प्राकृतिक सुरक्षा उपाय: कैरोब के पत्तों और अनार के छिलकों से बने अर्क जैतून के पेड़ों में एन्थ्रेक्नोज रोग के खिलाफ प्रभावी पाए गए हैं। फोटो साभार: आईस्टॉक
कृषि

जैतून के पेड़ों के लिए नई उम्मीद: कैरोब और अनार के अर्क से एन्थ्रेक्नोज रोग पर काबू संभव

कैरोब और अनार के प्राकृतिक अर्क जैतून के पेड़ों में एन्थ्रेक्नोज रोग से बचाव के लिए पर्यावरण के अनुकूल विकल्प के रूप में उभरे।

Dayanidhi

  • प्राकृतिक सुरक्षा उपाय: कैरोब के पत्तों और अनार के छिलकों से बने अर्क जैतून के पेड़ों में एन्थ्रेक्नोज रोग के खिलाफ प्रभावी पाए गए हैं।

  • फफूंद की वृद्धि पर रोक: इन अर्कों ने कोलेटोट्राइकम फफूंद के बीजाणु बनने, अंकुरित होने और संक्रमण शुरू करने की प्रक्रिया को बाधित किया।

  • पौधे की प्राकृतिक प्रतिरक्षा सक्रिय: खासकर कैरोब अर्क ने जैतून के पौधों में एंटीऑक्सीडेंट एंजाइमों और फिनोलिक यौगिकों का उत्पादन बढ़ाया, जिससे उनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हुई।

  • प्रयोगशाला में 35 फीसदी तक रोग नियंत्रण: नियंत्रित वातावरण में किए गए परीक्षणों में कैरोब पत्तियों के अर्क ने रोग की गंभीरता को लगभग 35 फीसदी तक कम किया।

  • सतत और पर्यावरण-अनुकूल समाधान: यह शोध रासायनिक फफूंदनाशकों के स्थान पर कृषि के कचरे से बने प्राकृतिक जैविक उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देता है, जिससे बायो-सर्कुलर इकोनॉमी को समर्थन मिलता है।

भूमध्यसागरीय देशों में जैतून की खेती एक प्रमुख आर्थिक गतिविधि है, लेकिन यह फसल लंबे समय से एक गंभीर बीमारी 'एन्थ्रेक्नोज' से प्रभावित होती आ रही है। संक्रमित फलों की सतह चिकनी और तैलीय हो जाती है, जिसके कारण इस रोग को स्थानीय स्तर पर “सोपी ऑलिव” यानी “साबुन जैसी जैतून” कहा जाता है। यह बीमारी न केवल पैदावार को घटाती है बल्कि जैतून के तेल की गुणवत्ता पर भी गहरा असर डालती है।

रोग का कारण और नुकसान

यह रोग कोलेटोट्राइकम नामक फफूंद के कारण होता है, जो फलों और पत्तियों दोनों पर हमला करता है। इससे फलों में सड़न आने लगती है और वे समय से पहले गिर जाते हैं। गंभीर संक्रमण के मामलों में उत्पादन में 60 से 80 प्रतिशत तक की कमी देखी गई है।

अब तक किसान मुख्य रूप से कॉपर (तांबा) आधारित रासायनिक फफूंदनाशकों का उपयोग करते रहे हैं, लेकिन पर्यावरण पर इनके दुष्प्रभावों और यूरोपीय संघ के सख्त नियमों के कारण इनका उपयोग धीरे-धीरे सीमित किया जा रहा है।

शोध में मिला नया समाधान

इसी चुनौती से निपटने के लिए स्पेन के यूनिवर्सिटी ऑफ कॉर्डोबा और पुर्तगाल के पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रागांसा के वैज्ञानिकों ने एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन किया है।

अध्ययन में पाया गया कि कैरोब के पत्तों और अनार के छिलकों से तैयार किए गए पौधों के अर्क (एक्सट्रैक्ट्स) एन्थ्रेक्नोज रोग को नियंत्रित करने में मददगार साबित हो सकते हैं।

ये दोनों पदार्थ अब तक खाद्य उद्योग और कृषि प्रसंस्करण से उत्पन्न “कचरा” माने जाते थे। लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि इन्हें जैविक सुरक्षाकर्मी के रूप में उपयोग कर पर्यावरण के अनुकूल कृषि को बढ़ावा दिया जा सकता है। इससे बायो-सर्कुलर इकोनॉमी को भी प्रोत्साहन मिलेगा, यानी कचरे को दोबारा उपयोग में लाकर मूल्यवान उत्पाद में बदलना।

कैसे काम करते हैं ये अर्क

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि इन दोनों प्राकृतिक अर्कों ने फफूंद की वृद्धि पर गहरा असर डाला। इन अर्कों ने फफूंद के बीजाणु बनने और अंकुरित होने की प्रक्रिया को बाधित किया।

साथ ही, उन्होंने एप्रेसोरिया नामक संरचना के निर्माण को भी रोका, जो फफूंद को पौधे की सतह पर चिपकने और संक्रमण शुरू करने में मदद करती है।

वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि जब इन अर्कों को रोकथाम के रूप में पत्तियों पर छिड़का गया, तो पौधे की प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली सक्रिय हो गई। विशेष रूप से कैरोब के अर्क ने जैतून के पौधों में एंटीऑक्सीडेंट एंजाइमों और फिनोलिक यौगिकों के स्तर को बढ़ाया, जो पौधों को फफूंद के संक्रमण से लड़ने की क्षमता देते हैं।

प्रयोग और परिणाम

अध्ययन प्रयोगशाला और नियंत्रित वातावरण वाले कक्षों में किया गया। वैज्ञानिकों ने जैतून के फलों और पौधों दोनों पर परीक्षण किए। परिणामों से पता चला कि कैरोब पत्तियों का अर्क रोग की गंभीरता को लगभग 35 प्रतिशत तक घटाने में सक्षम रहा।

यूनिवर्सिटी ऑफ कॉर्डोबा के शोधकर्ता के अनुसार, हालांकि यह प्रभाव कॉपर-आधारित फफूंदनाशक जितना नहीं है, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण कदम है। भविष्य में इन अर्कों की प्रभावशीलता बढ़ाने और व्यावहारिक उपयोग के लिए यह एक ठोस आधार प्रदान करता है।

आगे की राह

शोध में कहा गया है कि शोधकर्ता अब इन अर्कों को खेतों में वास्तविक परिस्थितियों में परखने की तैयारी कर रहे हैं, क्योंकि प्रयोगशाला की तुलना में खेतों में मौसम, तापमान और अन्य सूक्ष्मजीवों जैसे कई कारक प्रभाव डालते हैं। अगर फील्ड परीक्षण भी सफल रहते हैं, तो यह तकनीक जैतून उत्पादकों के लिए एक बड़ा बदलाव ला सकती है, जिससे फफूंदनाशकों का उपयोग घटेगा और पर्यावरणीय प्रभाव भी कम होगा।

यह अध्ययन जर्नल इंडस्ट्रियल क्रॉप्स एंड प्रोडक्ट्स में प्रकाशित किया गया है, जो बताता है कि प्रकृति में ही रोग नियंत्रण के टिकाऊ उपाय छिपे हैं। कैरोब और अनार जैसे पौधों से हासिल किए गए प्राकृतिक अर्क न केवल जैतून की फसल को सुरक्षित रख सकते हैं, बल्कि पर्यावरण की रक्षा और कृषि के कचरे के दोबारा उपयोग को भी बढ़ावा देंगे।

यदि आने वाले सालों में यह तकनीक खेतों में सफल होती है, तो यह जैतून उद्योग के लिए एक हरित क्रांति (ग्रीन रेवोलुशन) का संकेत बन सकती है।