शोधकर्ताओं ने पृथ्वी पर मानव दबाव को मापने और समझने के लिए एक नया नजरिया पेश किया है। उन्होंने पता लगाया कि कैसे कार्बन उत्सर्जन को "तनाव" और "खिंचाव" के उपायों में बदला जा सकता है ताकि धरती कैसे बदल रही है, इस बारे में नई जानकारी हासिल की जा सके। इस शोध की अगुवाई इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस (आईआईएएसए) और यूक्रेन के लविव पॉलिटेक्निक नेशनल यूनिवर्सिटी द्वारा की गई है।
शोध पत्र में आईआईएएसए के शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि अब तक वैज्ञानिक समुदाय ने मुख्य रूप से पृथ्वी पर कार्बन को सालाना गीगाटन में मापा है। यह जरूरी है लेकिन यह नहीं दिखाता है कि एक भौतिक प्रणाली के रूप में पृथ्वी उस बढ़ते दबाव पर कैसे प्रतिक्रिया करती है जो हम उस पर डाल रहे हैं। हम यह देखना चाहते थे कि उस बोझ के नीचे पूरी पृथ्वी प्रणाली कैसे फैलती और खिंचती है।
शोध के मुख्य निष्कर्षों में से एक तनाव शक्ति का परिणाम है, जो वह दर है जिस पर मनुष्य पृथ्वी की प्रणाली में प्रति आयतन ऊर्जा जोड़ रहे हैं। 2021 में, यह तनाव शक्ति सालाना 12.8 से 15.5 पास्कल के बीच पहुंच गई।
हालांकि यह दबाव छोटा लग सकता है, जो पूरे वायुमंडल, भूमि और महासागरों में फैला हुआ है, यह संकेत देने के लिए पर्याप्त है कि पृथ्वी की प्रणाली अपने प्राकृतिक संतुलन से बाहर धकेली जा सकती है। तुलना के लिए तनाव और तनाव शक्ति दोनों एक संतुलित पृथ्वी के लिए शून्य के आसपास केंद्रित हैं जो मानवजनित ग्लोबल वार्मिंग के संपर्क में नहीं है।
शोधकर्ताओं ने पृथ्वी के "ठहरी हुई अवधि" में समय के साथ होने वाले बदलावों का भी विश्लेषण किया, जो बताता है कि ग्रह की कार्बन प्रणाली तनाव पर कितनी जल्दी प्रतिक्रिया करती है। 1925 से 1945 के बीच एक मोड़ की पहचान की, जो यह सुझाव देता है कि पृथ्वी की प्रणाली ने तनाव के प्रति अपनी प्रतिक्रिया को पहले से कहीं पहले बदलना शुरू कर दिया था।
यह शुरुआती मोड़ अप्रत्याशित था। इससे पता चलता है कि भूमि और महासागर 20वीं सदी के पहले भाग में ही अपने सामान्य पैटर्न से बदलना शुरू कर सकते हैं। उसके बाद, पहले की तरह काम करने के बजाय, ये प्रणालियां मानवीय गतिविधियों से लगातार शामिल होती गई और आखिर में सीओ2 को प्रभावी ढंग से अवशोषित करना बंद कर दिया।
इसका मतलब यह हो सकता है कि देशों को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती करने के लिए योजना से पहले ही काम करना होगा।
साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि भविष्य के उत्सर्जन लक्ष्यों को पूरा करना जरूरी है, लेकिन हमें इस बात पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि पृथ्वी कितनी तेजी से कमजोर पड़ती जा रही है।
भले ही हम अपने लक्ष्यों को हासिल कर लें, लेकिन पृथ्वी की प्राकृतिक प्रणालियों के कमजोर होने से हमें उम्मीद से पहले ही बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। पृथ्वी की कमजोरी की ओर पहले से हो रहे बदलाव को अभी तक जलवायु मॉडल में नहीं दर्शाया गया है, लेकिन इसे दर्शाया जाना चाहिए।
शोध के मुताबिक, टीम ने इस बदलाव को मापने के लिए और अधिक शोध करने की आवश्यकता जताई है और वैश्विक जलवायु मॉडलिंग में अपने तनाव संबंधी नजरिए को शामिल करने की मांग की गई है।
शोधकर्ताओं ने उम्मीद जताई है कि वैज्ञानिकों द्वारा पृथ्वी की स्थिति पर नजर बनाए रखने के तरीके को केवल कार्बन की गणना से लेकर यह समझने तक कि धरती दबाव में किस तरह प्रतिक्रिया करती है, दुनिया आगे आने वाली चुनौतियों के लिए बेहतर तरीके से तैयार हो सकती है।