प्रदूषण से चिंतित दुनिया में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंची एसयूवी की बिक्री, 2023 में 48 फीसदी रही हिस्सेदारी

यह एसयूवी आम कारों से 20 फीसदी अधिक उत्सर्जन करती हैं। 2023 में इन कारों ने 100 करोड़ टन से ज्यादा उत्सर्जन किया था, जो जापान के कुल वार्षिक उत्सर्जन से भी ज्यादा है
2023 में दुनिया भर की सड़कों पर 36 करोड़ से ज्यादा एसयूवी दौड़ रही थी। इनकी वजह से 100 करोड़ टन से ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जित हुई थी; फोटो: आईस्टॉक
2023 में दुनिया भर की सड़कों पर 36 करोड़ से ज्यादा एसयूवी दौड़ रही थी। इनकी वजह से 100 करोड़ टन से ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जित हुई थी; फोटो: आईस्टॉक
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एक तरफ जहां दुनिया बढ़ते प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंतित है, वहीं दूसरी तरफ एसयूवी गाड़ियों की बिक्री रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई। यदि नवीनतम आंकड़ों पर गौर करें तो 2023 में वैश्विक स्तर पर जितनी भी कारें बेची गई, उनमें एसयूवी की हिस्सेदारी 48 फीसदी रही। यह अपने आप में एक नया रिकॉर्ड है।

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) द्वारा जारी नए विश्लेषण से पता चला है कि 2023 में दुनिया भर की सड़कों पर 36 करोड़ से ज्यादा एसयूवी दौड़ रही थी। यह इस ओर भी इशारा है कि दुनिया में बड़ी और भारी गाड़ियां कहीं ज्यादा लोकप्रिय हो रही हैं।

यदि इनकी बढ़ती मांग से जुड़े कारणों पर गौर करें तो इन एसयूवी को अब 'स्टेटस सिंबल' के रूप में देखा जाने लगा है। इनकी बढ़ती लोकप्रियता के लिए कार कम्पनियों द्वारा किए जा रहे आकर्षक विज्ञापन भी एक वजह हैं। इन विज्ञापनों में इन गाड़ियों को कहीं ज्यादा आरामदेह बताया जाता है।

यदि विकसित देशों से जुड़े आंकड़ों को देखें तो पिछले वर्ष एसयूवी की बिक्री करीब दो करोड़ पर पहुंच गई। यह पहला मौका है जब इन देशों में एसयूवी कारों ने कार बाजार पर 50 फीसदी से ज्यादा की पकड़ बना ली। कुछ ऐसी ही स्थिति विकासशील देशों की भी हैं, जहां इनकी मांग तेजी से बढ़ रही है।

दुनिया में देखें तो आज सड़क पर चलने वाली हर चौथी कार एसयूवी है। इनमें से अधिकांश गाड़ियां पेट्रोल, डीजल पर चलती हैं। वहीं सड़क पर चलने वाली महज पांच फीसदी एसयूवी इलेक्ट्रिक हैं। इसी तरह 2023 में जितनी भी इलेक्ट्रिक गाड़ियां पंजीकृत हुई, उनमें 55 फीसदी से ज्यादा एसयूवी थी। मतलब साफ है कि इलेक्ट्रिक एसयूवी कारों का भी चलन बढ़ रहा है।

लेकिन सवाल यह है कि जब यह कारें इतनी ज्यादा लोकप्रिय हो रही हैं तो विशेषज्ञ इनको लेकर चिंतित क्यों हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह इन कारों से होता प्रदूषण है जो इन कारों की संख्या में होते इजाफे के साथ तेजी से बढ़ रहा है। यह बढ़ता उत्सर्जन स्वास्थ्य के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से भी एक बड़ी चुनौती है।

आम कारों से 20 फीसदी अधिक उत्सर्जन करती हैं एसयूवी

इन एसयूवी के आकार और वजन की बात करें तो इनका औसत वजन एक मध्यम आकार की कार से 200 से 300 किलोग्राम ज्यादा होता है। इसी तरह यह अन्य कारों से करीब 0.3 वर्ग मीटर ज्यादा जगह घेरती हैं। यदि इनसे होने वाले उत्सर्जन को देखें तो आईईए के मुताबिक यह एसयूवी आम कारों से करीब 20 फीसदी अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करती हैं। इन एसयूवी की पार्किंग के लिए कहीं ज्यादा जगह की जरूरत पड़ती है। जो पहले ही कम पड़ते पार्किंग क्षेत्रों के लिए समस्या बन सकती है।

अनुमान है कि इन गाड़ियों को आम मध्यम आकार की कारों की तुलना में 10 फीसदी अधिक पार्किंग क्षेत्र की जरूरत पड़ती है। इसी तरह इन भारी भरकम गाड़ियों से पैदल चलने वालों को कहीं ज्यादा चोट लगने का जोखिम बना रहता है, क्योंकि उनके आगे के हिस्से ऊंचे होते हैं।

इन भारी और बेहद ज्यादा ईंधन खर्च करने वाली कारों के प्रति बढ़ता मोह इस ओर भी इशारा करता है कि ईंधन की भूखी इन कारों के लिए हमें पहले से कहीं ज्यादा तेल और बिजली की आवश्यकता होगी। साथ ही इनकी आवश्यकता के अनुरूप बैटरी के निर्माण के लिए धातु और खनिजों की भी कहीं ज्यादा आवश्यकता पड़ेगी।

2022-2023 से जुड़े रुझानों पर गौर करें तो दुनिया में सिर्फ एसयूवी के लिए हर दिन पहले से छह लाख बैरल अधिक तेल का इस्तेमाल किया गया। यह तेल की मांग में हर साल होने वाली कुल वृद्धि के एक चौथाई से अधिक है। जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि इन कारों के लिए तेल की मांग बड़ी तेजी से बढ़ रही है।

वैश्विक रुझानों पर नजर डालें तो 2023 में दुनिया भर की सड़कों पर 36 करोड़ से ज्यादा एसयूवी दौड़ रही थी। इनकी वजह से 100 करोड़ टन से ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जित हुई थी, जो पिछले साल की तुलना में 10 करोड़ टन अधिक है। पिछले साल ऊर्जा-संबंधी सीओ2 उत्सर्जन में 20 फीसदी की वृद्धि के लिए यही एसयूवी कारें जिम्मेवार थी। जो इस बात का भी सबूत है कि दुनिया में बढ़ते उत्सर्जन में इन भारी भरकम कारों की बड़ी भूमिका है।

विश्लेषण से यह भी पता चला है कि दुनिया में एसयूवी के बढ़ते चलन के कारण हर साल सीओ2 उत्सर्जन में जो वृद्धि हो रही है, वो वैश्विक स्तर पर बिजली क्षेत्र में होने वाले उत्सर्जन के करीब आधे के बराबर है।

इसके साथ ही छोटी कारों की तुलना में इन बड़ी और भारी भरकम गाड़ियों को बनाने में कहीं ज्यादा मैटेरियल की जरूरत पड़ती है, नतीजन इनकी वजह से न केवल संसाधनों पर दबाव बढ़ता है, साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से भी कहीं ज्यादा उत्सर्जन होता है। नतीजन पर्यावरण और जलवायु पर प्रभाव कहीं ज्यादा बढ़ जाता है।

सालाना 100 करोड़ टन से ज्यादा उत्सर्जन करती हैं यह एसयूवी

इन कारों से होता उत्सर्जन कितना ज्यादा है, यह इसी बात से समझा जा सकता है कि यदि एसयूवी कारें कोई देश होती तो यह दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी उत्सर्जक होती। यहां तक की इनसे हो रहे उत्सर्जन की तुलना जापान जैसी दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से की जा सकती है।

देखा जाए तो जिस तरह वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है और चरम मौसमी घटनाएं आम लोगों के जीवन पर असर डाल रही हैं। उनको देखते हुए बढ़ते उत्सर्जन में तत्काल कटौती की दरकार है। हालांकि कोविड महामारी को छोड़ दें तो हाल के वर्षों में परिवहन क्षेत्र से होते उत्सर्जन में तेजी से वृद्धि हुई है।

विश्लेषण के मुताबिक 2023 में पेट्रोल डीजल से चलने वाली तीन करोड़ एसयूवी का इजाफा हुआ, जो आज सड़कों पर दौड़ रही कुल इलेक्ट्रिक कारों के बराबर है। 2023 में दुनिया भर इलेक्ट्रिक कारों के 500 से ज्यादा मॉडल उपलब्ध थे, जिनमें से 60 फीसदी एसयूवी श्रेणी में आते हैं।

यह इस प्रवति को भी दर्शाता है कि भविष्य में इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माता एसयूवी के कहीं ज्यादा इलेक्ट्रिक मॉडल पेश करने की योजना बना रहे हैं। इन वाहनों के लिए कहीं ज्यादा बड़ी बैटरी की जरूरत पड़ती है। ऐसे में इन बढ़ते इलेक्ट्रिक वाहनों में इस्तेमाल होने वाली बैटरियों के लिए महत्वपूर्ण खनिजों की मांग कहीं ज्यादा बढ़ सकती है।

ऐसे में इन चुनौतियों से निपटने और एसयूवी की मांग को नियंत्रित करने के लिए फ्रांस, नॉर्वे और आयरलैंड जैसे देशों ने कुछ कानूनी उपाय किए हैं। उदाहरण के लिए पेरिस और ल्योन जैसे प्रमुख शहरों में शहरी क्षेत्रों में एसयूवी की पार्किंग के लिए ऊंची दरें लागू की हैं।

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