भारत में आवाजाही : औद्योगिक नगरी भिलाई में पब्लिक ट्रांसपोर्ट नदारद, निजी वाहनों पर मोबिलिटी का दारोमदार

भिलाई में मजदूर वर्ग के लिए साइकल अब भी सबसे भरोसेमंद यातायात का साधन है
घनश्याम विश्वकर्मा (नीली शर्ट में) 16-17 की उम्र से साइकल से ही चल रहे हैं। रोज वह 30 किलोमीटर की आवाजाही साइकल से करते हैं। सभी फोटो : भागीरथ
घनश्याम विश्वकर्मा (नीली शर्ट में) 16-17 की उम्र से साइकल से ही चल रहे हैं। रोज वह 30 किलोमीटर की आवाजाही साइकल से करते हैं। सभी फोटो : भागीरथ
Published on

घनश्याम विश्वकर्मा जल्दी में हैं। उनके पैर साइकल के पैडल पर जोर-जोर से चल रहे हैं। 65 साल के धनश्याम भिलाई स्टील प्लांट के बोरिया गेट पर जल्द पहुंचना चाहते हैं क्योंकि उन्हें डर है कि देर होने पर काम हाथ से न निकल जाए। घनश्याम 16-17 साल की उम्र से भिलाई स्टील प्लांट में मजदूरी कर गुजर-बसर कर रहे हैं। वह प्लांट से करीब 15 किलोमीटर दूर भिलाई-3 में रहते हैं जिसे पुरानी भिलाई के नाम से भी जाना जाता है। उनकी प्लांट तक आवाजाही का एकमात्र साधन साइकल ही है, जो उन्हें घर से करीब 45 मिनट में पहुंचा देती है। आने जाने में उन्हें करीब डेढ़ घंटे का वक्त लगता है। उनके तीन लड़के भी मजदूरी करते हैं और साइकल उनका भी यातायात का साधन है। 

घनश्याम के साथ ही साइकल पर चल रहे दिलीप कुमार रघुवंशी भी पुरानी भिलाई से साइकल से आते हैं। उनका कहना है कि उनकी कॉलोनी में मुख्यत: मजदूर वर्ग ही रहता है और साइकल ही उनके आने-जाने का सबसे भरोसेमंद साधन है।

प्लांट के बोरिया गेट पर डाउन टू अर्थ को 40 मजदूर मिले जिनमें से अधिकांश साइकल की ही सवारी करते हैं। बोरिया गेट पर करीब 15 किलोमीटर दूर जामुल से आए सुरेश भार्गव ने बताया कि अधिकांश मजदूर ठेकेदार के माध्यम से प्लांट में रोल हैंडलिंग और लोडिंग अनलोडिंग का काम करते हैं। साइकल से आने-वाले अधिकांश मजदूर 10-15 किलोमीटर की दूरी से आते हैं। 

भिलाई स्टील प्लांट के जनसंपर्क अधिकारी प्रशांत तिवारी डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि करीब 30 हजार हेक्टेयर में फैले प्लांट में करीब 25 हजार लोग काम करते हैं। पब्लिक ट्रांसपोर्ट न होने के कारण ये कर्मचारी निजी वाहनों से ही आवाजाही करते हैं। 

प्लांट में काम करने वाले बहुत से कर्मचारी ऐसे भी हैं जो आसपास के सेक्टरों में रहते हैं और आवाजाही का कोई साधन न होने के कारण पैदल ही प्लांट तक की दूरी तय करते हैं। प्लांट में अप्रेंटिसशिप कर रहे जागेश्वर साहू और रुक्मणि साहू भी इनमें शामिल हैं। उनका कहना है कि वे सेक्टर-1 में रहते हैं जो प्लांट से करीब 2.5 किलोमीटर की दूरी पर है। आने-जाने की करीब 5 किलोमीटर की दूरी उन्हें पैदल ही तय करनी पड़ती है। प्लांट क्षेत्र में डाउन टू अर्थ को महिलाओं समेत बहुत से लोग साइकल की सवारी करते दिखे, जिससे लगा कि यहां आवाजाही के लिए साइकल का व्यापक इस्तेमाल हो रहा है। 

भिलाई रेलवे स्टेशन से चलने वाली 6 लोकल ट्रेनों में यात्रियों की संख्या घट रही है
भिलाई रेलवे स्टेशन से चलने वाली 6 लोकल ट्रेनों में यात्रियों की संख्या घट रही है

लोकल ट्रेनों में घट रहे हैं यात्री

भिलाई की स्थानीय और कार्यशील आबादी लोकल ट्रेनों का सीमित इस्तेमाल कर रही है। शहर में कुल तीन रेलवे स्टेशन है जो भिलाई-3, भिलाई पावर हाउस और भिलाई नगर के नाम से जाने जाते हैं।  

छत्तीसगढ़ पुलिस में सेवारत और रायपुर से ट्रेन में रोज भिलाई-3 आने वाले हेमंत कुमार बताते हैं कि मालगाड़ी निकालने के लिए लोकल को रोकने की वजह से लोकल ट्रेनों का टाइमटेबल बिगड़ जाता है। इससे नौकरीपेशा लोगों को समय पर ऑफिस पहुंचने में परेशानी होती है।

इसी रेलवे स्टेशन पर दुर्ग जाने के लिए लोकल ट्रेन का इंतजार कर रहे धीरेंद्र गौतम ने बताया कि वह 6-8 महीने बाद लोकल में बैठेंगे। रायपुर से दल्ली राजहरा जाने वाली ट्रेन में उन्हें जाना है जिसके भिलाई पहुंचने का समय सुबह 9:45 बजे का है। उसके अब 10:30 बजे पहुंचने की संभावना है। उनका कहना है कि लोकल ट्रेनों की इसी लेटलतीफी से लोगों का उससे भरोसा टूट रहा है। 

भिलाई-3 के स्टेशन मास्टर आशीष रंजन मानते हैं कि लोकल ट्रेनों में सवारी कम हुई है और लोग प्राइवेट बसों को प्राथमिकता देने लगे हैं क्योंकि उनमें अच्छी सर्विस मिलती है। उनका कहना है कि लोकल में छात्र और मजदूर वर्ग की अधिक यात्रा करता है क्योंकि प्राइवेट बसों की यात्रा उन्हें महंगी पड़ती है। 

भिलाई रेलवे स्टेशन से गुजरने वाली कुल 6 लोकल ट्रेनों में रोज औसतन 2,000 यात्री यात्रा करते हैं। स्टेशन मास्टर बताते हैं कि 2008 तक बस से यात्रा करने वाले लोगों की संख्या सीमित थी, अधिकांश लोगों की पहली पसंद ट्रेन ही थी। लेकिन अब स्थिति उलट चुकी है। 

स्टेशन मास्टर का मानना है कि बहुत बार ट्रेन कैंसल हो जाती है जिससे यात्रियों को परेशानी होती है। उन्हें लगता है कि यह भी यात्रियों की घटती संख्या का एक अहम कारण है। साथ ही लोगों के पास पैसा आने और समय के अभाव ने भी उन्हें लोकल ट्रेनों से दूर किया है।  

पब्लिक ट्रांसपोर्ट की अनुपस्थिति में बहुत से लोगों को पैदल ही कार्यस्थल पहुंचना पड़ता है
पब्लिक ट्रांसपोर्ट की अनुपस्थिति में बहुत से लोगों को पैदल ही कार्यस्थल पहुंचना पड़ता है

पब्लिक ट्रांसपोर्ट नदारद, निजी वाहनों पर निर्भरता

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में शामिल भिलाई दुर्ग शहर और राजधानी रायपुर के बीच में बसा है, इसलिए ट्रेन और सड़क से बेहतर इसकी कनेक्टिविटी है। भिलाई से दुर्ग की दूरी करीब 8 और रायपुर से करीब 33 किलोमीटर है। इन दोनों शहरों में ही भिलाई की मुख्यत: आवाजाही होती है। 

भिलाई से इन दोनों शहरों में जाने के लिए लोकल ट्रेनों के अलावा कोई सार्वजनिक परिवहन नहीं है। यहां जाने के लिए भिलाई की जनसंख्या पूर्ण रूप से प्राइवेट बसों का निर्भर है। धीरेंद्र गौतम कहते हैं कि तीन साल पहले तक भिलाई से रायपुर और दुर्ग के बीच सिटी बसों की कनेक्टिविटी थी, जो अब पूरी तरह ठप हैं। 

भिलाई के चरोदा में रहने वाले धीरेंद्र तीन साल पहले तक इन्हीं बसों का इस्तेमाल का दुर्ग पहुंचते थे लेकिन अब उनके पास यह विकल्प नहीं है। उनका कहना है कि हर 15 मिनट में ये बसें मिल जाती थीं। बसों के बंद होने से वह खुद और उनके जैसे बहुत से लोग बाइक से भरोसे हो गए हैं। 

भिलाई में रहने वाली रायपुर के एक होटल में नौकरी करने वाली ईशा सिन्हा कहती हैं कि 12 नौकरी की इतना थका देती है कि बसों से यात्रा करने की हिम्मत नहीं बचती है। उनका कहना है कि रायपुर से भिलाई होते हुए दुर्ग जाने वाली प्राइवेट बसों में अक्सर इतनी भीड़ होती है कि बैठने की जगह नहीं मिलती। अक्सर उन्हें पूरे सफर के दौरान खड़े-खड़े ही यात्रा करनी पड़ती है। उनका कहना है कि यात्रा की परेशानियों को देखते हुए वह हफ्ते में केवल एक ही बार भिलाई जाती हैं। 

भिलाई के एक कॉल सेंटर में काम करने वाली हिना (बदला हुआ नाम) कहती हैं कि ऑटो या बस में लड़कियां खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करतीं, इसलिए कामकाजी युवतियां स्कूटी का अधिक इस्तेमाल कर रही हैं। 

हिना भिलाई के कोहका में रहती हैं और 8-9 किलोमीटर की दूरी स्कूटी से तय करती हैं। उनके ऑफिस में लड़कियां बड़ी संख्या में काम करती हैं, जिनमें से अधिकांश की आवाजाही स्कूटी से ही होती है। वह बताती हैं कि उनके ऑफिस में करीब 1000-1200 लोगों का स्टाफ है जिनमें से करीब 40 प्रतिशत निजी वाहनों से ही आते हैं।  

दुर्ग जिला रायपुर के बाद सबसे अधिक वाहनों के पंजीकरण के मामले में राज्य में दूसरे स्थान पर है। यहां अब तक कुल 8,86,684 वाहनों का पंजीकरण हुआ है। 2025 में अब तक करीब 21 हजार वाहनों का पंजीकरण हो चुका है। साल 2024 में 2023 के मुकाबले 21 प्रतिशत अधिक वाहनों का पंजीकरण हुआ। 2023 में दुर्ग आरटीओ में 9.55 प्रतिशत और 2022 में 12.38 प्रतिशत अधिक वाहनों का पंजीकरण हुआ। 

वर्तमान में यहां एक लाख से अधिक कारों और करीब 6.76 लाख से अधिक दोपहिया पंजीकृत हैं। इसके अतिरिक्त 5,924 तिपहिया, 1,727 बसें, 3,520 यात्री ई-रिक्शा, 4276 ओम्नी बसें (निजी इस्तेमाल) आवाजाही के अन्य प्रमुख साधन हैं। 

दुर्ग-भिलाई छत्तीसगढ़ के प्रमुख औद्योगिक शहर हैं। एमएसएमई मंत्रालय के दस्तावेज “ब्रीफ इंडस्ट्रियल प्रोफाइल ऑफ दुर्ग डिस्ट्रिक्ट” के 2011 तक के आंकड़ों के अनुसार, यहां 18,878 पंजीकृत औद्योगिक इकाइयां हैं। इनमें 32 इकाइयां मध्यम और बड़ी श्रेणी की हैं। भिलाई में भारत सरकार के स्टील प्लांट के अलावा आसपास के क्षेत्रों में 12 बड़ी इकाइयां हैं। 

वायु प्रदूषण

ईकोलॉजी एनवायरमेंट एंड कन्जरवेशन जर्नल में 2023 में प्रकाशित अध्ययन “एयरबोर्न पार्टिकुलेट मैटर लेवल्स इन रैंडमली सिलेक्टेट एरियाज इन भिलाई”  में गीतांजलि मिश्रा, मुकेश कुमार, शिखा श्रीवास्तव, दिव्या मिंज और नीतू श्रीवास्तव ने पाया था कि भिलाई में बढ़ते औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण प्रदूषण में अत्यधिक वृद्धि हुई है।

अध्ययन दिसंबर 2022 में भिलाई के विभिन्न क्षेत्रों में पीएम 2.5 और पीएम 10 के स्तर की जांच करता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रदूषण के प्राथमिक कारणों में वाणिज्यिक और औद्योगिक गतिविधियां, वाहन यातायात, निर्माण, कोयले, लकड़ी, सूखे पत्तों, कागज, प्लास्टिक आदि का खुले में जलना शामिल है। 

यह अध्ययन दिसंबर में अलग-अलग दिनों में किया गया था। शोधकर्ताओं ने अनुसार,पीएम 2.5 और पीएम 10 का स्तर  80-100 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से अधिक था। औद्योगिक और गैर-औद्योगिक क्षेत्रों में सभी चयनित स्थानों पर पीएम का स्तर नैशनल एंबिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड (एनएएक्यूएस)  सीमा से अधिक था। 

चयनित क्षेत्रों में पीएम 2.5 का स्तर 43 से 441 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर, पीएम 10 का स्तर 49 से 511 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर तक था। अध्ययन के अनुसार, 28 स्थानों पर वायु की गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं थी, जबकि 5 स्थान अत्यधिक प्रदूषित थे। अत्यधिक प्रदूषित स्थानों में बाबादीप सिंह नगर, जयहिंद चौक सुपेला, घड़ी चौक सुपेला, जवाहर नगर और रामनगर रोड शामिल थे।अध्ययन में कहा गया है कि ऐसी हवा के लंबे समय तक संपर्क में रहना संवेदनशील लोगों, बुजुर्गों और बच्चों की सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है। 

यह स्टोरी हमारी खास सीरीज भारत में आवाजाही का हिस्सा है, जो शहरों और कस्बों में वायु गुणवत्ता और लोगों की आवाजाही (परिवहन सेवाओं) के बीच संबंधों पर फोकस है। पूरी सीरीज पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in