के शोधकर्ताओं ने नेपाल, भारत और बांग्लादेश में छोटे किसानों की जलवायु अनुकूलन क्षमता को आकार देने वाली चीजों की जांच-पड़ताल की है।

शोध में इन तीन देशों के किसानों द्वारा जलवायु परिवर्तन से निपटने के तरीकों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। शोध के निष्कर्ष दक्षिण एशिया में प्रभावी जलवायु के लचीलापन की रणनीति बनाने के लिए नीति निर्माताओं के लिए अहम जानकारी प्रदान करते हैं।

शोध में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन करने की छोटे किसानों की क्षमता को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने नेपाल, भारत और बांग्लादेश में 633 कृषक परिवारों के साथ घरेलू सर्वेक्षण और साक्षात्कार किए। मुख्य चीजों का विश्लेषण करते हुए, उन्होंने आठ मुख्य कारणों (पीएफ) की पहचान की जो तीनों देशों में अनुकूलन की क्षमता में कमी के बारे में बताता है।

नेपाल में अनुकूलन की क्षमता भूमि जोत के आकार, कौशल-विकास प्रशिक्षण में भागीदारी, उन्नत बीज किस्मों की जानकारी और सामाजिक नेटवर्क जैसे कारणों से प्रभावित पाया गया। भारत में फसल बीमा, कृषि पर होने वाले खर्च की जानकारी और रोपाई कार्यक्रम को बदलना प्रमुख था। वहीं, बांग्लादेश के किसानों ने वित्तीय संस्थानों, सामुदायिक समर्थन और भरोसेमंद मौसम पूर्वानुमानों तक पहुंच होने पर अधिक लचीलापन दिखाया।

सभी देशों में समय पर और विश्वसनीय मौसम के आंकड़ों तक सीमित पहुंच, अपर्याप्त बुनियादी ढांचा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों में कम भागीदारी जैसी बाधाएं आम थी। जबकि बांग्लादेश और नेपाल में लगभग 90 फीसदी किसानों ने बुरे जलवायु प्रभावों के अनुभव साझा किए। कुछ के पास प्रभावी ढंग से जवाब देने के लिए आवश्यक संसाधनों तक पहुंच थी।

जो किसानों अपने आय के स्रोतों में विविधता लाए या जिन्होंने अलग-अलग स्रोतों से धन प्राप्त किया, उन्होंने अधिक लचीलापन दिखाया, जिससे जलवायु तनाव के प्रबंधन में वित्तीय सुरक्षा और लचीलेपन के महत्व पर प्रकाश डाला गया।

शोध के निष्कर्ष सही नीतियों की जरूरत की ओर इशारा करते हैं जो विशेष तरह की बाधाओं को हल करती हैं, जैसे कि वित्तीय पहुंच में सुधार और जलवायु के प्रति लचीली कृषि के लिए संसाधनों की उपलब्धता को बढ़ाना आदि।

जर्नल ऑफ जियोग्राफिकल साइंसेज में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि किसानों के जलवायु के अनुकूलन प्रयासों के व्यापक सामाजिक-आर्थिक संदर्भों को समझने के महत्व पर जोर दिया जाना चहिए। यह अध्ययन दिखाता है कि अनुकूलन केवल संसाधनों तक पहुंच के बारे में नहीं है, यह उन नेटवर्क और प्रणालियों के बारे में है जो किसानों को उन संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने में मदद करते हैं।

शोध पत्र में शोधकर्ता का कहना है कि यह स्पष्ट है कि किसानों को तकनीकी ज्ञान से कहीं ज्यादा की जरूरत है। उन्हें वित्तीय सेवाओं, बेहतर बुनियादी ढांचे और विश्वसनीय मौसम के आंकड़ों तक पहुंच की जरूरत है और सही निर्णय लेने के लिए रूपरेखा तैयार करने में बड़ी भूमिका की जरूरत है। इन निष्कर्षों को लचीलापन बढ़ाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय और क्षेत्रीय नीतियों का मार्गदर्शन करना चाहिए।

इस शोध से मिली जानकारी स्थानीय और राष्ट्रीय नीति निर्माताओं दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। किसानों के जलवायु लचीलेपन को मजबूत करने के लिए, सरकारों को फसल बीमा सहित वित्तीय सेवाओं तक पहुंच में सुधार को प्राथमिकता देनी चाहिए। बेहतर बुनियादी ढांचा, खास तौर पर सड़कें और मौसम केंद्र सुनिश्चित करने चाहिए।

प्रभावी निर्णय लेने के लिए किसानों को समय पर, मौसम के सटीक आंकड़े प्रदान करना जरूरी है, जबकि कृषि विस्तार सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने से जलवायु के प्रति लचीली खेती के तरीकों के बारे में जानकारी बढ़ सकती है।

इसके अलावा ग्रामीण विकास कार्यक्रमों और धन दने की प्रणालियों के माध्यम से आय का समर्थन करने से जलवायु के प्रभावों को कम करने में मदद मिल सकती है। आखिर में इन प्रणालीगत बाधाओं से निपटने के लिए किसानों को बदलती जलवायु के अनुकूल होने और बढ़ती अनिश्चितता के सामने अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए सशक्त बनाने की जरूरत पड़ेगी।