इस पौधे से होगा टाइप-टू मधुमेह के मरीजों का उपचार, भारतीय वैज्ञानिकों ने खोजा तरीका

शोधकर्ताओं ने टाइप-टू मधुमेह से संबंधित इंसुलिन प्रतिरोध के प्रबंधन में पारंपरिक औषधीय पौधे सुबबूल के बीज की उपचार करने की क्षमता की पहचान की है, इसकी मदद से चार सक्रिय यौगिक विकसित किए गए हैं।
सुबबूल या ल्यूकेना ल्यूकोसेफाला (लैम.) डी विट एक तेजी से बढ़ने वाला फलदार पेड़ है जो आमतौर पर उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय इलाकों में पाया जाता है।
सुबबूल या ल्यूकेना ल्यूकोसेफाला (लैम.) डी विट एक तेजी से बढ़ने वाला फलदार पेड़ है जो आमतौर पर उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय इलाकों में पाया जाता है। फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, കാക്കര
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भारतीय शोधकर्ताओं ने टाइप-टू मधुमेह से संबंधित इंसुलिन प्रतिरोध के प्रबंधन में पारंपरिक औषधीय पौधे सुबबूल के बीज की उपचार करने की क्षमता की पहचान की है, इसकी मदद से चार सक्रिय यौगिक विकसित किए गए हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, भारत में 18 साल से अधिक आयु के 7.7 करोड़ लोग मधुमेह (टाइप टू) से पीड़ित हैं और लगभग 2.5 करोड़ प्रीडायबिटिक हैं, निकट भविष्य में मधुमेह के मामलों के बढ़ने का भारी खतरा है।

50 फीसदी से अधिक लोग अपनी मधुमेह स्थिति से अनजान हैं, जिसके कारण यदि समय रहते इसका पता न लगाया जाए और उपचार न किया जाए तो स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएं हो सकती हैं।

मधुमेह से पीड़ित वयस्कों में दिल के दौरे और स्ट्रोक का खतरा दो से तीन गुना बढ़ जाता है। पैरों में रक्त प्रवाह में कमी के साथ, न्यूरोपैथी (तंत्रिका क्षति) पैरों में अल्सर, संक्रमण और आखिरकार शरीर के उस हिस्से को अलग करने के आसार बढ़ जाते हैं।

मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी अंधेपन का एक बड़ा कारण है और यह रेटिना में छोटी रक्त वाहिकाओं को लंबे समय तक नुकसान के कारण होता है। मधुमेह गुर्दे की विफलता के प्रमुख कारणों में से एक है। इसलिए मधुमेह की नई-नई दवाओं की जरूरत हमेशा बनी रहती है।

सुबबूल या ल्यूकेना ल्यूकोसेफाला (लैम.) डी विट एक तेजी से बढ़ने वाला फलदार पेड़ है जो आमतौर पर उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय इलाकों में पाया जाता है। पत्तियों और बीजों को सूप या सलाद के रूप में कच्चा और पकाकर खाया जाता है, जो प्रोटीन और फाइबर का एक समृद्ध स्रोत है, जिसके कारण विभिन्न जातीय समुदायों द्वारा लोगों और पशुओं के भोजन में इसका पारंपरिक उपयोग किया जाता है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान, गुवाहाटी के इंस्टीटूट ऑफ एडवांस स्टडी इन साइंस एंड टेक्नोलॉजी (आईएएसएसटी) के सीबीएल-प्रथम में शोधकर्ताओं ने टाइप-टू मधुमेह से संबंधित इंसुलिन प्रतिरोध के प्रबंधन में पारंपरिक औषधीय पौधे सुबाबुल के बीज के उचार क्षमता की जांच-पड़ताल की।

शोधकर्ताओं की टीम ने सभी हिस्सों की जैव गतिविधि के लिए जांच करने के बाद सबसे सक्रिय हिस्से का चयन करके एक जैव-गतिविधि निर्देशित हिस्से और चार सक्रिय यौगिक विकसित किए हैं।

बायोएक्टिव हिस्से ने फैटी एसिड और कंकाल की मांसपेशी की कोशिकाओं (सी2सी12) में इंसुलिन की संवेदनशीलता को बढ़ाया। इसके अलावा पौधे से अलग किए गए सक्रिय यौगिक क्वेरसेटिन-तीन -ग्लूकोसाइड ने माइटोकॉन्ड्रियल डीएसेटाइलेज एंजाइम सिर्टुइन एक (एसआईआरटी1) को बढ़ाया, जो ग्लूट 2, एक प्रोटीन जो कोशिका झिल्ली में ग्लूकोज और फ्रुक्टोज को स्थानांतरित करने में मदद करता है, साथ ही यह इंसुलिन संवेदनशीलता को नियंत्रित करता है।

शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से बताया कि आणविक अध्ययनों के दौरान हाइड्रोजन बॉन्ड के निर्माण के माध्यम से एसआईआरटीआई अवशेषों के साथ क्वेरसेटिन-तीन-ग्लूकोसाइड की स्थिर आंतरिक क्रिया भी देखी गई।

जर्नल एसीएस ओमेगा में प्रकाशित अध्ययन ने मधुमेह और संबंधित बीमारियों के लिए पौधे के उपयोग संबंधी दावे के बाद, ग्लूकोज अवशोषण को बढ़ाने में इस पौधे की उपचार में उपयोग की क्षमता का पता चला है।

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