पर्वतीय इलाकों में तेजी से तापमान वृद्धि: पर्वतों का तापमान निचले इलाकों की तुलना में 0.21 इलाकों प्रति दशक अधिक बढ़ रहा है।
बारिश और हिमपात में बदलाव: बर्फबारी कम और बारिश अधिक हो रही है, जिससे बाढ़ और मौसमीय अस्थिरता बढ़ रही है।
मानव जीवन पर गंभीर प्रभाव : अरबों लोग पर्वतीय ग्लेशियर और बर्फ से मिलने वाले पानी पर निर्भर हैं।
पारिस्थितिकी तंत्र पर खतरा : जानवर और पेड़ ऊंचाई की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन सीमित ऊंचाई के कारण प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं।
आंकड़ों की कमी और भविष्य की चुनौतियां: पर्वतीय क्षेत्रों में मौसम स्टेशन कम हैं, बेहतर निगरानी और सटीक मॉडल की जरूरत है।
दुनिया के पर्वतीय क्षेत्र आज जलवायु परिवर्तन की तीव्र चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। हाल ही में नेचर रिव्यूज अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित एक वैश्विक अध्ययन में यह पता चला है कि पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यावरणीय बदलाव निचले इलाकों की तुलना में कहीं अधिक तेजी से हो रहे हैं। वैज्ञानिक इस घटना को "ऊंचाई-निर्भर जलवायु परिवर्तन" (एलिवेशन-डिपेंडेंट क्लाइमेट चेंज, ईडीसीसी) कहते हैं।
यह अध्ययन दुनिया भर के पर्वतों के तापमान, बारिश और हिमपात के पैटर्न में होने वाले बदलाव का सबसे व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत करता है। अध्ययन की अगुवाई यूनिवर्सिटी ऑफ पोर्ट्समाउथ के शोधकर्ताओं ने किया। शोध में विभिन्न आंकड़ों के स्रोतों और विशेष पर्वतीय क्षेत्रों जैसे रॉकी माउंटेन, आल्प्स, एंडीज और तिब्बती पठार के मामलों के अध्ययन का विश्लेषण किया।
क्या कहता है अध्ययन?
1980 से 2020 तक के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर कुछ चिंताजनक रुझान सामने आए हैं:
तापमान में वृद्धि: पर्वतीय क्षेत्रों का तापमान औसतन आसपास के निचले क्षेत्रों से 0.21 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक अधिक बढ़ रहा है।
बारिश और बर्फबारी में बदलाव: पहाड़ों में बारिश की अनियमितता बढ़ रही है और पहले जो हिमपात होता था, अब वह कई स्थानों पर बारिश में बदल रहा है।
पर्वतीय और आर्कटिक क्षेत्रों में समानताएं: अध्ययन के अनुसार, पर्वत और आर्कटिक दोनों ही क्षेत्रों में बर्फ के तेजी से पिघलने की प्रक्रिया चल रही है। यही कारण है कि इन क्षेत्रों के पारिस्थितिकी तंत्र में गंभीर बदलाव देखे जा रहे हैं।
मानव जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव
पर्वतीय जलवायु परिवर्तन केवल पर्वतीय समुदायों तक ही सीमित नहीं है। एक अरब से अधिक लोग दुनिया भर में पर्वतीय बर्फ और ग्लेशियर से मिलने वाले पानी पर निर्भर हैं। उदाहरण के लिए, हिमालय से बहने वाले जल स्रोत चीन और भारत जैसे बड़े देशों की आबादी के लिए अहम हैं।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि हिमालय की बर्फ पहले की तुलना में अधिक तेजी से घट रही है। जब बर्फबारी बारिश में बदलती है, तो बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। इससे प्राकृतिक आपदाएं और भी गंभीर हो सकती हैं।
सिर्फ मानव ही प्रभावित नहीं हो रहे। तापमान बढ़ने के साथ ही पेड़-पौधे और जानवर ठंडी जलवायु की तलाश में ऊंचाई की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन कुछ मामलों में वे पर्वत की चोटी तक पहुंचकर रुक जाते हैं। इससे प्रजातियां विलुप्त होने और पारिस्थितिकी तंत्र में स्थायी परिवर्तन का खतरा बढ़ जाता है।
हाल के उदाहरण में पाकिस्तान का यह साल शामिल है, जब अत्यधिक मानसूनी बारिश और बादल फटने (क्लाउडबर्स्ट) के कारण 1,000 से अधिक लोगों की मौत हुई। यह पर्वतीय क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को दर्शाता है।
प्रगति, चुनौतियां और भविष्य की जरूरतें
यह अध्ययन टीम के 2015 के शोध का विस्तार है, जिसमें पहली बार यह साबित हुआ था कि पर्वत भारी ऊंचाई पर तेजी से गर्म हो रहे हैं। उस समय प्रमुख कारणों के रूप में बर्फ और ग्लेशयरों का क्षरण, वायुमंडलीय नमी में वृद्धि और एयरोसोल प्रदूषण पहचाने गए थे।
अब, दस साल बाद वैज्ञानिकों ने यह समझा है कि परिवर्तन के नियंत्रण और प्रभाव को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है, लेकिन मूल समस्या वैसी की वैसी बनी हुई है।
एक बड़ी चुनौती पर्वतीय क्षेत्रों में मौसम का आंकड़ा हासिल करना है। शोध के अनुसार, पर्वत कठिन, दूरस्थ और पहुंचने में मुश्किल जगह हैं। इसलिए वहां मौसम और जलवायु स्टेशन बनाए रखना चुनौतीपूर्ण है। आंकड़ों की कमी के कारण वैज्ञानिकों को वास्तविक तापमान और बर्फ की कमी का अनुमान कम हो सकता है।
साथ ही, कंप्यूटर मॉडल्स को भी उच्च सटीकता वाली तकनीक की आवश्यकता है। अधिकांश वर्तमान मॉडल केवल कुछ किलोमीटर की दूरी पर बदलाव को ट्रैक कर पाते हैं, जबकि पर्वत में ढलानों के बीच जलवायु में मामूली दूरी पर भी भारी अंतर हो सकता है।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि कंप्यूटर मॉडल बेहतर हो रहे हैं, लेकिन केवल तकनीक से समस्या का समाधान नहीं होगा। जलवायु प्रतिबद्धताओं को तुरंत लागू करने और पर्वतीय क्षेत्रों में निगरानी और अवसंरचना को सुधारने की जरूरत है।
पर्वतीय क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन तेजी से हो रहा है और इसका प्रभाव न केवल स्थानीय बल्कि वैश्विक स्तर पर महसूस किया जा रहा है। बर्फ और ग्लेशियर का तेजी से पिघलना, बारिश के पैटर्न में बदलाव और पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन इसके इशारे हैं।
इन समस्याओं से निपटने के लिए बेहतर आंकड़ों, तकनीकी सुधार और जलवायु प्रतिबद्धताओं का पालन आवश्यक है। पर्वत केवल प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यटन के लिए महत्वपूर्ण नहीं हैं, बल्कि अरबों लोगों के जल और जीवन के लिए भी उनका महत्व अति आवश्यक है।
हमारा भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि हम इन संकटों की गंभीरता को समझें और समय रहते कदम उठाएं। पर्वत हमारी चेतावनी दे रहे हैं, हमें सुनना होगा और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी।