
पिछले तीस सालों से कोलकाता की सड़कों पर ऑटो चला रहे पिंटू साहा फिलहाल एक गंभीर फेफड़ों की बीमारी से जूझ रहे हैं। इसका कारण उनका लंबे समय तक घने ट्रैफिक प्रदूषण के संपर्क में रहना माना जा रहा है। उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने शहर में वायु प्रदूषण से निपटने के उपायों को लेकर क्या बयान दिया है।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में सोशल मीडिया पर अपनी सरकार की ओर से कोलकाता के वायु प्रदूषण को कम करने के प्रयासों की सराहना की, जिसे केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय से भी सराहना मिली। हालांकि कोलकाता अब भी दिल्ली के बाद देश का दूसरा सबसे प्रदूषित महानगर बना हुआ है।
कोलकाता की खराब वायु गुणवत्ता के लिए परिवहन से जुड़ा प्रदूषण और बायोमास जलाना मुख्य कारण हैं। अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में इस प्रदूषण को शहरवासियों में मृत्यु और बीमारियों की ऊंची दर का कारण बताया गया है। खास बात यह है कि देश के बड़े शहरों में कोलकाता के लोग सबसे ज्यादा वाहनों से होने वाले वायु प्रदूषण के संपर्क में रहते हैं, क्योंकि शहर की बड़ी आबादी प्रमुख सड़कों के पास रहती है।
शहर में वाहनों की संख्या में भारी वृद्धि से स्थिति और बिगड़ी है। केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, कोलकाता में चार पहिया वाहनों का वार्षिक पंजीकरण 2016 के 6,202 से बढ़कर 2024 में 31,991 हो गया है, जो कि पांच गुना से अधिक की वृद्धि है। वहीं, दोपहिया वाहनों का पंजीकरण 2016 में 39,029 से बढ़कर 2024 में 90,871 हो गया है।
कोलकाता स्थित एक राष्ट्रीय वैज्ञानिक संस्था बोस इंस्टीट्यूट द्वारा हाल ही में किए गए एक शोध में पाया गया कि फेफड़ों की गहराई तक पहुंचकर कई बीमारियां पैदा करने वाला एक प्रमुख प्रदूषक पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 का स्तर सर्दियों के दौरान 75 फीसदी समय तक 70 माइक्रोग्राम से अधिक रहा, जबकि शहर ने 2019 से अब तक राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत लगभग 750 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। केंद्रीय प्रूदषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मुताबिक पीएम 2.5 की वार्षिक औसत सीमा के लिए सामान्य मानक 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है।
यहां तक कि गर्मियों और प्री-मानसून के दौरान भी पीएम 2.5 का स्तर 25-35 फीसदी समय तक 70 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ऊपर रहा।
सार्वजनिक परिवहन को नजरअंदाज किया गया
ममता बनर्जी ने 16 मई 2025 को एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “कोलकाता ने फिर दिखाया रास्ता! भारत सरकार ने कोलकाता समेत तीन प्रमुख शहरों को पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 10) में महत्वपूर्ण कमी और समग्र वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) सुधार के लिए पुरस्कृत किया है।”
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कोलकाता को देश में वायु गुणवत्ता सुधार के लिए तीसरा सबसे बड़ा प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन पुरस्कार दिया है।
कोलकाता के शहरी समूह को एनसीएपी के तहत भारत के शीर्ष प्रदर्शन करने वाले शहरों में से एक के रूप में मान्यता दी गई है। सीपीसीबी द्वारा 48 प्रमुख भारतीय शहरों के प्रदर्शन मूल्यांकन के आधार पर यह तय किया गया। इस मूल्यांकन में पाया गया कि कोलकाता में 2022-23 से 2023-24 के बीच पीएम 10 की सांद्रता में 2.2 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई और अच्छे वायु गुणवत्ता वाले दिनों की संख्या भी बढ़ी।
हालांकि, कुल मिलाकर प्रदूषण की स्थिति अब भी चिंताजनक है। सीपीसीबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2023-24 के दौरान कोलकाता का पीएम 10 स्तर 94 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा, जो पिछले साल 97 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था। यह मामूली गिरावट है।
आईक्यू एयर की विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में कोलकाता का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 45.6 था, जो दिल्ली (108.3) के बाद दूसरा सबसे अधिक था। विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं का कहना है कि वायु गुणवत्ता में गिरावट का कारण सार्वजनिक परिवहन में सुधार की कमी और निजी क्षेत्र आधारित परिवहन का वर्चस्व है, जिनमें ऑटो-रिक्शा और ऐप आधारित व्यावसायिक वाहन शामिल हैं। उनका मानना है कि नीतियों और उनके कार्यान्वयन दोनों में खामियां हैं।
परिवहन कार्यकर्ता रघु जना ने बताया, “हमारे युवा दिनों में हम स्कूल और कॉलेज जाने के लिए नियमित रूप से ट्राम और बस जैसे सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करते थे। लेकिन अब ट्राम तो जैसे शहर में खत्म ही हो गई है और सार्वजनिक बसें भी बहुत कम हो गई हैं। मेट्रो, जिसका मार्ग हाल ही में बढ़ाया गया है, स्वागतयोग्य है। लेकिन अब अधिकांश लोग ऑटो, टोटो (इलेक्ट्रिक तिपहिया) और ऐप आधारित वाहन चलाने को मजबूर हैं, जो इसे वहन कर सकते हैं।”
जना के मुताबिक, सरकार अनुकूल साइकिल जैसे विकल्पों को भी बढ़ावा नहीं दे रही है, जबकि जलवायु परिवर्तन के इस दौर में यह शहरी परिवहन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
ट्राम के समर्थन में लंबे समय से लड़ रहे और अदालत का दरवाजा खटखटाने वाले महादेव शी ने कहा, “यह बेहद अजीब है कि सरकार कोलकाता में ट्राम को खत्म करने पर आमादा है, जबकि यह शहर की सबसे पुरानी जन परिवहन प्रणाली रही है और आज भी दुनिया के कई शहरों में ट्राम को ट्रांसपोर्ट का जरूरी हिस्सा माना जा रहा है। ये तब है जब सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने की बात कर रही है।”
कोलकाता में वाहन प्रदूषण के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने वाले पर्यावरण कार्यकर्ता सुभाष दत्ता का दावा है कि राज्य सरकार अब फिर से 15 साल पुराने व्यावसायिक वाहनों को दोबारा शुरू करने के प्रयासों को रणनीतिक रूप से समर्थन दे रही है, जबकि इन्हें पहले कोलकाता हाई कोर्ट ने पर्यावरणीय कारणों से प्रतिबंधित किया था। इसके बजाय सरकार को प्रदूषण मुक्त सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना चाहिए था।
दत्ता ने कहा, “बस मालिकों के संघ ने हाल ही में हाई कोर्ट में याचिका दायर कर पुराने आदेश को वापस लेने की मांग की है, जिसमें सभी 15 साल पुराने कमर्शियल वाहनों को प्रदूषण के आधार पर हटाने को कहा गया था। साफ है कि इसके पीछे सरकार की रणनीतिक भूमिका है। शहर पहले ही सार्वजनिक परिवहन के मामले में वृद्धाश्रम जैसा बन गया है। यह नया कदम शायद शहर के परिवहन के लिए अंतिम प्रहार साबित हो।” दत्ता के अलावा अन्य एक्टिविस्ट यह मानते हैं कि कोलकाता की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है।
आंकड़े भी शहर में सार्वजनिक परिवहन के पतन की पुष्टि करते हैं। 2016 में कोलकाता में 666 नए सार्वजनिक सेवा वाहनों का पंजीकरण हुआ था। तब से निजी वाहनों के उलट इनकी संख्या या तो स्थिर रही या और नीचे गई। केवल 2024 में थोड़ी वृद्धि दिखी जब 993 नए वाहन जोड़े गए। बावजूद इसके पूरी तस्वीर निराशाजनक है।
मिनी बस मालिकों के संघ से जुड़े अबासेष दाऊ ने कहा, “सरकार हमारी लंबे समय से चली आ रही मांग को नहीं मान रही है कि बस का किराया बढ़ाया जाए, ऐसे में हमारे पास अपने व्यवसाय को बंद करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।”
फेफड़ों पर संकट
बेहद सूक्ष्ण प्रूदषक पीएम 2.5 के कारण 2011 से 2019 के बीच कोलकाता में 1.85 लाख से ज्यादा लोगों की समय से पहले मौत हुई, यह जानकारी अमेरिका की रिसर्च संस्था हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट (एचईआई) की एक रिपोर्ट में दी गई है। रिपोर्ट एयर क्वालिटी एंड हेल्थ इन सिटीज के अनुसार, पीएम 2.5 से होने वाली मौतों के मामले में कोलकाता देश के सबसे अधिक जनसंख्या वाले शहरों में चौथे स्थान पर है। 2011 से 2019 के बीच कुल 1,85,390 मौतें हुई।
एचईआई की वरिष्ठ वैज्ञानिक पल्लवी पंत ने डाउन टू अर्थ से कहा, “रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि कोलकाता के निवासी खराब वायु गुणवत्ता के संपर्क में रहते हैं, जिनमें पीएम 2.5 के बहुत ऊंचे स्तर शामिल हैं। ऐसे में शहर में वायु प्रदूषण से निपटने और परिवहन, उद्योग व कचरा जैसे स्रोतों पर लक्षित कार्रवाई की योजना बनाना जरूरी है।”
दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की वायु प्रदूषण विशेषज्ञ अनुमिता रॉय चौधरी ने कहा, “कोलकाता में पीएम 2.5 का उच्च स्तर है, ऐसे में इसे स्वच्छ हवा का लक्ष्य पाने के लिए समयबद्ध और कठोर बहु-क्षेत्रीय कार्रवाई की जरूरत है।”
कोलकाता मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के पल्मोनोलॉजिस्ट अरूप हलदर ने कहा कोलकाता टेल-पाइप यानी वाहनों के एग्जॉस्ट से निकलने वाला प्रदूषण और नॉन टेल-पाइप यानी वाहनों के चलने के दौरान सड़कों से उठने वाला प्रदूषण, दोनों तरह के उत्सर्जन से बुरी तरह प्रभावित है। उन्होंने आगे कहा “हाल ही में हमने पश्चिम बंगाल और झारखंड में एक सर्वे किया, जिसका नतीजा 2024 में जर्नल ऑफ एसोसिएशन ऑफ चेस्ट फिजिशियंस में प्रकाशित हुआ। इसमें पाया गया कि 56 फीसदी लोगों को छींक की समस्या थी और 44 फीसदी को खांसी थी।” उन्होंने कहा “हमने पाया कि ट्रैफिक से जुड़ा वायु प्रदूषण इस प्रवृत्ति का एक बड़ा कारण है और कोलकाता इसमें सबसे ज्यादा प्रभावित है।”